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  • शादी पर कविता- सुकमोती चौहान

    शादी पर कविता- सुकमोती चौहान

    शादी
    shadi



    दीदी की है आज , बराती द्वारे आई ।
    देखो बाजे बैण्ड , फटाखे फोड़े भाई ।।
    देखो बेटा बाप , साथ नाचे संगाती ।
    मस्ती में हो चूर , नाचते दादा नाती ।
    दूल्हा राजा साथ में , जीजा बैठा पास में ।
    सारी रश्मों को निभा , रिश्ता विश्वास में ।

    तीखी मिर्ची डाल , पकौड़े साली लाई ।
    चिल्लाते हैं खूब , देख दूल्हा के भाई ।
    छोटी छोटी रश्म , भरे शादी में मस्ती ।
    मीठी छूरी जान , प्रेम की देखो हस्ती ।
    रिश्तेदारों से भरा , शादी की वेदी सजी ।
    शादी भी सम्पन्न ये , ताली ही ताली बजी ।

    शादी की ये रीत , खुशी की हैं बौछारें ।
    जन्मों का संबंध , लगे हैं प्यारे प्यारे ।
    दो राही हैं साथ , सात लेते हैं फेरे ।
    देते हैं आशीष , नये जोड़े को घेरे ।
    हाथों में है मेंहदी , दो आँखों में ख्वाब है ।
    देते आशीर्वाद ये , रिश्ता ये नायाब है ।


    *सुकमोती चौहान “रुचि”*
    *बिछिया,महासमुन्द*

  • श्री विष्णु जी प्रार्थना

    श्री विष्णु जी प्रार्थना

    श्री विष्णु जी प्रार्थना


    लीला-भेदों से हुआ,
    नाम -भेद और रूप।
    महाविष्णु ,ब्रह्मा सहित ,
    दिखते सभी अनूप।।
    पूजें आस्थावान सब,
    राम -कृष्ण, शिव-शक्ति ।
    देवी, सूर्य, गणेश मे,
    होती निष्ठा -भक्ति।।
    नाम, रूप हो इष्ट के,
    पूजा विधि अनुसार।
    सुखी देव पर आस्था,
    मे प्रभु ही आधार।।
    ऐसी ही हो धारणा,
    तो सबका सम्मान।
    एक इष्ट आराधना,
    से पाते सब मान।।
    यदि हम पूजें विष्णु जी ,
    करें नाम का जाप।
    राम-कृष्ण -शिव पा रहे,
    पूजा अपने आप।।
    राम-कृष्ण -शिव पूजने,
    से पूजा पर होम।
    मिल जाता श्री विष्णु को,
    पहुँचाता है व्योम।।
    जैसे हर सरिता बहा,
    अपने निर्मल नीर।
    सागर मे पहुँचा रही,
    रखे सिंधु गंभीर ।।
    इसी तरह कर प्रार्थना,
    श्री विष्णू जी नित्य।
    सबकी स्वीकारें सदा,
    यथा रश्मि आदित्य।।
    ====================

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर
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  • बहार शब्द पर दोहा

    बहार शब्द पर दोहा


    रंग बिरंगे फूल से ,
                छाए बाग बहार ।
    भौरें भी मदमस्त हो ,
               झूमे मगन अपार ।।

    रखें भरोसा ईश पर ,
                 जीवन हो उजियार ।
    सदा प्रतिष्ठा मान से ,
                 छाए हर्ष बहार ।।

    घर में खुशी बहार है ,
                   अपने भी हैं साथ ।
    करे दिखावा प्रेम का ,
                   पकड़ रखे हैं हाथ ।।

    वन में आज बहार है ,
                   तरुवर कर श्रृंगार ।
    टेसू की ये लालिमा ,
                   करे बाग मनुहार ।।

    कर्म विजय का ध्येय धर ,
                  छाए देश बहार ।
    कहे रमा ये सर्वदा ,
                  सफल बने संसार ।।

                 मनोरमा चन्द्रा “रमा”
                     *रायपुर (छ.ग.)*

  • माँ कामाख्या की कथा

    माँ कामाख्या की कथा

    maa-par-hindi-kavita
    माँ पर कविता


    =================
    माँ कामाख्या की कथा,
    बता रहा है दीन।
    जिसकी सम्पति लुट चुकी,
    तन-मन भी है क्षीन।।
    यही दीन ऋण बोझ से ,
    था संतप्त मलीन।
    सूदखोर प्रति दिन कहे ,
    सूद पटा दे दीन।।
    था गरीब पर आन थी,
    उसकी भी कुछ शेष।
    माँ कामाख्या की करे,
    पूजा नित्य विशेष।।
    साहूकार सुबह-सुबह,
    आया लेने सूद।
    धन तो घर पर था नहीं,
    दी दुख आँखे मूंद ।।
    साहू ने यह कह दिया,
    धन के बदले आज।
    अपनी बेटी दो मुझे ,
    करो नहीं नाराज।।
    माँ कामाख्या दीन की,
    मति से बोलीं बात।
    आज दिवस तोहो गया,
    बीत जान दे रात।।
    कल मन्दिर मे पहुँच कर,
    बेटी का तुम हाथ।
    लेकर अपने हाथ में,
    ले जाना निज साथ।।
    माँ कामाख्या ने किया,
    अद्भुत सा व्यवहार।
    चीलों ने नोचा जहाँ,
    भागा साहूकार।।
    =================
    एन्०पी०विश्वकर्मा रायपुर
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  • मनीभाई के पिरामिड रचना

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★कलम,कागज,कलमकार★
    मैं
    एक
    अबूझ
    तुकबंदी
    कलमकार
    होता ज्यों व्यथित
    देता उसे आकार
    है मेरे सहचर
    कलम कागज
    मुखर नहीं
    मुझ जैसा
    निशब्द
    दोनों
    ही।

    मनीभाई”नवरत्न”

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★मरणासन्न★

    ये
    मेरी
    कौन सी
    है अवस्था
    जहाँ से अब
    दिखता है सच
    होने लगा पवित्र
    कैसी भुलभुलैया
    अब चला पता
    मरणासन्न
    हकीकत
    जिन्दगी
    दिखा
    दी।

    “मनीभाई”नवरत्न”

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★रिश्ते नातों का जाल★

    ये

    जग
    अजीब
    जहाँ पर
    होती सबकी
    अलग जिन्दगी
    तथापि समाहित
    रिश्ते नातों का जाल
    खट्टी मीठी यादें
    आगे बढ़ाती
    कहानी को
    हरेक
    सिरे
    में।
    “मनीभाई” नवरत्न,
    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★क्रांति का सैलाब ★

    है

    कष्ट
    अन्याय
    सह जाना
    क्यों नहीं लाते
    क्रांति का सैलाब
    एकता मशाल से
    सबके कमाल से
    हमारी खामोशी
    उन्हें बल दे
    हौसला दे
    अन्यायी
    होने
    की।
    “मनीभाई”नवरत्न”
    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★नैतिकता की पाठ ★

    हो

    रहे
    मां बाप
    असहाय
    अनैतिकता
    बढ़ रही आज
    भारी आवश्यकता
    नैतिकता की पाठ
    सभी को पढ़ना
    मांग बढ़ी
    प्रबल
    आज
    की।
    “मनीभाई”नवरत्न”

    मनीभाई के पिरामिड रचना

    ★न माने हार ★

    ये
    जान
    प्रयास
    है नाकाम
    न माने हार
    हसूँ निराधार
    लोग कहे बावला
    गम से है हारा
    बना असभ्य
    सामाजिक
    नहीं है
    अब
    ये।
    “मनीभाई”नवरत्न”