स्वच्छता पर कुंडलिया
घर घर में अब देश के, मने स्वच्छता पर्व।
दूर करें सब गंदगी, खुद पर तब हो गर्व।
खुद पर तब हो गर्व, न कोई कोना छोड़ें।
बदलें आदत सर्व, समय का अब रुख मोड़ें।
नद नालें हो साफ, बहे जल उनमें निर्झर।
नया स्वच्छता भाव, पले भारत के हर घर।।1
साफ-सफाई के लिये, चलें नये अभियान।
सर्व स्वच्छ्ता आज से, गढ़े नये प्रतिमान।
गढ़े नये प्रतिमान, सफाई रक्खें घर-घर।
रखिये इतना ध्यान, न पनपें मक्खी मच्छर।
मिलकर के सब लोग, मिटायें आज बुराई।
फटक न पायें रोग, रखें जब साफ-सफाई।।2
करते रहते हम सदा, स्वच्छ लक्ष्य की बात।
जगत साफ कैसे रखें, बिना किसी संताप।
बिना किसी संताप, सोच यह पहुँचे घर घर।
जुट जाएं अब आप, स्वयं पर होकर निर्भर।
जुड़ें सभी इस बार, भाव यह मन मे रखते।
स्वच्छ रहे घर-द्वार, सफाई यदि हम करते।।3
निर्मल मन निर्मल बदन, निर्मल हो व्यवहार।
इन तीनों के योग से, स्वच्छ बने संसार।
स्वच्छ बने संसार, समझ यह फैले घर-घर।
संकट मिटें हजार, न फैले रोग कहीं पर।
साफ सफाई रोज, बनाता जीवन उज्ज्वल।
सुचिता का उपयोग , करे हर तन मन निर्मल।।4
संदेशा इस बात का, पहुँचे घर घर आज।
सुचिता के अभियान का, मिलकर हो आगाज़।
मिलकर हो आगाज़, लक्ष्य यह पूरा कर लें।
जागृत बनें समाज, साफ रखने का प्रण लें।
सभी जुटें जी-जान, बिना रख मन अंदेशा।
करें सफल अभियान, प्रसारित कर संदेशा।।5
हम यदि मन से चाहते, सफल बने अभियान।
मत होने दें गंदगी, राह करें आसान।
राह करें आसान, समेटें कूड़ा बिखरा।
इतना रखना ध्यान, न फैलाने दें कचरा।
जोड़ें कर अब शान, दिखायें सब अपना दम।
बढ़े देश का मान, स्वच्छता अपनाएं हम।।6
प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 28 सितंबर 2019
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद