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  • मौत पर कविता: जिंदगी का पड़ाव या कुदरत का हसीन तोहफा- डा.नीलम

    मौत पर कविता

    मौत तू जिंदगी का पड़ाव है या
    है कुदरत का हसीन तोहफा

    है आगोश तेरा बहुत ही शांत -शीतल
    जो हैं दुनियां से नाराज़ उन्हें है मिलता सुकून तुझसे है

    तू कहाँ कब किसी के पास जाती है
    हर किसी को तू अपने पास बुलाती है

    कभी तू मेहरबां होती है तो
    नींद में ही ले जाती है हजारों को
    कभी रुठ जाए तो, महीनों पैरों घिसटवाती है

    पर.. कटु जब हो जाए तो
    जिंदगी जीने नहीं देती आराम से
    मेहरबां हो तो एक झटके में आगोश में ले लेती है

    बेगुनाह माँगते पनाह तुझसे
    देशभक्त ले हाथ जश्न मनाते हैं

    तेरे मकाम कहाँ -कहाँ नहीं है
    हर सूं तू ही तू नज़र आती है

    कौन सी राह है जहाँ तू नहीं मिलती है
    जल, थल, आसमां, अग्नि, वायु ,हर सूं तू ही तू दिखाई दे

    काल है तू महाकाल की
    हर घड़ी तेरा बजर बजता है।

    डा. नीलम
  • लिखना पढ़ना पर कविता -अंचल

    लिखना पढ़ना पर कविता

    पढ़ना लिखना चाहिए,
    जीवन में जी मस्त।
    शिक्षित करते हैं सभी,
    संकट को जी पस्त।।
    संकट को जी पस्त,
    होत हैं भारी ताकत।
    डरते कभी न भाय,
    भगे जी संकट सामत।।
    कह कवि अंचल मित्र,
    कभी मत डर को गढ़ना।
    मंजिल पाना सत्य,
    सदा सब लिखना पढ़ना।।

    अंचल

  • मतदाता पर कुण्डिलयाँ

    मतदाता पर कुण्डिलयाँ??

    भाग्य विधाता

    भाग्य विधाता देश का, स्वयं आप श्रीमान।
    मिला वोट अधिकार है, करिये जी मतदान।।
    करिये जी मतदान, एक मत पड़ता भारी।
    सभी छोड़कर काम, प्रथम यह जिम्मेदारी।।
    कहे अमित यह आज, नाम जिनका मतदाता।
    मिला श्रेष्ठ सौभाग्य, आप ही भाग्य विधाता।।

    मतदाता

    मतदाता मत डालिए, लोकतंत्र की शान।
    वोट डालना आपको, शक्ति स्वयं पहचान।।
    शक्ति स्वयं पहचान, हृदय में अलख जगाएँ।
    चीख रहा जनतंत्र, राष्ट्र हित कर्म निभाएँ।।
    कहे अमित कविराज, देशहित के अनुयाता।
    शत प्रतिशत मतदान, कीजिए अब मतदाता।।

    कन्हैया साहू ‘अमित’✍

  • केवरा यदु मीरा के दोहे

    केवरा यदु मीरा के दोहे

    (1) चंदन

    माथे पर चंदन लगा, कैसा ढ़ोंग रचाय ।
    मंदिर मठ के नाम पर, वह व्यापार चलाय ।।

    (2)अग्निपथ

    सैनिक चलते अग्निपथ, लिये तिरंगा हाथ ।
    पीछे फिर हटते नहीं, कटे भले ही माथ ।।

    (3)दीपक

    बेटा कुल दीपक बना, बेटी का अपमान ।
    भ्रूण कोख में मारते, होगा कब सम्मान ।।

    (4)अहंकार

    अहंकार मत कीजिए, जीवन दिन दो चार ।
    मुट्ठी बाँधे आ रहा, जाये हाथ पसार।।

    (5)चासनी

    बोली लगते चासनी, भीतर पाप समाय ।
    बगल छुरी रखता फिरे, *मानस* रूप छुपाय ।।

    (6)अनुभव

    अनुभव सिखलाये हमें ,दुख *में* धरना धीर ।
    मन में यह विश्वास हो, कभी न होवे पीर ।।

    (7)नैराश्य

    छोड़ सदा नैराश्य को, आगे बढ़ता जाय ।
    राम कृपा उनको मिले, राह सही दिखलाय ।।

    (8)प्रतिकार

    जीवन में करते रहें, हम अनीति प्रतिकार ।
    सत्य मानिये फिर कभी, नहीं मिलेगी हार ।।

    (9)मधुप

    फूल फूल को चूमता, अरे मधुप नादान ।
    काँटों का भय है नहीं, *गुन गुन* करता गान ।।

    (10)जलधि

    जलधि लाँघ लंका गये, सीता की सुधि लाय।
    हनुमत प्रिय श्री भरत सम, हिय से राम लगाय ।।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
  • गुरु घासीदास बाबा पर हिंदी कविता

    गुरू घासीदास छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरू घासीदास जी सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे। विकिपीडिया

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    महान व्यक्तित्व पर हिन्दी कविता

    गुरु घासीदास बाबा पर हिंदी कविता

    सन्देशा गुरुदेव का,
    मानव सभी समान।
    सत्य ज्ञान जो पा सकें ,
    वह ही है इंसान ।।
    वह ही है इंसान,
    ज्ञान को जिसने जाना ।
    मानव सेवा धर्म,
    ज्ञान को सबकुछ माना ।।
    कह डिजेंद्र करजोरि,
    नही हो अब अन्देशा।
    सदा बढ़ाये मान ,
    अमर है गुरु सन्देशा।।

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    रचनाकार-डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर
    पीपरभावना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
    मो. 8120587822