ख़यालों पर कविता
तुम मेरे ख़यालों में होते हो
मैं ख़ुशनसीब होता हूँ
बात चलती है तुम्हारी जहाँ
मैं ज़िक्र में होता हूँ .
पलकें बंद होती नहीं रातों को
यादों को तुम्हारी आदत है
रातों की सियाही कटती नहीं
मैं फ़िक़्र में होता हूँ.
क़तरा – क़तरा सुकूँ ज़िन्दगी में
जमा होता है, यक-ब-यक नहीं
लुट जाता है ये सब अचानक
मैं हिज़्र में होता हूँ .
ढूँढता रहा हर सू ताउम्र
चमन में बारहा इक़ अपनाइयत
न मिला रहमत कोई यहाँ
मैं खिज्र में होता हूँ .
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✒राजेश पाण्डेय *अब्र*