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  • सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी

    सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी

    सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी

    सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी


    न हो साथ कोई, अकेले बढ़ो तुम,
    सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी।। सफलता…..


    सदा जो जगाये बिना ही जगा है,
    वही बीज पनपा पनपना जिसे था।
    घुना क्या किसी के उगाये उगा है,
    अगर उग सको तो उगो सूर्य से तुम
    प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी| सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी |


    सही राह को छोड़कर जो मुड़े हैं
    बिना पंख तौले उड़े जो गगन में,
    न संबंध उसके गगन से जुड़े हैं।
    अगर बन सको तो पखेरू बनो तुम,
    प्रवरता तुम्हारे चरण चूम लेगी।। सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी |

    न जो बर्फ की आँधियों से लड़े हैं,
    कभी पग न उनके शिखर पर पड़े हैं
    जिन्हे लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से,
    वही जी चुराकर तरसते खड़े है।
    अगर जी सको तो जियो जूझकर तुम,
    अमरता तुम्हारे चरण चूम लेगी। सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी |

  • तेरी खामोश निगाहें – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    तेरी खामोश निगाहें – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तेरी खामोश निगाहें , करतीं हैं बयाँ

    तुझे, मुझसे मुहब्बत हो गयी

    तेरे चहरे का ये नूर, करता है बयाँ

    तुझे, मुझसे मुहब्बत हो गयी

    क्या मैं छू लूं तुझे, मेरी जाने – जां

    तुझे, मुझसे मुहब्बत हो गयी

    तेरी नजरे – करम पर, मैं हूँ फ़िदा

    तुझे, मुझसे मुहब्बत हो गयी

    चंद पल गुजार लूं , तेरी आगोश में

    तुझे, मुझसे मुहब्बत हो गयी

    एक बार मुस्कुरा के , देख जरा

    मुझे तुमसे, मुहब्बत हो गयी

    तेरी गलियों में फिरूं , मैं दीवानों सा

    मुझे , तुझसे मुहब्बत हो गयी

    मेरे आशियाँ को कर दे रोशन , मेरी जाने जां

    मुझे , तुमसे मुहब्बत हो गयी

    तेरी खामोश निगाहें , करतीं हैं बयाँ

    तुझे, मुझसे मुहब्बत हो गयी

    तेरे चहरे का ये नूर, करता है बयाँ

    तुझे, मुझसे मुहब्बत हो गयी

  • पीर दिल की छुपाने की जरूरत क्या है – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    पीर दिल की छुपाने की जरूरत क्या है- अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    kavita

    पीर दिल की छुपाने की , जरूरत क्या है

    गम को फना करने के , बहाने हैं बहुत

    क्यूं कर दूर जाने की , बात करते हो

    करीब आने, दिल लगाने के , बहाने हैं बहुत

    क्यूं कर रिश्तों में ये , कड़वाहट कैसी

    रिश्तों को निभाने के , बहाने हैं बहुत

    क्यूं कर ग़मों को सीने से , लगाए बैठे हैं वो

    ग़मों को भुलाने, जिन्दगी को मुस्कुराने के , बहाने हैं बहुत

    क्यूं कर दिल की पीर को , अपनी धरोहर कर लें

    खुशियाँ जताने और मुस्कुराने के , बहाने हैं बहुत

    क्यूं कर किसी की चाहत को , ठुकराए कोई

    मुहब्बत जताने और निभाने के , बहाने है बहुत

    क्यूं कर किसी से दूरियां , बनाते हैं लोग

    किसी के करीब आने , सीने से लगाने के , बहाने हैं बहुत

    क्यूं कर जिन्दगी को नासूर , बना लेते हैं लोग

    पीर दिल की मिटाने और मुस्कराने के , बहाने हैं बहुत

  • बस वही परिवार है (परिवार पर कविता )- नमिता कश्यप

    संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। 1995 से यह सिलसिला जारी है। परिवार की महत्ता समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

    परिवार
    १५-मई-विश्व-परिवार-दिवस-पर-लेख-15-May-World-Family-Day

    बस वही परिवार है

    माता-पिता का लाड़ है,अपनों का और दुलार है।
    गलती करें तो डाँट भी,पर मन में प्रेम अपार है।
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    सब बातें होतीं पास में, जब साथ बैठें रात में,
    बातों ही बातों में बढ़े जो,मीठी सी तकरार है,
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    ना किसी की जीत है और ना किसी की हार है,
    एक-दूजे की खुशी,जीवन का सबके सार है,
    जब साथ हो विश्वास हो,खुद चलके आती बहार है,
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    प्यार जिसकी नींव है,सम्मान ही आधार है,
    हैं जुड़े रहते दिलों से दिल के हरदम तार हैं,
    सब साथ मिलकर काटते,मुश्किल का हर जो पहाड़ है,
    बस वही परिवार है,हाँ वही परिवार है।

    नमिता कश्यप

  • हिमालय कर रहा हुंकार है – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    हिमालय कर रहा हुंकार है – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हिमालय कर रहा हुंकार है

    मानव ने किया उस पर प्रहार है

    कभी ग्लेशियर का टूटना

    कभी बाढ़ का दिखता प्रभाव है

    कभी आसमानी बिजली चीखती

    कभी सुनामी का प्रचंड वार है

    कोरोना ने सारी सीमाएं तोड़ दीं

    मानव अपने किये पर शर्मशार है

    कभी ज्वालामुखी है चीखता

    कहीं गृहयुद्ध की मार है

    सुपारी किलर खुले आम घूमते

    चीरहरण की घटनाएं बेशुमार हैं

    संवेदनाएं दम हैं तोड़तीं

    मानवता खुद पर शर्मशार है

    चीख – पुकार का ये कैसा दौर है

    हर एक शख्स हुआ लाचार है

    मानव जीवन हुआ कुंठाओं का समंदर

    इंसानियत हुई बेज़ार है

    रिश्ते निभाने का अब चार्म न रहा

    बिखरा – बिखरा सा मानव का संसार है

    हिमालय कर रहा हुंकार है

    मानव ने किया उस पर प्रहार है