मौत पर कविता
मौत तू जिंदगी का पड़ाव है या
है कुदरत का हसीन तोहफा
है आगोश तेरा बहुत ही शांत -शीतल
जो हैं दुनियां से नाराज़ उन्हें है मिलता सुकून तुझसे है
तू कहाँ कब किसी के पास जाती है
हर किसी को तू अपने पास बुलाती है
कभी तू मेहरबां होती है तो
नींद में ही ले जाती है हजारों को
कभी रुठ जाए तो, महीनों पैरों घिसटवाती है
पर.. कटु जब हो जाए तो
जिंदगी जीने नहीं देती आराम से
मेहरबां हो तो एक झटके में आगोश में ले लेती है
बेगुनाह माँगते पनाह तुझसे
देशभक्त ले हाथ जश्न मनाते हैं
तेरे मकाम कहाँ -कहाँ नहीं है
हर सूं तू ही तू नज़र आती है
कौन सी राह है जहाँ तू नहीं मिलती है
जल, थल, आसमां, अग्नि, वायु ,हर सूं तू ही तू दिखाई दे
काल है तू महाकाल की
हर घड़ी तेरा बजर बजता है।