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  • ख़यालों पर कविता

    ख़यालों पर कविता

    तुम मेरे ख़यालों में होते हो
    मैं ख़ुशनसीब होता हूँ
    बात चलती है तुम्हारी जहाँ
    मैं ज़िक्र में होता हूँ .

    पलकें बंद होती नहीं रातों को
    यादों को तुम्हारी आदत है
    रातों की सियाही कटती नहीं
    मैं फ़िक़्र में होता हूँ.

    क़तरा – क़तरा सुकूँ ज़िन्दगी में
    जमा होता है, यक-ब-यक नहीं
    लुट जाता है ये सब अचानक
    मैं हिज़्र में होता हूँ .

    ढूँढता रहा हर सू ताउम्र
    चमन में बारहा इक़ अपनाइयत
    न मिला रहमत कोई यहाँ
    मैं खिज्र में होता हूँ .

    ?

    ✒राजेश पाण्डेय *अब्र*

  • शृंगार छंद विधान

    शृंगार छंद विधान

    शृंगार छंद विधान

    • १६ मात्रिक छंद
    • आदि में ३,२ त्रिकल द्विकल
    • अंत में २,३ द्विकल त्रिकल
    • दो दो चरण सम तुकांत
    • चार चरण का एक छंद
    mera bharat mahan
    hindi vividh chhand || हिन्दी विविध छंद

    श्रेष्ठ हो मेरा हिन्दुस्तान

    आरती चाह रही है मात।
    भारती अंक मोद विज्ञात।
    सैनिको करो प्रतिज्ञा आज।
    शस्त्र लो संग युद्ध के साज।

    विश्व मानवता हित में कर्म।
    सत्य है यही हमारा धर्म।
    आज आतंक मिटाना मीत।
    विश्व की सबसे भारी जीत।

    पाक को पाठ पढाओ वीर।
    धारणा में बस रखना धीर।
    भावना देश हितैषी पाल।
    कूदना बन दुश्मन का काल।

    वंदना मातृ भूमि की बोल।
    शंख या बजा युद्ध के ढोल।
    गंग सौगंध निभे मन प्रीत।
    मात का दूध त्याग की रीत।

    सूर्य में तम को ढूँढे पाक।
    सिंह पूतो पर थोथी धाक।
    प्रश्न है संग हुए आजाद।
    पाक पापी न हुआ आबाद।

    रोक क्या सके विकासी गान।
    शत्रु को सिखलादो ये ज्ञान।
    एकता की दे कर आवाज।
    तोड़ दो आतंकों का राज।

    जोड़ दो मन से मन की तान।
    भारती की रखनी है शान।
    उच्च हो ध्वजा तिरंगा मान।
    श्रेष्ठ हो मेरा हिन्दुस्तान।

    बाबू लाल शर्मा बौहरा
    सिकंदरा दौसा राजस्थान

  • साजन पर कविता

    साजन पर कविता

    मंद हवा तरु पात हिले,
    नचि लागत फागुन में सजनी।
    लाल महावर हाथ हिना,
    पद पायल साजत है बजनी।
    आय समीर बजे पतरा,
    झट पाँव बढ़े सजनी धरनी।
    बात कहूँ सजनी सपने,
    नित आवत साजन हैं रजनी।


    फूल खिले भँवरा भ्रमरे,
    तब आय बसे सजना चित में।
    तीतर मोर पपीह सबै,
    जब बोलत बोल पिया हित में।
    फागुन आवन की कहते,
    पिव बाट निहार रही नित में।
    प्रीत सुरीति निभाइ नहीं,
    विरहा तन चैन परे कित में।
    .


    भंग चढ़े बज चंग रही,
    . मन शूल उठे मचलावन को।
    होलि मचे हुलियार बढ़े,
    . तन रंग गुलाल लगावन को।
    नैन भरे जल बूँद ढरे,
    . पिक कूँजत प्रान जलावन को।
    आय मिलो अब मोहि पिया,
    . मन बाँट निहारत आवन को।


    प्राण तजूँ परिवार तजूँ,
    . सब मान तजूँ हिय हारत हूँ।
    प्रीत करी फिर रीत घटी,
    . मन प्राण पिया अब आरत हूँ।
    आन मिलो सजना नत मैं,
    . विरहातप काय पजारत हूँ।
    मीत मिले अगले जनमों,
    . बस प्रीतम प्रीत सँभारत हूँ।
    . ???

    ✍?©
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”
    सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
    ??????????

  • सौ प्यास कैसे बुझे पर कविता

    सौ प्यास कैसे बुझे पर कविता

    मुझे कुछ ना सुझे
    भला एक बूंद में
    सौ प्यास कैसे बुझे ?
    तू मेरी ना सोच ,
    जा किसी चोंच
    अमृत बन .
    मेरी यही नियति है
    कि तड़प मरूँ
    अति महत्वाकांक्षा में.
    अब जान पाया हूं
    कि उचित है
    सफर करना शून्य से शिखर तक.
    जीवन की ढलान
    होती है भयानक
    और उससे भी कटु
    मेरी ये अकड़
    जो झुके तो भी ना टूटे .
    जो बचाया ना कभी एक बूंद
    उसके सूखे अधर को
    भला एक बूंद कैसे रूचे?

  • ख्वाहिश पर कविता

    ख्वाहिश पर कविता

    मिट्टी से बना हूं मैं , मिट्टी में मिल जाऊंगा।
    जब तक हूँ अस्तित्व में ,रौशनी कर जाऊंगा।।

    तम छाया है हर तरफ,सात्विकता बढ़ाऊंगा।
    विवेक को जगा कर मैं,रोशनी कर जाऊंगा।।

    विनय रूपी भरूँ तेल ,धैर्य की बाती बनाऊंगा।
    सतत ज्ञान बढ़ाकर मैं ,रौशनी कर जाऊंगा।।

    उत्साह है मेरे अंदर, सभी में भर जाऊंगा।
    ख्वाहिश बस एक मेरी, रौशनी कर जाऊंगा।।

    मधुसिंघी