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  • संगीत जीवन का अंग है

    संगीत जीवन का अंग है

    संगीत जीवन का अंग है



    संगीत जीवन का अंग है,
    जो रहता जीवन संग है।

    संगीत उदासी की सहेली है,
    जीवन की दुल्हन नई नवेली है।

    यह साधना का स्वर है,
    गुनगुनाता जग भँवर है।

    संगीत जीवन जीने की युक्ति है,
    शारीरिक मानसिक ब्याधियों से मुक्ति है।

    गायन वादन नृत्य ये संगीत हैं,
    संतुलित जीवन के ये मीत हैं।

    जिसके जीवन में आता है,
    ध्यानशक्ति उसकी बढ़ाता है।

    तनाव दर्द सब दूर करे,
    प्रतिरोधक क्षमता तन में भरे।

    नकारात्मकता को ठग लेता है,
    सकारात्मकता जग में देता है।

    पर्व त्योहारों में रंगत बढ़ाये,
    जन्म से चिता तक साथ जाये।

    जो संगीत को प्रेमिका बनाता है,
    वह प्रेमी जीवन भर सुख पाता है।



    अशोक शर्मा, लक्ष्मीगंज, कुशीनगर,उ.प्र.

  • फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियां

    फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियां

    इंद्रधनुष


    पिछले कुछ दिनों से
    मैंने नहीं देखा है रोशनी वाला सूरज
    ताज़गी वाली हवा
    खुला आसमान
    खिले हुए फूल
    हँसते-खिलखिलाते लोग

    एक-एक दिन
    देह में होने का ख़ैर मनाती आ रही है
    देह के किसी कोने में
    डरी-सहमी एक आत्मा

    किसी भी तरह जीवन बचाने की जद्दोजेहद में
    उत्थान और विकास जैसे
    जीवन के सारे जद्दोजहद
    भूलने लगे हैं लोग

    पढ़ने-लिखने
    चार पैसा कमाने
    ख़ाली वक्त में राजनीति और
    देश-विदेश की बातें करने
    जैसे सब बातें भूलने लगे हैं लोग

    दुनियाँ में शामिल
    खूबसूरत रंग-विरंगे शोरगुल और हलचल
    धीरे-धीरे तब्दील होते जा रहा है
    एक भयानक वीराने में

    तमाम ख़बरों से भरी
    विविध रंगी यह दुनियाँ
    सिमटकर थम गई है
    केवल एक ही ख़बर पर

    भावनाओं के स्रोतों से
    भावनाएँ फूट नहीं रही
    खूबसूरत भावनाओं से भरा हृदय
    अब किसी अनजान भय से
    भरा-भरा लगता है

    पिछले कुछ दिनों से
    शब्दों और कविताओं से
    उतर नहीं रहे हैं कोई अर्थ
    पर इतनी उम्मीद अब भी बाकी है
    कि शब्दों और कविताओं के ज़रिए ही
    फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियाँ।



    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • 8 जून विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस पर कविता

    8 जून विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस पर कविता

    kavita



    लगातार सिरदर्द रहे या, कभी अचानक चक्कर आए
    बढ़े चिड़चिड़ापन तो सम्भव, प्रकट ब्रेन ट्यूमर हो जाए।

    यह दिमाग के किसी भाग में, धीमे या तेजी से छाता
    हो सी.टी. स्कैन नहीं तो एम. आर. आई. भेद बताता
    किसी विषय पर बात करें तो,हो विचार में आनाकानी
    सुनने में भी दिक्कत आए, और बढ़े जमकर हैरानी

    लगे लड़खड़ाहट चलने में, हाथ- पैर में ऐंठ समाए
    रोगी बहुत सिसकता देखा, पीड़ा सहन नहीं हो पाए।

    उल्टी आने लगे बोलने में भी दिक्कत होती जाती
    और देखने में भी बाधा रोगी को है बहुत रुलाती
    इसको हम सामान्य न समझें, है यह खतरनाक बीमारी
    अगर समय से पता न हो तो, बढ़ती बहुत अधिक लाचारी

    पूरा ट्यूमर या फिर डैमेज भाग सर्जरी बाहर लाए
    जोखिम ब्लीडिंग, इंफेक्शन का रोगी को फिर बहुत सताए।

    कभी -कभी ट्यूमर में पारम्परिक सर्जरी काम न आती
    ब्रेन सर्जरी बनी आधुनिक एंडोस्कोपिक ही चल पाती
    और असम्भव जगह कहीं हो, आसानी से ट्यूमर निकले
    फिर साइड इफेक्ट्स यहाँ न्यूरोनेविगेशन से फिसले

    आज रेडियोथेरेपी भी, सारी चिंता दूर भगाए
    कुछ ट्यूमर गामा नाइफ से, भी लोगों ने ठीक कराए।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)
    मोबा- 98379 441878 जून विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस पर कविता

  • गर निराशा आशा पर भारी पड़ने लगे – अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

    गर निराशा आशा पर भारी पड़ने लगे – अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह



    गर निराशा ,आशा पर भारी पड़ने लगे

    जब उचित –अनुचित का भाव् मन से ओझल होने लगे।

    जब आस्तिक – नास्तिक का बोध न हो

    समझो मानव , निराशा के अंधे कुँए में गोते लगा रहा है।



    जब प्रभु भक्ति से मन खिन्न होने लगे

    जब उसकी महिमा पर संदेह होने लगे।

    जब उसके अस्तित्व पर ही प्रश्न उठने लगें

    समझो मानव सभ्यता अपने पतन की और अग्रसर है।

  • अपना जीवन पराया जीवन – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    अपना जीवन पराया जीवन – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    वर्षा बारिश

    अपना जीवन पराया जीवन

    अस्तित्व को टटोलता जीवन

    क्या नश्वर क्या अनश्वर

    क्या है मेरा , क्या उसका

    जीवन प्रेम या स्वयं का परिचय

    जीवन क्यूं करता हर पल अभिनय

    क्या है जीवन की परिभाषा।



    जीवन , जीवन की अभिलाषा

    गर्भ में पलता जीवन

    कलि से फूल बनता जीवन

    मुसाफिर सा , मंजिल की

    टोह में बढ़ता जीवन

    चंद चावल के दाने

    पंक्षियों का बनते जीवन।



    प्रकृति के उतार चढ़ाव से

    स्वयं को संजोता जीवन

    कभी पराजित सा , कभी अभिमानी सा

    स्वयं को प्रेरित करता जीवन।



    माँ की लोरियों में

    वात्सल्य को खोजता जीवन

    कहीं मान अपमान से परे

    स्वयं को संयमित करता जीवन।



    कहीं सरोवर में कमल सा खिलता जीवन

    कहीं स्वयं को स्वयं पर बोझ समझता जीवन