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  • पर्यावरण बचाएंगे- अनामिका श्रीवास्तव

    पर्यावरण बचाएंगे- अनामिका श्रीवास्तव

    पर्यावरण बचाएंगे- अनामिका श्रीवास्तव

    save tree save earth
    poem on trees

    पानी हवा पेड़ और मिट्टी ।
    इनसे ही मां धरती सजती ।
    यह सब है धरती के अंग ।

    मानव जीवन इनके संग ।।

    अज्ञान मनुष्य अनजान है
    बस लेता पेड़ों की जान है।
    पर वह नहीं समझता है
    पेड़ों से ही उनके प्राण हैं ।।


    यदि नहीं कर सकते कोई काम
    तो लगाओ पौधे धरती के नाम ।
    करो रक्षा तुम वनों की हमेशा
    देंगे फल-फूल ,हवा-छांव- रेशा।


    करना है अब यह प्रण हमें
    हम पेड़ों को बचाएंगे ।
    करके थोड़ा थोड़ा प्रयास सभी

    पर्यावरण बचाएंगे …पर्यावरण बचाएंगे।

  • पर्यावरण पर दोहे

    पर्यावरण पर दोहे

    पर्यावरण पर दोहे -शंकर आँजणा

    NATURE
    Environment day



    छह ऋतु, बारह मास हैं, ग्रीष्म-शरद-बरसात
    स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात // १ //

    कूके कोकिल बाग में, नाचे सम्मुख मोर
    मनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर // २ //

    खूब संपदा कुदरती, आँखों से तू तोल
    कह रही श्रृष्टि चीखकर, वसुंधरा अनमोल // ३ //

    मन प्रसन्नचित हो गया, देख हरा उद्यान
    फूल खिले हैं चार सू, बढ़ा रहे हैं शान //४ //

    मानव मत खिलवाड़ कर, कुदरत है अनमोल
    चुका न पायेगा कभी, कुदरत का तू मोल // ५ //

    आने वाली नस्ल भी, सुने प्रीत के गीत
    कुदरत के कण-कण रचा, हरयाली संगीत // ६ //

    फल-फूल कंदमूल हैं, पृथ्वी को वरदान
    इन सबको पाकर बना, मानव और महान // ७ //

    कर दे मानव ज़िन्दगी, कुदरत के ही नाम
    वृक्ष -लताओं पर लिखा, प्यार भरा पैग़ाम // ८ //

    हरयाली के गीत मैं, गाता आठों याम
    कोटि-कोटि पर्यावरण, तुमको करूँ प्रणाम // ९ //

    शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
    बागोड़ा जालोर-343032

  • कोरोना के कहर से कोई न अछूता है

    कोरोना के कहर से कोई न अछूता है

    कोरोना वायरस
    corona

    कोरोना के कहर से कोई न अछूता है ,
    किसी का ऑक्सीजन बिना दम घूंटा ,तो कोइ घूंट घूंट कर जीता है ।



    इस बीमारी ने न जाति देखा न धर्म न समुदाय ,
    बड़े बड़े साधु संत , मौलवी , फादर भी कहाँ बच पाए…।



    किसी का अपनों का साथ तो किसी का रोजगार छूटा है ,
    स्कूल कोचिंग पर ताला तो, करोड़ो विद्यार्थियों का सपना टूटा है ।



    रोक तो वो भी न पाये अपने देश की बदहाली ,
    जो दुनिया मे दावा करते थे हम है शक्तिशाली ।



    कोरोना के शव के पास जब कोई नहीं आता तो लगता हर नाता रिश्ता झूठा है ,
    इस संकट के घड़ी मे बहुतो ने कालाबाजारी कर भी लुटा है ।



    मन मे विश्वास रखे और सावधानी से रहे… यह वक़्त भी गुजर जायेगा ,
    अब वो वक़्त भी दूर नहीं जब हर चेहरा मुस्कुरायेगा ।

    ✍🏻 Written by – Rohit Kumar Lucky
    Muzaffarpur , Bihar

  • जीवन और संगीत है एक दूसरे के पूरक

    जीवन और संगीत है एक दूसरे के पूरक

    जीवन और संगीत है एक दूसरे के पूरक

    जीवन और संगीत है एक दूसरे के पूरक।
    संगीत है हर समय और स्थिति की जरूरत।


    लोरी है जीवन का पहला संगीत।
    प्रकृति की हर वस्तु में जीवन का उदगीत।

    ईश्वर की भक्ति में संगीत।

    माता की शक्ति में संगीत।
    मंदिर के शंखनाद में संगीत।
    मस्जिद की अजान में संगीत।


    शीतल बयार में संगीत।
    आंधी के संहार में भी संगीत।
    बारिश की टिप टिप में संगीत।
    पानी के छप छप में संगीत।


    भारत की संस्कृति में संगीत।
    जीवन की हर मन स्थिति में संगीत।
    दिलों के प्यार में संगीत।
    जीवन का त्यौहार है संगीत।


    जीवन में है संगीत यह संगीत में है जीवन।
    बिन संगीत जीवन में व्याप्त सूनापन।
    निराश मन में आशा का संचार संगीत।
    पत्थर में जान डाले। वह झंकार है संगीत।


    हास्य व रुदन में संगीत।
    अन्याय अत्याचार के दमन में संगीत।
    पृथ्वी के कण-कण में संगीत।
    जीवन के हर क्षण में संगीत।

    वर्तिका दुबे, उत्तर प्रदेश

  • मौसम कुछ उदास है- रीता प्रधान

    मौसम कुछ उदास है- रीता प्रधान

    धरती , पृथ्वी

    दिलों में जाने क्यों,
    बाकी न कोई एहसास है।
    एक भाई को ही दूजे भाई की,
    जाने क्यों खून की प्यास है।
    प्रकृति तो उदास बैठी ही थी,
    अब दिलों का भी मौसम कुछ उदास है।

    जवानी आते जाने कहां ,
    चला जाता है बचपन का प्यार।
    घरवाले ही घरवालों पर,
    जाने क्यों करते हैं अत्याचार।
    देख दशा ये मानव की ,प्रकृति भी उदास है।
    अब दिलों का भी ,मौसम कुछ उदास है ।

    आज लोग जलते हैं जाने क्यों,
    अपनों की कामयाबी देख।
    बहुत कम हो गया है लोगों में,
    करना कोई काम नेक।
    हो रहा प्रकृति का भी ,दोहन अनायास है
    अब दिलों का भी ,मौसम कुछ उदास है।

    उदासीनता से भरी जिंदगी,
    लोग आज एक दूसरे से दूर हैं।
    कोई जी रहा है शान से,
    कोई जीने को मजबूर हैं।
    दुर्व्यवहार से प्रकृति भी ,बैठी हताश है।
    अब दिलों का भी ,मौसम कुछ उदास है।

    एक दिन आयेगा कभी तो ऐसा,
    रिश्ते प्रकृति सम खिल जायेंगे।
    रिश्ते भी महकेंगे और,
    प्रकृति को भी महाकायेंगे।
    यही मेरी एक, छोटी सी आस है
    तब दिलों का भी ना रहेगा, मौसम कुछ उदास है

    आत्मीयता का भाव कभी,
    लोगों के मन में भी तो आयेगा।
    प्रकृति की भी सेवा होगी,
    मानव धर्म निभाएगा ।
    प्रकृति ही करती चयन ,कुछ का करती विनाश है।
    खिल जायेगा वो भी जो दिलों का, मौसम कुछ उदास है।


    रीता प्रधान
    रायगढ़ छत्तीसगढ़