सप्तपुरी में प्रथम अयोध्या जहाँ रघुवर अवतार लिए। हनुमत, केवट, गुह , शबरी सुग्रीव को हरि जी तार दिए। गौतम की भार्या अहिल्या को चरण लगा उद्धार किए । मारीच, खर- दूषण , बाली और रावन का संहार किए । आज अवधपुरी में रघुवर राजा बन कर फिर से आयो। अवधपुरी में बाजी बधाई रामराज्य फिर से आयो ।।
इन्द्र की अमरावती से सुंदर त्रिभुवन विदित राघव का गाँव । सरयू तट पर केवट कहता बेठो पहुना जी मेरो नाव । तेरी करूणा के सागर में प्रभु पाते भक्त अलौकिक छाँव । चरण पखार कर पीना है हरि दास को दो निज पावन पाँव । संग सिया को साथ लिए करूणा निधान घर को आयो। अवधपुरी में बाजी बधाई रामराज्य फिर से आयो ।।
बारह योजन में फैला है राघव जी का यह पावन धाम। राम- राम जहाँ रटते पंछी दिन दोपहर हो या हो शाम। रघुनाथ मेरे चितचोर मनोहर पुलकित मन लोचन अभिराम। जीते स्वर्ग पाते वे लोग हैं जो करते सरयू स्नान । हरि को देख अवध के वासी मन हीं मन अति हरसायो । अवधपुरी में बाजी बधाई रामराज्य फिर से आयो ।।
कण -कण में बसते यहाँ राघव राम की पैड़ी कर रही श्रृंगार । सफल हुआ हर भक्त का जीवन प्रभु के चरण पड़े निज द्वार । माताएँ सोहर हैं गाती सखियाँ आरती रहीं उतार । अवध नरेश के राजतीलक में देखो उमड़ा सारा संसार । सत्य, धर्म, तप,त्याग लिए प्रभु अवध में धर्मध्वजा लायो। अवधपुरी में बाजी बधाई रामराज्य फिर से आयो ।।
सपने कभी सुनहले कभी धुंधले से आँखों के रुपहले पर्दे पर चमकते से बुन कर उम्मीदों के ताने बाने हम सजाते जाते हैं सपने सुहाने
कनकनी होती है तासीर इनकी मुक्कमल नहीं होती हर तस्वीर जिनकी सपनों को नही मिल पाता आकार मन के गर्त में रहते हैं वो निराकार
टूटते सपनों की तो बात ही छोड़िये जनाब जिन्हें फिर से समेटना भी है एक ख्वाब बहने वाले हर आँसू को सहेजना मुमकिन नहीं टूटे सपनों को फ़िर से संजोना मुमकिन नहीं
फूल तो फिर भी मुरझा कर बन बीज धरा में मिल जाते हैं अपने जैसे सुमन को फिर से उपजाते हैं टूटे सपनों को कैसे समेटुं कांच कहाँ फिर से जुड़ पाते हैं
आँखों के बहते हर आँसू में टूटे सपनों की मिलावट होती है काश वो सपने ही ना पलें आँखों में जिनकी नियति ही टूटने में होती है
कभी धन की कमी, कभी शरीर निर्बल अपनों ने दिया धोखा, कभी मन हो गया शिथिल धराशायी हो जाते हैं तब सपने जब उनको नहीं मिल पाता कोई क्षितिज
आओ मिलकर एक नया ख्वाब सजायें मुकम्मल सा इक जहाँ बनायें मेरे सपनों को तुम सँवार देना तुम्हारे ख्वाबों को मै सहेज दूँगी आओ मिलकर एक नया ख्वाब सजायें ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• वर्षा जैन “प्रखर” दुर्ग (छत्तीसगढ़) कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
एक हादसा कल रात हो गया, हो बीमार मैं पस्त पड़ा। मच्छर एक ललकारते हुए, तान के सीना समक्ष खड़ा। मच्छर हूँ मैं ,मुझसे तुम सब, कब तक यूँ बच पाओगे । चौबीस घण्टे मैं ड्यूटी करता तुम आठ घण्टे सो जाओगे। मेरे साथियों संग मैंने मिलकर , ऐसा षड्यंत्र रचाया है । आने वाले दस वर्षो में , बस करना मानव- सफाया है। बड़ी बात भले लगती हो , देखो तुम पिछला इतिहास। गुजरे दस सालों को खंगालो , होगा तुमको फिर एहसास । आधा काम परिपूर्ण हो चूका , मानव अब कमजोर बना । दो चार दाव जो और लगे तो, काम हमारा झट से बना । सोए हुए तो जग भी जाएँ, जागे हुए जागेंगे क्या । सोते हुए जो मौत आ गयी, मौत से फिर भागेंगें क्या । काम हमारा सोते हुओं को , रोग गिफ्ट करना ही तो है। दो दिन तुम अब भले ही बच लो, आखिर में मरना ही तो है । गरीब घर या महल चौबारे, सब जगह हमारा राज हुआ। जीत सको तो जीत लो बाजी , कल तो कभी न आज हुआ। छोटा हूँ पर ताली तुमसे , कई बार बजवा भी चुका । तुमने लाख विरोध किया पर , रोके तुम्हारे कब मैं हूँ रुका। मुझे मसलने के ख्वाब देखते, ख्वाब को मैने मसल दिया। बच्चा ,बूढ़ा और जवान हो, मेरा काटा बस मचल दिया। अभी तो कुछ ही दर्द दिया है, कुल का साथ है मिला हुआ। चार अस्त्र (मलेरिया,डेंगू,चिकनगुनिया,जीका )ही अभी चले है, आयुध खजाना भरा हुआ । अभी हमारे शोध चल रहे, नए-नए हथियारों पर। मच्छर कुल का राज चलेगा, मानव के संसारों पर। समय अभी है अब भी जो तुम, मच्छर मान भुलाओगे। आने वाले दस वर्षों में , तुम मिट्टी में मिल जाओगे। नाम भले मौसम का ले लो , आखिर तो काम हमारा है । मौसम जब-जब करवट लेता, मिलता हमको सहारा है । तुम्हीं हो कहते ,शत्रुजनों को , कमतर नहीं आंका करते । शत्रु भी फिर मुझ जैसा हो, डरकर नहीं भागा करते । युद्ध करो मैं समक्ष खड़ा हूँ , जीत सको तो जीत भी लो। आज तो बस कमजोर किया, कल के लिए भयभीत भी लो। मक्खी बहन जो कर ना पाई, काम हमें वो करना ही है । वर्षों से तैयारी हमारी , युद्ध हमें अब लड़ना ही है । जीत हमारी निश्चित ही है, तुम चेत यदि न पाओगे । अकाल मौत जो मर भी चुके है क्या उनको उत्तर दे पाओगे। आँख मिलाना दूभर होगा, उन नन्हें-नन्हें लालों से । जीत सके न मुझसे गर तुम, क्या उनको सिखलाओगे? सुन कर उसकी धमकी भारी, मन भीतर तक कांप गया। उन बातों में गहरा दम था, मजबूत इरादे मैं भांप गया । मैं भी बोला,”सुन बे मच्छर , तुझ पर पार हम पा लेंगे। हैजा ,प्लेग ,पोलियो को फटका, तुझको भी बतला देंगे । साफ-सफाई उपचारों से , मक्खी को भी हराया है । पर तु थोड़ा उससे बढ़कर, अब करना तेरा सफाया है। माना कि आयुध तेरे अभी , मानव क्षति के कारक है। लेकिन फिर भी प्रयास हमारे, तेरे कुल- संहारक है। साफ-सफाई ,उपचार-चिकित्सा , शोध -विज्ञान की ढाल बना। तुझको सबक हम सिखला देंगे , जो तू आगे और ठना।” इतना कहकर मैने फिर , मच्छर-भगाऊ इस्तेमाल किया । तूं-तूं करता गिर पड़ा जमीं पर जब मैंने उसे बेहाल किया । मारा वो फ़टका था उस पर, वो सीधा स्वर्ग सिधार गया। फटके की फटकार से मेरा, चेतन मन भी जाग गया।
आँख जो खोली नींद नहीं थी, ना ही था सपना मच्छर । पर मच्छरों की तूं-तूं तूं-तूं फैली थी घर आंगन पर।