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  • हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

    हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम

    हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।
    उम्मीदें रखो दिल पर छोड़ो ना लगाम।

    आंधी आ जाए ,घरोंदे टूट जाए।
    आंधी थमने दो, जो हुआ रहने दो।
    फिर से बनाओ अपना मुकाम ।।
    हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

    माथे पे पसीना आकर सुख जाए ।
    मेहनत ऐसी कि आलस झुक जाए ।
    हाथ चले तब तक जब मिले अंजाम ।
    हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

    नई किरणें लिए सूर्य का धूप
    खिलते जाएंगे इसमें कई रूप।
    हर रूप का होगा नया नाम।।
    हर शाम सुबह होने का देती है पैगाम।

  • एक पेड़ की दो शाखाएं

    एक पेड़ की दो शाखाएं

    एक पेड़ की दो शाखाएं ,
    एक हरी तो एक सुखी ।
    एक तनी तो एक झुकी।।
    ऐसे ही जीवन में दो पहलू है
    कोई जश्ने चूर है तो कोई दुखी।।
    जब तक होठों में प्यास है ।
    तब तक कोई उदास है ।।
    खिलते हैं होंठ फिर से
    जब प्यास बुझी बुझी ।।
    ऐसे ही ….

    जब दुनिया ही गोल है ,
    फिर पैसे का क्या मोल है ?
    समय ही अनमोल है ,तो
    क्यों है तू रुकी रुकी ।।

    ऐसे ही जीवन……

  • ऑनलाइन पढ़ाई

    ऑनलाइन पढ़ाई

    आ गई बोर्ड परीक्षा,फिर होगी रिजल्ट की समीक्षा
    पढ़ाई ने सब को कर दिया handsup,सबकी पसंद है व्हाट्सएप।
    साल भर कोरोना में मस्त थे ,अब परीक्षा आने वाली है तो त्रस्त है।
    शिक्षकों ने खूब समझाया पढ़ो लो बेटा ,ऑनलाइन आ जाओबेटा।
    पर बेटा कहां समझता जी गुरुजी जी गुरुजी कहते कहते साल निकाल दिया।
    ऑनलाइन पढ़ाई के भी अपने मज़े थे,हम ने सीरियस नहीं लिया हम गधे थे।
    अब भी दिन बचे हैं भाई ,जोर लगाओ और करो बोर्ड परीक्षा पर चढ़ाई।
    मां पिता की मेहनत को यूं ही नहीं है मिट्टी में मिलाना
    अच्छे अंकों से पास होकर अब हमने है दिखलाना।
    गुरुजी के आशीर्वाद को लेकर हमने दुनिया में है छाना
    अक्ल आई तब हमने है इस बात को माना।

  • और शाम हो जाती है

    और शाम हो जाती है


    हर सुबह जिंदगी को बुनने चलता हूं

    उठता हूं,गिरता हूं,संभालता हूं और शाम हो जाती है।
    अपने को खोजता हूं,

    सपने नए संजोता हूं

    पूरा करने तक शाम हो जाती है।
    जिंदगी तुझे समझने में,

    दिल तुझे समझाने की कश्मकश में शाम हो जाती है।
    सुखों को समेटता दुखों को लाधता कुछ समझ पाऊं इस से पहले शाम हो जाती है।
    धुंधली कभी आशा की एक किरण आती है

    पकड़ पाऊं उसे के शाम हो जाती है।
    सबके भरोसे पर खरा उतरता हूं

    जब अपनी बारी आती है तो शाम हो जाती है।
    फलसफा ये जिन्दग़ी का कैसा है

    इसे महसूस करूं इसमें ही उम्र गुजर जाती है और शाम हो जाती है।
    राग,द्वेष भावना सारी उम्र भर कमाते है,

    पुण्य इन्सान कमाने चले तो शाम हो जाती है।

  • युवाओं के प्रेरणास्रोत- स्वामी विवेकानंद

    युवाओं के प्रेरणास्रोत- स्वामी विवेकानंद

    युवाओं के प्रेरणास्रोत

    स्वामी विवेकानंद
    स्वामी विवेकानंद

    दिव्य सोच साधना से अपनी,पावन ज्ञान का दीप जलाया।
    सोए लोगों की आत्मा को,स्वामी जी ने पहली बार जगाया।
    भगवा हिंदुत्व का संदेश सुनाकर,भारत को विश्वगुरु बनाया।
    तंद्रा में सोई दुनिया के लोगों को,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज ने जगाया।

    11 सितंबर1893 को शिकागो में हिंदुत्व का ध्वज फहराया।
    संभव की सीमा से परे,असंभव को भी कर दिखलाया।
    समता,ममता से परहित परोपकार का मंत्र जो बतलाया।
    रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ का प्रेरणा पुंज फैलाया।

    प्रेम योग से भक्ति योग के सफर को जीना सिखलाया।
    नव भारत के स्वप्नदृष्टा,इंसानियत का पाठ है पढ़ाया।
    ज्ञान,भक्ति,त्याग,तप साधना समर्पण से ही बाल नरेंद्र।
    आत्मज्ञानी,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज स्वामी विवेकानंद कहलाया।

    12जनवरी 1863 मकर संक्रांति के दिन कलकत्ता में जन्मे विवेकानंद।
    पिता विश्वनाथ दत्त व माँ भुवनेश्वरी देवी को दिव्यशक्ति ने किया आनंद।
    भगवा वसन,भगवा साफा,लाल रंग के कपड़े का था उनका कमरबंद।
    भारतीयता का उदघोषक,आत्मविश्वास से जीने वाला फैलाता सुगंध।

    चेहरे पर आकाश की थी व्याप्ति,हृदय में सिंधु सी अतल गहराई थी।
    कदमों में प्रकृति सी अपरिमित गति,मृगनयनों से दिव्यता दिखलाई थी।
    व्यक्तित्व में कठिन तप की ऊष्मा,मंजी देह से झरता था संयम का अनुनाद।
    दृढ़ प्रतिज्ञ सन्यासी ने भारत को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने की बीड़ा उठाई थी।

    तार्किक ओजस्वी वाणी इनकी प्रतिभा मेधा का सबने लोहा माना।
    भाई बहन के संबोधन से शुरू होता वक्तव्य जग ने पहली बार जाना।
    सनातन धर्म की संस्कृति विरासत को विश्व ने पहली बार पहचाना।
    विवेकानंद की वाणी से गूँज उठा शिकागो धर्मसभा का कोना कोना।

    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री