Blog

  • दंगों से पहले पर कविता

    दंगों से पहले पर कविता

    दंगों से पहले

    शांत महौल था
    इस शहर का
    दंगों से पहले

    नाम निशान
    नहीँ था वैर का
    दंगों से पहले

    अंकुरित नहीँ था
    बीज जहर का
    दंगों से पहले

    सौहार्द-सदभाव का
    हर पहर था
    दंगों से पहले

    न साम्प्रदायिकता
    का कहर था
    दंगों से पहले

    सियासतदानों से
    दूर शहर था
    दंगों से पहले

    असलम रामलाल से
    कहाँ गैर था
    दंगों से पहले

    चुनाव ने ही
    घोला जहर था
    दंगों से पहले

    -विनोद सिल्ला©

  • जाति धर्म पर कविता

    जाति धर्म पर कविता

    इंसान-इंसान के बीच
    कितनी हैं दूरियां
    इंसान-इंसान को
    नहीं मानता इंसान
    मानता है
    किसी न किसी
    जाति का
    धर्म का
    प्रतिनिधि
    इंसान की पहचान
    इंसानियत न होकर
    बन गई पहचान
    जाति व धर्म

    हो गई परिस्थितियां
    बड़ी विकट
    विवाह-शादी
    कार-व्यवहार
    क्रय-विक्रय
    सब कुछ में
    दी जाती है वरीयता
    अपनी जाति को
    अपने धर्म को
    जाति-धर्म ही
    सबसे बड़ी बाधा है
    मानव के विकास में

    -विनोद सिल्ला©

  • चित्र मित्र इत्र विचित्र पर कविता

    चित्र मित्र इत्र विचित्र पर कविता

    चित्र रचित कपि देखकर,डरती सिय सुकुमारि।
    अगम पंथ वनवास में, रहती जनक दुलारि।।

    मित्र मिले यदि कर्ण सा, सखा कृष्ण सा साथ।
    विजित सकल संसार भव, बने त्रलोकी नाथ।।

    गन्धी चतुर सुजान नर, बेच रहे नित इत्र।
    सूँघ परख कर ले रहे, ग्राहक बड़े विचित्र।।

    मित्र इत्र सम मानिये, यश सुगंध प्रतिमान।
    भव सागर के चित्र को, करते सुगम सुजान।।

    शर्मा बाबू लाल ने, दोहे लिख कर पाँच।
    इत्र मित्र के चित्र को, शब्द दिए मन साँच।।
    . _____
    © बाबू लाल शर्मा,विज्ञ

  • शिखण्डी पर कविता

    शिखण्डी पर कविता


    पार्थ जैसा हो कठिन,
    व्रत अखण्डी चाहिए।
    *आज जीने के लिए,*
    *इक शिखण्डी चाहिए।।*

    देश अपना हो विजित,
    धारणा ऐसी रखें।
    शत्रु नानी याद कर,
    स्वाद फिर ऐसा चखे।

    सैन्य हो अक्षुण्य बस,
    व्यूह् त्रिखण्डी चाहिए।।
    आज जीने के…….

    घर के भेदी को अब,
    निश्चित सबक सिखाना।
    आतंकी अपराधी,
    को आँखे दिखलाना।

    सुता बने लक्ष्मी सम,
    भाव चण्डी चाहिए।।
    आज जीने के…….।

    सैन्य सीमा मीत अब,
    हो सुरक्षित शान भी।
    अकलंकित न्याय रखें,
    सत्ता व ईमान भी।

    सिर कटा ध्वज को रखे,
    तन घमण्डी चाहिए।।
    आज जीने………..।
    . °°°°°°°°°
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
    ?????????

  • सूरज पर कविता

    सूरज पर कविता

    सुबह सबेरे दृश्य
    सुबह सबेरे दृश्य

    मीत यामिनी ढलना तय है,
    कब लग पाया ताला है।
    *चीर तिमिर की छाती को अब,*
    *सूरज उगने वाला है।।*

    आशाओं के दीप जले नित,
    विश्वासों की छाँया मे।
    हिम्मत पौरुष भरे हुए है,
    सुप्त जगे हर काया में।

    जन मन में संगीत सजे है,
    दिल में मान शिवाला है।
    चीर तिमिर…………. ।

    हर मानव है मस्तक धारी,
    जिसमें ज्ञान भरा होता।
    जागृत करना है बस मस्तक,
    सागर तल जैसे गोता।

    ढूँढ खोज कर रत्न जुटाने,
    बने शुभ्र मणि माला है।
    चीर ………………….।

    सत्ता शासन सरकारों मे,
    जनहित बोध जगाना है।
    रीत बुराई भ्रष्टाचारी,
    सबको दूर भगाना है।

    मिले सभी अधिकार प्रजा को,
    दोनो समय निवाला है।
    चीर तिमिर……………..।

    हम भी निज कर्तव्य निभाएँ,
    बालक शिक्षित व्यवहारी।
    देश धरा मर्यादा पालें,
    सत्य आचरण हितकारी।

    शोध परिश्रम करना होगा,
    लाना हमे उजाला है।
    चीर तिमिर …………..।
    . ???
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा बौहरा
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
    ?????????