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  • बापूजी पर दोहे -बाबू लाल शर्मा

    बापूजी पर दोहे -बाबू लाल शर्मा

    बापूजी पर दोहे -बाबू लाल शर्मा

    mahatma gandhi
    दोहा दोहा


    भारत ने थी ली पहन, गुलामियत जंजीर।
    थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।।


    काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
    गोली गाली साथ ही , भर देते थे जेल।।


    याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
    कायर डायर क्रूर ने, खेला खूनी फाग।।


    मोहन, मोहन दास बन, मानो जन्मे देश।
    पढ़लिख बने वकीलजी, गुजराती परिवेश।।


    देखे मोहन दास ने, साहस ऊधम वीर।
    भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।।


    बापू के आदर्श थे, लाल बाल अरु पाल।
    आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।।


    अफ्रीका मे वे बने, आजादी के दूत।
    लौटे अपने देश फिर, मात भारती पूत।।


    अंग्रेजों की क्रूरता, पीड़ित था निज देश।
    बैरिस्टर हित देश के, पहना खादी वेश।।
    .
    कूद पड़े मैदान में, चाह स्वराज स्वदेश।
    कटे दासता बेड़ियाँ, हो स्वतंत्र परिवेश।।


    सत्य अहिंसा शस्त्र से, करते नित्य विरोध।
    जनता को ले साथ में, किए विविध अवरोध।।


    सत्याग्रह के साथ ही, असहयोग हथियार।
    सविनय वे करते सदा, नाकों दम सरकार।।


    गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
    भारत का वो लाडला, गाँधी साधू वेश।।


    गोरे काले भेद का, करते सदा विरोध।
    खादी चरखे कातकर, किए स्वदेशी शोध।।


    कहते सभी महातमा, आजादी अरमान।
    बापू अपने देश का, लौटाएँ सम्मान।।


    गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी पस्त।
    आजादी दी देश को, पन्द्रह माह अगस्त।।


    बँटवारे के खेल में, भारत पाकिस्तान।
    गांधीजी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।।


    आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
    राष्ट्रपिता जनता कहे, बापू हुए महान।।


    तीस जनवरी को हुआ, उनका तन निर्वाण।
    सभा प्रार्थना में तजे, गाँधी जी ने प्राण।।


    दिवस शहीदी मानकर, रखते हम सब मौन।
    बापू तेरे देश का, अब रखवाला कौन।।

    महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी गान।
    मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।।


    बापू को करते नमन, अब तो सकल ज़हान।
    धन्य भाग्य माँ भारती, गांधी पूत महान।।

    शर्मा बाबू लाल ये, लिख दोहे बाईस।
    बापू को अर्पित करूँ, आज झुका निज शीश।।


    © बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”, विज्ञ

  • आपदा विषय पर दोहा -बाबू लाल शर्मा

    आपदा विषय पर दोहा -बाबू लाल शर्मा


    . १
    भोर कुहासा शीत ऋतु, तैर रहे घन मेह।
    बगिया समझे आपदा, वन तरु समझे नेह।।


    . २
    तृषित पपीहा जेठ में, करे मेह हित शोर।
    पावस समझे आपदा, कोयल कामी चोर।।


    . ३
    करे फूल से नेह वह, मन भँवरे नर देह।
    पंथ निहारे मीत का, याद करे हिय गेह।।


    . ४
    ऋतु बासंती आपदा, सावन सिमटे नैन।
    विरहा तन मन कोकिला, खोये मानस चैन।।


    . ५
    दुख में सुख को ढूँढता, मन को करे विदेह।
    करे परीक्षण आपदा, दुर्लभ मानुष देह।।


    © बाबू लाल शर्मा , विज्ञ

  • हम होंगे कामयाब – गिरिजाकुमार माथुर

    हम होंगे कामयाब – गिरिजाकुमार माथुर

    हम होंगे कामयाब – गिरिजाकुमार माथुर

    struggle


    हम होंगे कामयाब,
    हम होंगे कामयाब,
    हम होंगे कामयाब एक दिन,
    मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास,
    हम होंगे कामयाब एक दिन

    होगी शान्ति चारों ओर,
    होगी शान्ति चारों ओर,
    होगी शान्ति चारों ओर एक दिन,
    मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास,
    होगी शान्ति चारों ओर एक दिन।


    नहीं डर किसी का आज,
    नहीं भय किसी का आज,
    नहीं डर किसी का आज एक दिन,
    मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास,
    नहीं डर किसी का आज एक दिन।


    हम चलेंगे साथ-साथ,
    डाल हाथों में हाथ,
    हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।
    मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास,
    हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।
    हम होंगे कामयाब,
    हम होंगे कामयाब,
    हम होंगे कामयाब, एक दिन।

    – गिरिजाकुमार माथुर

  • सैनिक व सिपाही को अर्पित दोहा पच्चीसी

    सैनिक व सिपाही को अर्पित दोहा पच्चीसी



    बलिदानी पोशाक है, सैन्य पुलिस परिधान।
    खाकी वर्दी मातृ भू, नमन शहादत मान।।



    खाकी वर्दी गर्व से, रखना स्व अभिमान।
    रक्षण गुरुतर भार है, तुमसे देश महान।।



    सत्ता शासन स्थिर नहीं, है स्थिर सैनिक शान।
    देश विकासी स्तंभ है, सेना पुलिस समान।।



    देश धरा अरु धर्म हित, मरते वीर सपूत।
    मातृभूमि मर्याद पर , आजादी के दूत।।


    आदि काल से हो रहे, ऐसे नित बलिदान।
    वीर शहीदों को करें, नमन सहित अभिमान।।


    आते गिननें में नहीं, इतने हैं शुभ नाम।
    कण कण में बलिदान की, गाथा करूँ प्रणाम।।


    आजादी हित पूत जो, किए शीश का दान।
    मात भारती,हम हँसे, उनके बल बलिदान।।


    गर्व करें उन पर वतन, जो होते कुर्बान।
    नेह सपूते भारती, माँ रखती अरमान।।


    अपना भारत हो अमर, अटल तिरंगा मान।
    संविधान की भावना, राष्ट्र गान सम्मान।।

    १०
    सैनिक भारत देश के, साहस रखे अकूत।
    कहते हम जाँबाज हैं, सच्चे वीर सपूत।।

    ११
    रक्षित मेरा देश है, बलबूते जाँबाज।
    लोकतंत्र सिरमौर है, बने विश्व सरताज।।

    १२
    विविध मिले हो एकता, इन्द्रधनुष सतरंग।
    ऐसे अनुपम देश के, सभी सुहावन अंग।।

    १३
    जय जवान की वीरता,धीरज वीर किसान।
    सदा सपूती भारती, आज विश्व पहचान।।

    १४
    संविधान सिरमौर है, संसद हाथ हजार।
    मात भारती के चरण ,सागर रहा पखार।।

    १५
    मेरे प्यारे देश के, रक्षक धन्य सपूत।
    करे चौकसी रात दिन, मात भारती पूत।।

    १६
    रीत प्रीत सम्मान की, बलिदानी सौगात।
    निपजे सदा सपूत ही, धरा भारती मात।।

    १७
    वेदों में विज्ञान है, कण कण में भगवान।
    सैनिक और किसान से, मेरा देश महान।।

    १८
    आजादी गणतंत्र की, बनी रहे सिरमौर।
    लोकतंत्र फूले फले, हो विकास चहुँ ओर।।

    १९
    मेरे अपने देश हित, रहना मेरा मान।
    जीवन अर्पण देश को, यही सपूती आन।।

    २०
    रक्षण सीमा पर करे, सैन्य सिपाही वीर।
    शान्ति व्यवस्था में पुलिस,रहे संग मतिधीर।।

    २१
    सोते पैर पसार हम, शीत ताप में सैन्य।
    कर्मशील को धन्य हैं, हम क्यों बनते दैन्य।।

    २२
    सौदा अपने शीश का, करता वीर शहीद।
    मूल्य तिरंगा हो कफन, है आदर्श हमीद।।

    २३
    हिम घाटी मरुथल तपे, पर्वत शिखर सदैव।
    संत तुल्य सैनिक रहे, गिरि कैलासी शैव।।

    २४
    रक्षक हिन्दी हिन्द के, तुम्हे नमन शत बार।
    खाकी वर्दी आपको ,पुण्य हृदय आभार।।

    २५
    शर्मा बाबू लाल अब, दोहा लिख पच्चीस।
    सैनिक वीर जवान हित, नित्य नवाए शीश।।


    © बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

  • हिंदी संग्रह कविता- माँ! बस यह वरदान चाहिए

    माँ! बस यह वरदान चाहिए

    माँ जगदम्बे
    प्रेरणादायक कविता


    माँ बस यह वरदान चाहिए।
    जीवन-पथ जो कंटकमय हो, विपदाओं का घोर विलय हो।
    किन्तु कामना एक यही बस, प्रतिपल पग गतिमान चाहिए। माँ …


    हास मिले या त्रास मिले, विश्वास मिले या फास मिले।
    गरजे क्यों न काल सम्मुख, जीवन का अभिमान चाहिए॥ माँ…


    जीवन के इन संघर्षों में, दुःख – कष्ट के दावानल में,
    तिल-तिलकर तन जले न क्यों पर होठों पर मुस्कान चाहिए॥ माँ.


    कंटक पथ पर गिरना, चढ़ना, स्वाभाविक है हार जीतना।
    उठ-उठ कर हम गिरें, उठे फिर, पर गुरुता का ज्ञान चाहिए। माँ.


    मेरी हार देश की जय हो, स्वार्थ- भाव का क्षण-क्षण क्षय हो,
    जल-जल कर जीवन , जग को, बस इतना सम्मान चाहिए। माँ…