भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।
डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
वे है मेरे गुरु जी
अंधकार की गुफा बड़ी थी,
जिससे मुझको बाहर ले आए ।
काले काले श्यामपट्ट पर,
नूतन श्वेत अक्षर सिखाये।
अपना पराया अच्छे बुरों का,
सदैव ये मुझे भेद बताए।
सबसे अच्छे सबसे सच्चे,
वे है मेरे गुरु जी…….
बात बड़ी बड़ी,
छोटी करके ।
ख्वाब दिखाएं ,
बड़े होने के ।
साथ मेरे खेले कूदे ,
मुर्दों में भी जान फूंके ।
जिनका अक्षर अक्षर ब्रह्म था,
वे है मेरे गुरुजी ………
मेरे दुख में वे रोते थे,
सफलताओं की कुंजी बोते थे।
आगे बढ़ाने मेरी सीढ़ी बनकर,
नित नवीन ज्ञान देते थे ।
जिनकी बदौलत आज पटल पर,
काव्य नवीन रच रहा हूं ।
अखिल विश्व में जीवित ईश्वर,
वें है मेरे गुरुजी ………
रोहित शर्मा ‘राही’
भंवरपुर, जिला-महासमुंद
छत्तीसगढ़
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद