ये तो बस मूर्खों की पीढ़ी बनायेगा
ये जानता नहीं अपनी मंजिल, लक्ष्य के लिए कैसे सीढ़ी बनायेगा ?
मूर्ख बनाने में शातिर महाप्रभु, ये तो बस मूर्खों की पीढ़ी बनायेगा ।।
इसे स्वयं को जो भी अच्छा लगे, उसे सत्य मान लेता है।
स्वयं को सच्चा परम ज्ञानी, दूसरों को झूठा जान लेता है।
सच झूठ का पैमाना बनाया है स्वार्थ तुष्टिकरण के लिए
भला कोई एक नजर में , कैसे सबको पहचान लेता है ?
अब ये तो भले मानस ठहरे , मधुमेह रोगी को खीर मीठी खिलायेगा ।
मूर्ख बनाने में शातिर महाप्रभु, ये तो बस मूर्खों की पीढ़ी बनायेगा ।।
मोबाइल, परफ्यूम, शाम की नशा, अब ये रोज की कहानी हो गई ।
इस लल्लू ने लाली को देखा तो , धड़कन भी जैसे दीवानी हो गई ।।
बन गया ये सूरज उसे बनाके चांद , जैसे जोड़ी आसमानी हो गई ।
पर ये क्या हुआ ? क्रीम मुंह लगाते ही, सब तो पानी पानी हो गई ।
गर उतर गया है नशा, तो देखे दशा, पर ये कोने में बीड़ी सुलगायेगा ।
मूर्ख बनाने में शातिर महाप्रभु, ये तो बस मूर्खों की पीढ़ी बनायेगा ।।
– मनीभाई नवरत्न