मातृभाषा दिवस पर कविता
अपनी स्वरों में मुझको ‘साध’ लीजिए।
मैं ‘मृदुला’, सरला, ले पग-पग आऊँगी।।
हों गीत सृजित, लयबद्ध ‘ताल’ दीजिए।
मधुरिमा, रस, छंद, सज-धज गाऊँगी।।
सम्प्रेषित ‘भाव’ सतत समाहित कीजिए।
अभिव्यंजित ‘माधुर्य’, रंग-बिरंगे लाऊँगी।।
‘मातृभाषा’ कर्णप्रिया, ‘सुसंस्कृत’ बोलिए।
सर्व ‘हृदयस्थ’ रहूँ, ‘मान’ घर-घर पाऊँगी।।
– शैलेंद्र नायक ‘शिशिर’