Blog

  • भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    Republic day

    भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    धरा हरित नभ श्वेत, सूर्य केसरिया बाना।
    सज्जित शुभ परिवेश,लगे है सुभग सुहाना।।
    धरे तिरंगा वेश, प्रकृति सुख स्वर्ग लजाती।
    पावन भारत देश, सुखद संस्कृति जन भाती।।

    भारत गर्वित आज,पर्व गणतंत्र हमारा।
    फहरा ध्वज आकाश,तिरंगा सबसे प्यारा।।
    केसरिया है उच्च,त्याग की याद दिलाता।
    आजादी का मूल्य,सदा सबको समझाता।।

    सिर केसरिया पाग,वीर की शोभा होती।
    सब कुछ कर बलिदान,देश की आन सँजोती।।
    शोभित पाग समान,शीश केसरिया बाना।
    देशभक्त की शान,इसलिए ऊपर ताना।।

    श्वेत शांति का मार्ग, सदा हमको दिखलाता।
    रहो एकता धार, यही सबको समझाता।।
    रहे शांत परिवेश , उन्नति चक्र चलेगा।
    बनो नेक फिर एक,तभी तो देश फलेगा।।

    समय चक्र निर्बाध,सदा देखो चलता है।
    मध्य विराजित चक्र, हमें यह सब कहता है।।
    भाँति भाँति ले बीज,फसल तुम नित्य लगाओ।।
    शस्य श्यामला देश, सभी श्रमपूर्वक पाओ।।

    धरतीपुत्र किसान, तुम इनका मान बढ़ाओ।
    करो इन्हें खुशहाल,समस्या मूल मिटाओ।।
    रक्षक देश जवान, शान है वीर हमारा।
    माटी पुत्र किसान,बनालो राज दुलारा।।

    अपना एक विधान , देश के लिए बनाया।
    संशोधन के योग्य, लचीला उसे सजाया।।
    देश काल परिवेश ,देखकर उसे सुधारें।
    कठिनाई को देख, समस्या सभी निवारें।।

    अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा।
    शुभ संस्कृति परिवेश,तिरंगा सबसे न्यारा।।
    बँधे एकता सूत्र, पर्व गणतंत्र मनाएँ।
    विश्व शांति बन दूत,गान भारत की गाएँ।।

    --गीता उपाध्याय'मंजरी' रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • गणतंत्र गाथा / बाबू लाल शर्मा ” बौहरा ”

    गणतंत्र गाथा / बाबू लाल शर्मा ” बौहरा ”

    Republic day

    गणतंत्र गाथा / बाबू लाल शर्मा ” बौहरा ”

    पुरा कहानी,याद सभी को, मेरे देश जहाँन की।
    कहें सुने गणतंत्र सु गाथा, अपने देश महान की।

    सन सत्तावन की गाथाएँ,आजादी हित वीर नमन।
    रानी झाँसी नाना साहब, ताँत्या से रणधीर नमन।

    तब से आजादी तक देखो,युद्व रहा ये जारी था।
    वीर हमारे नित मरते थे, दर्द गुलामी भारी था।

    जलियाँवाला बाग बताता, नर संहार कहानी को।
    भगतसिंह की फाँसी कहती, इंकलाब की वानी को।

    शेखर बिस्मिल ऊधम जैसे, थे कितने ही बलिदानी।
    कितने जेलों में दम तोड़े, कितनों ने काले पानी।

    बोस सुभाष गोखले गाँधी, कितने नाम गिनाऊँ मैं।
    अंग्रेजों के अनाचार के, कैसे किस्से गाऊँ मैं।

    गाँधी की आँधी,गोरों के,आँख किरकिरी आई थी।
    विश्वयुद्ध से सबक मिला था,कुछ नरमाई आई थी।

    आजादी हित डटे रहे वे, देशभक्त सेनानी थे।
    क्रांति बीज से फसल उगाते,मातृभूमि अरमानी थे।

    आखिर मे दो टुकड़े होके,मिली देश को आजादी।
    हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़के, खूब हुई थी बरबादी।

    संविधान परिषद ने ऐसा,नया विधान बनाया था।
    छब्बीस जनवरी सन पचास,में लागू करवाया था।

    बना देश गणतंत्र हमारा,खुशियाँ के त्यौहार मने।
    राष्ट्रपति व संसद भारत के,मतदाता हर बार चुने।

    आज विश्व मे चमके भारत,ध्रुवतारे सा बन स्वतंत्र।
    करें वंदना भारत माँ की, रहे सखे अमर गणतंत्र।

    लोकतंत्र सरताज विश्व में,लिखे शोध संविधान है।
    लाल किले लहराय तिरंगा, ऐसे लिए अरमान है।

    उत्तर पहरेदार हमारा, पर्वत राज हिमालय है।
    संसद ही सर्वोच्च हमारी, संवादी देवालय है।

    आज विश्व में भारत माँ के,घर घर मे खुशहाली है।
    गणतंत्र पर्व के स्वागत को, सजे आरती थाली है।

    सेना है मजबूत हमारी, बलिदानी है परिपाटी।
    नमन करें हम भारत भू को,और चूमलें यह माटी।

    गणतंत्र रहे सम्मानित ही, मेरे प्राण रहे न रहे।
    ऊँचा रहे तिरंगा अपना, मन में यह अरमान रहे।


    ✍✍©
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”
    सिकंदरा,303326
    दौसा,राजस्थान,9782924479
    🏉🏉🏉🏉🏉🏉🏉

  • हिन्द देश के वीर/बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”

    हिन्द देश के वीर/बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”

    Republic day

    हिन्द देश के वीर/बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”


    आजादी का पर्व ये, हर्षित सारा देश।
    छाई खुशियाँ हर तरफ, खिला-खिला परिवेश।।
    खिला – खिला परिवेश, गीत हर्षित हो गाए।
    मना रहे गणतंत्र, तिरंगा नभ लहराए।।
    थे सब वीर महान, जिन्होंने जान लगा दी।
    आया दिन ये खास, मिली हमको आजादी।।

    भारतवासी एक सब, एक हमारा धर्म।
    जाति-पाति सब भूलकर, देशभक्ति है कर्म।।
    देशभक्ति है कर्म, सभी को भारत प्यारा।
    देश-प्रेम का भाव, जगत में सबसे न्यारा।।
    धरा ईश की पुण्य, कटे सबकी चौरासी।
    हिन्द धरा पर जन्म, धन्य हम भारतवासी।।

    अपने भारत देश की, देख निराली शान।
    रखे सकल संसार में, एक अलग पहचान।।
    एक अलग पहचान, सभी से भाई चारा।
    जाति-पाति सब भूल, नहीं कोई भी न्यारा।।
    हिन्द धरा हो जन्म, सभी देखें बहुसपने।
    यहाँ जन्म भर साथ, निभाते सारे अपने।।

    करते सेवा देश की, होते सच्चे वीर।
    देश प्रेम की भावना, रखे हृदय में धीर।।
    रखे हृदय में धीर, वतन पर दें कुर्बानी।
    हिन्द देश का नाम, रहे ऊँचा ये ठानी।।
    हिन्द देश के वीर, नहीं दुश्मन से डरते।
    विपदा को दे मात, वही तो सेवा करते।।

    बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”

  • आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ /डॉ.अमित कुमार दवे

    आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ /डॉ.अमित कुमार दवे

    Republic day

    आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ /डॉ.अमित कुमार दवे

    आओ जन-गण-मन को ऊपर उठाएँ,
    नित नवीन विचारों की शृंखला बनाएँ।
    हर चेहरे को फिर… वैसा ही महकाएँ,
    आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ।।1।।

    त्याग-संयम-सहयोग सदा हो सहचर
    ऐसी संस्कारित आदर्श पीढ़ी बनाएँ।
    सदा सामर्थ्य जो निज कांधों में बसाएँ
    आओ! मिलकर गणराज भारत बनाएँ।।2।।

    प्राचीन राष्ट्रगौरव फिर अर्वाचीन करवाएँ,
    जीवन्त संस्कृति अब जग में वितराएँ।
    वैयक्तिक जीवन अबसामाजिक बनाएँ
    आओ! मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ।।3।।

    मानस की अनैतिक ग्रन्थियाँ हटवाएँ..,
    भेद बेटा-बेटी का समाज में मिटवाएँ।
    आधी आबादी का भी सामर्थ्य जानें…
    विकास राष्ट्र का तब सुनिश्चित माने।।4।।

    छल-कपट-भ्रष्टाचार को समूल मिटाएँ,
    आओ! मिलकर फिर संकल्प दोहराएँ।
    राजनीति को शुद्ध- विवेकी शुभ्र बनाएँ..
    आओ!मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ।।5।।

    सच देश में बच्चों का बचपन बचवाएँ
    हर बचपन को सुदृढ़-सुनहरा बढ़वाएँ।
    शिक्षा का हर तरफ प्रकाश करवाएँ..
    आओ!मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ।।6।।

    हर जन के सपनो को साकार करें..वो
    योजनाएँ निर्माण और अमल करवाएँ।
    राष्ट्रीय जनश्रम नित उद्योगों में लगवाएँ,
    आओ! मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ।।7।।

    स्वार्थ रहित सहयोग सहित व्यवहार
    अब राष्ट्र का फिर व्यापार बनवाएँ।
    केवल देने ही देने के भावों को अब
    सर्वोच्च गणतंत्र में सूत्र वाक्य बनाएँ।।8।।

    आओ! जनजीवन कुछ पुरा अपनाएँ,
    खुद को खुद से कुछ ऊपर उठवाएँ।
    मर्म विश्व को फिर भारत का बतलाएँ,
    आओ! मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ।।9।।


    डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा

  • आजा अब परदेशिया

    आजा अब परदेशिया

    आजा अब परदेशिया , तरस रहे हैं नैन ।
    बाट जोहती हूँ खड़ी , पल भर खोजूँ चैन ।।
    पल भर खोजूँ चैन , लगे जग सारा सूना ।
    सावन भादो मास , अश्रु अब बढ़ते दूना ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , झलक अपना दिखला जा ।
    मिलन करो मनमीत , शीघ्रता से घर आजा ।।

    आजा मेरे गाँव में , न्यौता देता आज ।
    बागीचे हैं प्यार के , बजे यहाँ शुभ साज ।।
    बजे यहाँ शुभ साज , शांति चहुँदिशि है छाई ।
    प्रेम और विश्वास , गान स्वागत सुखदाई ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , पता अपना बतला जा ।
    आमंत्रण स्वीकार , परम सुख पाने आजा ।।

    आजा मन सत्संग में ,जो चाहो विश्राम ।
    दौड़धूप की जिंदगी , त्याग जगत के काम ।।
    त्याग जगत के काम , कभी सब भार उतारो ।
    पाले परमानंद , भाग्य को स्वयं सँवारो ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,सुनो तुम अनहद बाजा ।
    नित्य शांति अभ्यास , हेतु अब तो आजा ।।

    ---- रामनाथ साहू " ननकी " मुरलीडीह