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  • जाने कैसे मैं ससुराल चली जाऊंगी

    जाने कैसे मैं ससुराल चली जाऊंगी

    शादी
    shadi

    कितना मुश्किल होगा ना तुम्हें भूल जाना
    यादों में तुम्हें लेके किसी और का हो जाना
    एक पल के लिए भी तुझे न भूल पाऊंगी
    जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी

    छोटी छोटी बातों पर मेरा हमेशा रूठ जाना
    याद आएगा मुझे तुम्हारे साथ यूं घूमने जाना
    तू जो पुकारे एक बार मुझे मैं दौड़ी आऊंगी
    जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी

    प्यार में तुम्हारी मुझे वो कसमें वादे दे जाना
    फिर भुला के सारे वादों को दूर हो जाना
    किसी और के साथ कैसे फिर वही कसमें खाऊंगी
    जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी

    जानती हूं तेरी मजबूरी है मेरे पास न आना
    मुश्किल होगा तेरे लिए भी मुझको भूल जाना
    जानती हूं दर्द तेरा मैं कैसे रह पाऊंगी
    जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी

    यूं सारी समझदारी हम पर आ जाना
    साथ रहने का न बचता कोई बहाना
    एक पल भी मैं तेरी यादों से न जाऊंगी
    जाने कैसे मैं ससुराल को चली जाऊंगी

    जहां एक पल की दूरी भी था मुश्किल सह पाना
    क्या मुमकिन होगा तेरे बिना रह पाना
    अब कभी न मैं तुमसे मिलने आऊंगी
    जाने कैसे मैं सुसराल को चली जाऊंगी

    ना गलती तेरी है न मुझसे हुआ तेरा हो पाना
    हो सके तो जाते जाते मुझको माफी दे जाना
    अब बाबुल की में रीत निभाऊंगी
    जाने कैसे मैं ससुराल को चली जाऊंगी

    रीता प्रधान

  • जीवन नहीं मरा करता है – गोपाल दास नीरज

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    जीवन नहीं मरा करता है-गोपाल दास नीरज

    छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
    कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

    सपना क्या है, नयन सेज पर
    सोया हुआ आँख का पानी
    और टूटना है उसका ज्यों
    जागे कच्ची नींद जवानी
    गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
    कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

    माला बिखर गयी तो क्या है
    खुद ही हल हो गयी समस्या
    आँसू गर नीलाम हुए तो
    समझो पूरी हुई तपस्या
    रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
    कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

    खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
    केवल जिल्द बदलती पोथी
    जैसे रात उतार चांदनी
    पहने सुबह धूप की धोती
    वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
    चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

    लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
    शिकन न आई पनघट पर,
    लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
    चहल-पहल वो ही है तट पर,
    तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
    लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

    लूट लिया माली ने उपवन,
    लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
    तूफानों तक ने छेड़ा पर,
    खिड़की बन्द न हुई धूल की,
    नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
    कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

  • जाने तुम कहां गए

    kavita

    जाने तुम कहां गए – मेरी रचना

    अरमानों से सींच बगिया,
    जाने तुम कहां गए।
    अंगुली पकड़ चलना सीखाकर,
    जाने तुम कहां गए।।

    सच्चाई के पथ हमको चलाकर,
    जाने तुम कहां गए।
    हमारे दिलों में घर बनाकर,
    जाने तुम कहां गए।।

    तुम क्या जानो क्या क्या बीती,
    तुम्हारे बनाए उसूलों पर।।

    वृद्धाश्रम में मां को छोड़ा,
    बेमेल विवाह मेरा कराया।
    छोटे की पढ़ाई छुड़ाकर,
    फैक्ट्री का मजदूर बनाया।।

    पुश्तेनी अपना मकान बेच,
    अपना बंगला बना लिया।
    किस्मत हमारी फूटी निकली,
    आपको काल ने ग्रास बना लिया।।

    बंधी झाड़ू गई बिखर बिखर,
    ना जाने तुम कहां गये।
    यूं मझधार में छोड़ बाबूजी,
    ना जाने तुम कहां गये।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
    9928305806

  • मन की आंखें

    मन की आंखें

    आँखे

    पात्र परिचय :-
    रागिनी –  एक कामकाजी लड़की।
    राजन-    अंधा व्यक्ति ।
    राहुल –   रागिनी की सहकर्मी ।

    (रागिनी अपनी ऑफिस की ओर जा रही थी। रास्ते में एक अंधा आदमी सड़क किनारे खड़ा हुआ सड़क पार करने की कोशिश रहा था ।)

    रागिनी : (ऑटो से ही)
    भैया !अभी मुझे अपने ऑफिस तक नहीं जानी है। मुझे बस यही साइड में ड्राप कर दीजिए। (ऑटो से उतर कर सीधे अंधे आदमी के पास रागिनी पहुंचती है।)

    रागिनी : (अंधे आदमी से )क्या मैं आपको रास्ता पार करने में मदद कर दूँ ?

    राजन : हां जरूर! रोज कोई न कोई सहारा दे देता है । पर आज …….

    रागिनी : (झट से हाथ पकड़ते हुए) आज मैं हूं ना! राजन : धन्यवाद !

    रागिनी : वैसे आप सुबह-सुबह कहां गए थे?
    (दोनों सड़क पार करते हुए )

    राजन : जी ! यही पास के मंदिर में ईश्वर दर्शन के लिए ……


    रागिनी : (आश्चर्य से) ईश्वर दर्शन ! 
    पर आप ईश्वर के दर्शन कैसे करते होंगे?मतलब आपके आँखें …..

    राजन : क्यों? मैं दृष्टिहीन हूं इसलिए …..
    पर ईश्वर दर्शन तो मन की आंखों से की जाती है ना । ईश्वर को मन से पुकारा जाता है और मन से ही पूजा की जाती है ।

    रागिनी : मतलब ? राजन : मैंने कुछ समय पहले ईश् को स्मरण  किया कि वह अपना दूत भेजें और मुझे सड़क पार करा दें। और फिर देखो, उसने आखिर तुम्हें भेज ही दिया ।

    रागिनी : पर यहां तो मैं ही हूं।कोई ईश्वर का दूत नहीं ।

    राजन : यह तुम्हारी सोच है ।जो तुम अपने अंदर के ईश्वर को नहीं देख पा रही हो। रागिनी :(हंसती हुई )मेरे अंदर  में ईश्वर ……

    राजन : हां ! पर तुम्हें  मेरी बात जल्दी समझ नहीं आएगी क्योंकि तुम्हारे दोनों आंखों ने बाह्यस्वरूप को देखा है। ईश्वर के आंतरिक अनुभूति नहीं कर पाई हो।

    ( सड़क पार हो चुका था ।इस बीच रागिनी और राजन के बीच पहचान हो जाती है।रागिनी फिर से ऑफिस जाने को होती है ।)

    (आफिस में)

    रागिनी :(राहुल से ) राहुल ! क्या तुमने ईश्वर को देखा है ?

    राहुल : नहीं तो ,पर क्यों ?

    रागिनी : आज मैं एक अंधे आदमी से मिली थी । जो यह कह रहा था कि ईश्वर के दर्शन तो मन की आंखों से की जाती है ।(मुस्कराते हुए )और मुझे ईश्वर के दूत की संज्ञा दे रहा था ।

    राहुल : फिर तो जरूर तुमने उसके साथ कुछ अच्छा किया होगा ? रागिनी:  मैंने तो बस उसे सड़क पार करने में मदद की थी ।शायद इसलिए ………

    राहुल : ( दिल्लगी करते हुए) पर हमें तो तुम सामान्य लड़की ही नजर आती हो ,और ईश्वर के दूत तो कभी नहीं ।

    रागिनी :(चिढ़ते हुए )और तुम मुझे शैतान….. ( अगला दिन ) राजन वही सड़क किनारे पर खड़ा हुआ था। रागिनी दूसरे दिन भी राजन के पास जाती है ।)

    रागिनी : कैसे हो राजन? राजन : कौन रागिनी ? रागिनी : नहीं , ईश्वर का दूत! (हंसते हुए)
    ( राजन भी हंसता है )

    रागिनी: इससे पहले मैंने इतना अच्छा अनुभव कभी नहीं किया था। ऐसा लगा मानो आपकी आंखों से ईश्वर का दर्शन कर लिया हो ।

    राजन : पर रागिनी, मेरी तो आंखें नहीं।

    रागिनी : पर मन की आंखें तो है ।जिससे मैंने ईश्वर का दर्शन कर लिया।और अब मैं अधिक से अधिक लोगों की सेवा करना चाहती हूं ।

    राजन : काश! तुम्हारी  जैसे सभी लोगों की दृष्टि बदल जाती तो पूरी श्रृष्टि  ही बदल जाती ।


    (बातोंबात में राजन और रागिनी के बीच मित्रता के बीज अंकुरित होने लगे थे)

    (अगला दिन)

    (रागिनी दूर से ही राजन को निगाह डाले हुई थी। पर वह जानबूझकर राजन के पास नहीं जाती है ।वह देखना चाहती थी कि आज राजन किसकी मदद से सड़क पार करेगा ? परंतु जो भी मददगार उसके पास पहुँचता वह सड़क पार करने से मना कर देता। कुछ समय बाद अचानक सड़क पर दुर्घटना से भीड़ जमा हो जाती है।मोटरसायकिल गिरा पड़ा था । रागिनी जल्द ही  घटनास्थल पर पहुंच जाती  है।)

    एक बाइक वाला:  (राजन से क्रोधित स्वर में) अंधे होकर भी घर से अकेले क्यूँ निकलते हो? एक दिन खुद तो मरोगे, दूसरे को भी ले डुबोगे ।


    (राजन वहीं सकपकाया हुआ चुपचाप खड़ा हुआ था। रागिनी बाइक चालक  को शांत कराती है और भीड़ के  हटने का इंतजार करती है।)

    रागिनी :(राजन से ) इस तरह आप कब तक  अकेले सड़क पार करते रहेंगे ? हर दिन ईश्वर अपना कोई दूत तो नहीं भेज सकता ना।

    राजन : (रौंधे हुये धीमी स्वर में) आज मुझे ईश्वर के दूत की नहीं बल्कि अपने दोस्त की प्रतीक्षा थी। (रागिनी की आंखें अश्रु से डबडबा जाती है )

    रागिनी : (माफी मांगते हुए करूण स्वर में) मैं बहुत शर्मिन्दा हूं।मुझे माफ कर दो, राजन।

    राजन: जिनके मित्र होते हैं ,उन्हें किसी ईश्वर की जरूरत नहीं होती है । (राजन और रागिनी दोनों मित्रता के भाव में डूब जाते हैं ।)

    (पर्दा गिरता है ) समाप्त ।

    (एकांकीकार :- मनीलाल पटेल ” मनीभाई ” भौंरादादर बसना महासमुंद ( छग ) Contact : 7746075884 [email protected] )

  • आ सनम आ मेरे दिल में तू आ

    आ सनम आ मेरे दिल में तू आ

    प्रेम
    मनीभाई नवरत्न

    आ सनम आ ,मेरे दिल में तू आ।
    आ सनम आ मेरे दिल को चुराके जा ।

    जाने जा मैंने तुम्हें प्यार किया ।
    रात दिन तुझे याद किया ।
    अब तो मुझसे रूठ के ना जा जा ।।

    फूलों से खुशबू आ रही ।
    भंवरे झुमके यह गा रही ।
    मैंने तुम्हें चाहा हां हां हां ।।

    मेरे दिल में तू ,तू है धड़कन में ।
    मेरे सांसो में तू, तू ही यादों में।
    तू ही तू चारों तरफ जाना आ आ।।

    मनीभाई”नवरत्न