Blog

  • सत्य पर कविता

    सत्य पर कविता

    मैं कल भी अकेला था
    आज भी अकेला हूं
    और संघर्ष पथ पर
    हमेशा अकेला ही रहूंगा

    मैं किसी धर्म का नहीं
    मैं किसी दल का नहीं
    सम्मुख आने से मेरे
    भयभीत होते सभी

    जानते हैं सब मुझको
    परंतु स्वीकार करना चाहते नहीं
    मैं तो सबका हूं
    किंतु कोई मेरा नहीं

    फिर भी मैं किसी से डरता नहीं
    ना कभी झुकता हूं
    ना कभी टूटता हूं
    याचना मैं करता नहीं
    संघर्षों से थकता नहीं

    झुक जाते हैं लोचन सबके
    जब मैं नैन मिलाता हूं
    क्योंकि मैं सत्य हूं
    केवल सत्य हूं

    बादलों द्वारा ढक जाने से
    गति सूर्य की रुकती नहीं
    कितनी भी हो विपरीत परिस्थितियां
    परंतु मेरी पराजय कभी होती नहीं

    :- आलोक कौशिक

    संक्षिप्त परिचय:-

    नाम- आलोक कौशिक
    शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
    पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
    साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
    पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
    अणुडाक- [email protected]

  • होली चालीसा – बाबू लाल शर्मा

    होली चालीसा – बाबू लाल शर्मा

    होली चालीसा :-चालीसा हिंदू धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा के लिए गायी जाने वाली प्रार्थना होती है। ये प्रार्थनाएँ विशेष रूप से उन देवी-देवताओं को समर्पित की जाती हैं जिन्हें मान्यता है कि उनकी शक्ति और कृपा से भक्तों की समस्त मांग पूरी होती है। चालीसा के पाठ के माध्यम से भक्त अपने मनोकामनाओं को पूरा करने, संतोष, शांति और धार्मिक संगति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कुछ प्रमुख चालीसा श्री हनुमान चालीसा, श्री दुर्गा चालीसा, श्री लक्ष्मी चालीसा, श्री गणेश चालीसा, श्री शनिदेव चालीसा, श्री साईं बाबा चालीसा आदि हैं।

    होली चालीसा – बाबू लाल शर्मा

    होली चालीसा - बाबू लाल शर्मा
    Holi par kavita

    याद करें प्रल्हाद को,भले भलाई प्रीत।
    तजें बुराई मानवी, यही होलिका रीत।।


    हे शिव सुत गौरी के नंदन।
    करूँ आपका नित अभिनंदन।।१

    मातु शारदे वंदन गाता।
    भाव गीत कविता में आता।।२

    भारत है अति देश विशाला।
    विविध धर्म संस्कृतियों वाला।।३

    नित मनते त्यौहार अनोखे।
    मेल मिलाप,रिवाजें चोखे।।४

    दीवाली अरु ईद मनाएँ।
    फोड़ पटाखे आयत गाएँ।।५

    रोजे रखें करे नवराते।
    जैनी पर्व सुगंध मनाते।।६

    मकर ताजिए लोह्ड़ी मनते।
    खीर सिवैंया घर घर बनते।।७

    एक बने हम भले विविधता।
    भारत में है निजता समता।।८

    क्रिसमस से गुरु दिवस मनाते।
    गुरु गोविंद से नेह निभाते।।९

    भिन्न धर्म भल भिन्न सु भाषा।
    देश एकता मन अभिलाषा।।१०

    मकर गये आये बासन्ती।
    प्राकृत धरा सुरंगी बनती।।११

    विटप लता कलि पुष्प नवीना।
    उत्तम जीवन कलुष विहीना।।१२

    झूमे फसल चले पछुवाई।
    प्राकृत नव तरुणाई पाई।।१३

    अल्हड़ नर नारी मन गावे।
    फागुन मानो होली आवे।।१४

    होली है त्यौहार अजूबा।
    लगे बाँधने सब मंसूबा।।१५

    खेल कबड्डी रसिया भाते।
    होली पर पहले से गाते।।१६

    पकती फसल कृषक मन हरषे।
    तन मन नेह नयन से बरसे।।१७

    प्रीत रीत की राग सुनाती।
    कोयल काली विरहा गाती।।१८

    मौसम बनता प्रीत मिताई।
    फागुन होली गान बधाई।।१९

    तरुवर भी नव वसन सजाए।
    मधुमक्खी भँवरे मँडराए।।२०

    पुष्प गंध रस प्रीत निराली।
    रसिया पीते भर भर प्याली।।२१

    बौराए जन मन अमराई।
    तब माने मन होली आई।।२२

    हिरणाकुश सुत थे प्रल्हादा।
    ईश निभाए रक्षण वादा।।२३

    बहिन होलिका गोद बिठाकर।
    जली स्वयं ही अग्नि जलाकर।।२४

    बचे प्रल्हाद मनाई खुशियाँ।
    अब भी कहते गाते रसियाँ।।२५

    खुशी खुशी होलिका जला ते।
    डाँड रूप प्रल्हाद बचाते।।२६

    ईश संग प्रल्हाद बधाई।
    होली पर सजती तरुणाई।।२७

    कन्या सधवा व्रत बहु धरती।
    दहन होलिका पूजन करती।।२८

    दहन ज्वाल जौं बालि सेंकते।
    मौसम के अनुमान देखते।।२९

    दूजे दिवस रंगीली होली।
    रंग अबीर संग मुँहजोली।।३०

    रंग चंग मय भंग विलासी।
    गाते फाग करे जन हाँसी।।३१

    ऊँच नीच वय भेद भुलाकर।
    मीत गले मिल रंग लगाकर।।३२

    कहीं खेलते कोड़ा मारी।
    नर सोचे मन ही मन गारी।।३३

    चले डोलची पत्थर मारी।
    विविध होलिका रीत हमारी।।३४

    बृज में होली अजब मनाते।
    देश विदेशी दर्शक आते।।३५

    खाते गुझिया खीर मिठाई।
    जोर से कहते होली आई।।३६

    मेले भरते विविध रंग के।
    रीत रिवाज अनेक ढंग के।।३७

    पकते गेंहूँ,कटती सरसों।
    कहें इन्द्र से अब मत बरसो।।३८

    होली प्यारी प्रीत सुहानी।
    चालीसा में यही कहानी।।३९

    शर्मा बाबू लाल निहारे।
    मीत प्रीत निज देश हमारे।।४०

    दोहा–
    होली पर हे सज्जनो, भली निभाओ प्रीत।
    सबकी संगत से सजे, देश प्रेम के गीत।।

    बाबू लाल शर्मा”बौहरा”
    सिकंदरा 303326
    दौसा,राजस्थान,9782924479

  • बंधन पर कविता

    बंधन पर कविता

    बंधन बांधो ईश से, और सभी बेकार।
    केवल ब्रह्म सत्य है,पूरा जगत असार।।


    बंधन केवल प्यार का,होता बड़ा अनूप।
    स्वार्थ भावना से रहित,होता इसका रूप।।


    कर्मों का बंधन हमे,बांधे इस संसार।
    कर्म करें निष्काम तो,होते भव से पार।।


    मर्यादा में जो बंधे,वह सच्चा इंसान।
    जो मर्यादा रहित है,पाय नही सम्मान।।


    मर्यादा में थे बँधे, पुरुषोत्तम श्रीराम।
    चले गए वनवास को,सीता जिनके वाम।।


    ©डॉ एन के सेठी

  • शादी पर गीत

    शादी पर गीत

    शादी पर गीत

    मैं चूल्हे की नाँब घुमाऊँ , लाइटर तुम जला दो ना।
    सब्जी मैंने छौंकी हैं जी , आकर इसे चला दो ना।

    प्यार करें हैं कब से दोनों , लाज रखेंगे हम इसकी।
    महामिलन कर सीमा तोड़े , टिकट कटा जीवन बस की।

    एतबार की मुहर लगाकर , छपवा देता हूँ पर्चा।
    जब हो जाएगी तू मेरी , खुलके करना फिर खर्चा।

    थक कर आया तो बोलूँगा , थोड़ी चाय पिला दो ना।
    मैं चूल्हे की नाँब घुमाऊँ , लाइटर तुम जला दो ना।

    बंजारों सा प्यार हमारा , झेलें लोगों का ताना।
    नदी किनारे घर अपना लें , गाऐं खिड़की में गाना।

    नैनों में यह ख्वाब सजा है , हम दोनों की हो डीपी ।
    कभी शाम को चाय बनाऊँ , लेना तू उसको भी पी।

    तनख्वाह सारी देके बोलूँ , मुझको पेंट सिला दो ना।
    मैं चूल्हे की नाँब घुमाओ , लाइटर तुम जला दो ना।

    दोनों मिलकर दान करेंगे , साथ करेंगे हम पूजा।
    मैं कितना भोला भंडारी , तू भी बन मेरी गिरजा।

    सच कहता हूँ जाना तुझसे , दूर नहीं मैं भागूँगा।
    मेरे घर तुझको रख के भी , नहीं किराया माँगूँगा।

    हे प्रभु केवल मेरी है वो , भरोसा यह दिला दो ना।

    मैं चूल्हे की नाँब घुमाऊँ , लाइटर तुम जला दो ना।

    राम शर्मा’कापरेन’

  • रजत विषय पर दोहा

    रजत विषय पर दोहा

    रजत वर्ण की चाँदनी,फैल रही चहुँओर।
    चमक रहा है चंद्रमा, लगे रात भी भोर।।


    रात अमावस बाद ही , होता पूर्ण उजास।
    दुग्ध धवल सी पूर्णिमा,करती रजत प्रकाश।।


    कर्म सभी ऐसा करो , हो जाए जो खास।
    रजत पट्टिका में पढ़े,स्वर्णिम सा इतिहास।।


    रजत आब वृषभानुजा,श्याम वर्ण के श्याम।
    दर्शन दोनो के मिले,मिले नयन विश्राम।।


    भूषण रजत व स्वर्ण के ,धारे नारी देह।
    सजती है पति के लिए,करती उसको नेह।।

    ©डॉ एन के सेठी