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  • आगे परब झंडा के -बोधन राम निषादराज विनायक

    आगे परब झंडा के -बोधन राम निषादराज विनायक

    आगे परब झंडा के

    आगे परब झंडा के,दिन अगस्त मास म।

    mera bharat mahan
    भारत देश तिरंगा झंडा

    चलो झंडा  लहराबो ,खुल्ला अगास म।।

    आगे परब झंडा के………………….

    रंग केसरिया हे ,तियाग के  पहिचान के।

    खून घलो खौलिस हे,देश के जवान के।।

    आजादी मनावत हन,उंखरे परयास  म।

    आगे परब झंडा के,…………………

    चलो झंडा लहराबो………………….

    सादा रंग शांति अउ,सुरक्छा बतावत हे।

    मया भरे नस-नस म ख़ुशी ल मनावत हे।।

    रक्छा करत बइठे,भारत माता के आस म।

    आगे परब झंडा के…………………

    चलो झंडा लहराबो…………………

    हरियर पहिचान हे,भुइयां के हरियाली के।

    करौ काम सबो रे ,देश के खुशिहाली के।।

    बनौ भागीदारी  सबो ,देश  के विकास म।

    आगे परब झंडा के………………….

    चलो झंडा लहराबो………………….

    लगे चकरी बिच में ,अशोक सारनाथ के।

    जीवन के गति अउ,उन्नति दुनों साथ के।।

    बित जही जिनगी,हंसी,ख़ुशी,उल्लास म।

      आगे परब झंडा के………………….

    चलो झंडा लहराबो………………….

    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

    रचनाकार :–बोधन राम निषादराज “विनायक”

  • बासुदेव अग्रवाल नमन – गणेश वंदना

    गणेश वंदना
     

    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi
    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi

    मात पिता शिव पार्वती, कार्तिकेय गुरु भ्राता।
    पुत्र रत्न शुभ लाभ हैं, वैभव सकल प्रदाता।।
     
    रिद्धि सिद्धि के नाथ ये, गज-कर से मुख सोहे।
    काया बड़ी विशाल जो, भक्त जनों को मोहे।।
     

    भाद्र शुक्ल की चौथ को, गणपति पूजे जाते।
    आशु बुद्धि संपन्न ये, मोदक प्रिय कहलाते।।
     
    अधिपति हैं जल-तत्त्व के, पीत वस्त्र के धारी।
    रक्त-पुष्प से सोहते, भव-भय सकल विदारी।।
     

    सतयुग वाहन सिंह का, अरु मयूर है त्रेता।
    द्वापर मूषक अश्व कलि, हो सवार गण-नेता।।
     
    रुचिकर मोदक लड्डुअन, शमी-पत्र अरु दूर्वा।
    हस्त पाश अंकुश धरे, शोभा बड़ी अपूर्वा।।
     

    विद्यारंभ विवाह हो, गृह-प्रवेश उद्घाटन।
    नवल कार्य आरंभ हो, या फिर हो तीर्थाटन।।
     
    पूजा प्रथम गणेश की, संकट सारे टारे।
    काज सुमिर इनको करो, विघ्न न आए द्वारे।।
     

    भालचन्द्र लम्बोदरा, धूम्रकेतु गजकर्णक।
    एकदंत गज-मुख कपिल, गणपति विकट विनायक।।
     
    विघ्न-नाश अरु सुमुख ये, जपे नाम जो द्वादश।
    रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ से, पाये नर मंगल यश।।
     

    ग्रन्थ महाभारत लिखे, व्यास सहायक बन कर।
    वरद हस्त ही नित रहे, अपने प्रिय भक्तन पर।।
     
    मात पिता की भक्ति में, सर्वश्रेष्ठ गण-राजा।

    ‘बासुदेव’ विनती करे, सफल करो सब काजा।।

    मुक्तामणि छंद 

    विधान:-
     

    दोहे का लघु अंत जब, सजता गुरु हो कर के।
    ‘मुक्तामणि’ प्रगटे तभी, भावों माँहि उभर के।।
     

    मुक्तामणि चार चरणों का अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके विषम पद 13 मात्रा के ठीक दोहे वाले विधान के होते हैं तथा सम पद 12 मात्रा के होते हैं। 
    इस प्रकार प्रत्येक चरण कुल 25 मात्रा का 13 और 12  मात्रा के दो पदों से बना होता है।
     दो दो चरण समतुकांत होते हैं। 
    मात्रा बाँट: विषम पद- 8+3 (ताल)+2 कुल 13 मात्रा, सम पद- 8+2+2 कुल 12 मात्रा।
    अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं। द्विकल के दोनों रूप (1 1 या 2) मान्य है।


    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • मेहनत पर विश्वास कर- डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

    मेहनत पर विश्वास कर

                  (1)
    आंख मूंद कर विश्वास न कर ,
    जज्बात में आकर विश्वास न कर।
    कुछ ठोस सबूत तो जान ले,
    सच्चे इंसान को पहचान कर।

                  (2)
    कोई धोखा दे तो उसे माफ कर,
    फिर उस पर  विश्वास न कर।
    आए कठिनाइयों को संघर्ष कर,
    अपनी मेहनत पर विश्वास कर।

                   (3)
    स्वयं पर पहले विश्वास कर ,
    लोगों से प्रेम से बात कर।
    दुख सुख तो एक पहिया है,
    उस परमपिता पर विश्वास कर।

                  (4)
    जग में रहकर कुछ काम कर,
    जग में रहकर कुछ नाम कर ।
    सफलता की ऐसे सीढ़ी प्राप्त कर,
    दुनिया की हर कोनो में पहचान कर।

    ~~~~~~

    रचनाकार – डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    मिडिल स्कूल पुरुषोत्तमपुर,बसना
    जिला महासमुंद (छ.ग.)
    मो. 8120587822

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • जीवन के दोहों का संकलन

    जीवन के दोहों का संकलन

    jivan doha

    जीवन के दोहों का संकलन

    1-

    है मलीन चादर चढ़ी, अंतः चेतन अंग।

    समझे तब कैसे भला, हूँ मैं कौन मलंग।।

    2-

    प्रतिसंवेदक कॄष्ण हैं, लिया पार्थ संज्ञान।

    साध्य विषय समझे तभी, हुआ विजय अभियान।।

    3-

    मैं अनुनादी उम्र भर, अविचारी थे काज।

    जिस दिन प्रज्ञा लौ जली, समझे तब यह राज।।

    (मैं – अहंकार)

    4-

    अवधारक बनकर करें, कुण्डलिया से योग।

    नित्य करें जब ध्यान तो, हुए दूर दुर्योग।।

    5-

    सत्य यही अवधारणा, ब्रह्म मिले संज्ञात।

    यक्ष प्रश्न जीवन समर, करें यत्न से ज्ञात।।

    6-

    कर्मयोग इंसान को, दे प्रशांत सा मान।

    कर्मवाद अनुनाद ही, ईश्वर का गुणगान।।

    7-

    मनस्कार का अवनमन, ईश्वर सम्मुख मान।

    नमस्कार के भाव से, है मिलता सम्मान।।

    (मनस्कार – पूर्ण चेतना (ज्ञान)

    8-

    मति विवेक चिंतन करे, मन में अंकुश डाल।

    उच्श्रृंखल मत छोड़िये, रखें नियंत्रित हाल।।

    9-

    सोना कुंदन जब बने, प्रखर भाव का मान।

    परिष्कार शुचिता गढ़े, निर्मल मन अंजान।।

    10-

    निज इच्छा हरि कामना, समझें जब यह बात।

    नैतिकता मन को कसे, सुधरे तब हालात।।

    11-

    विपदा में होती सदा, कष्टों की भरमार।

    जो तारक बनते स्वयं, उनकी नैया पार।।

    12-

    दिव्य ज्ञान की लौ जहाँ, जल जाए इक बार।

    प्रमा सुधा बरसे वहीं, जैसे मेघ अपार।।

    (प्रमा – चेतना, आत्मज्ञान)

    13-

    दर्प कभी अच्छा नहीं, मिले न इसको मान।

    अहंकार का यह परम, खो देता सम्मान।।

    14-

    हरि आए मन की डगर, निश्छल हिय विश्वास।

    सत्य मौन आराधना, प्रभु के निकट निवास।।

    15-

    परहित लक्ष्य बनाइये, तज कर निज अभिमान।

    पुण्य करे शुचि आपको, ले ईश्वर संज्ञान।।

    16-

    वैचारिकता शून्य सी, यत्र तत्र हो तंत्र।

    सकारात्मक सोच सदा, खुश जीवन का मंत्र।।

    17-

    पानी सदा बचाइये, नित्य रहे यह ध्यान।

    जल ही जीवन सूत्र है, लिया विश्व संज्ञान।।

    18-

    अस्त व्यस्त हमने किया, पर्यावरण मिजाज।

    अतिवादी मौसम हुआ, समझे तब हैं आज।।

    19-

    प्रातः उठकर जो करे, नित्य ध्यान फिर योग।

    स्वास्थ्य सूत्र जिसको मिले, रहता वही निरोग।।

    20-

    वाणी संयम से मिले, सामाजिक सम्मान।

    तोल मोल बोली सदा, रखे आपका मान।।

    21-

    अभिनन्दन समतुल्य है, नर नारी का मान।

    इनमे अंतर है नहीं , दोनों एक समान।।

    22-

    करें अर्चना ईश की, हरे तमस हर पीर।

    अन्तर्मन को फिर चलें, यात्रा करें सुधीर।।

    23-

    अनुभव के आधार पर, मिलता सबको मान।

    सामाजिक परिवेश में, है इसका सम्मान।।

    24-

    सच है नश्वर जगत में, प्रेम भाव का तत्व।

    जो इसमें रच बस गया, मिले उसे अमरत्व।।

    25-

    दिल की बगिया में सदा, खिलें प्रेम के फूल।

    मोह सभी का भंग हो, सार तत्व ये  मूल।।

    26-

    ईश्वर के अनुराग से, हो कष्टों का अंत।

    अवनि के हर जीव सदा, हर्षित रहे अनंत।।

    27-

    वाणी से ही प्रेम है, और उसी से बैर।

    मधुर भाषिता सर्वदा, करते सबकी खैर।।

    28-

    भारत की संस्कृति सदा, रही विश्व में श्रेष्ठ।

    दुनियाँ रमने आ गयी, मान कुम्भ को ज्येष्ठ।।

    29-

    नारी के  सम्मान से, उन्नति करे समाज।

    सतयुग में ऋषि कह गये, माने कलयुग आज।।

    30-

    प्रात कभी ऐसा रहे, सुनते कोयल तान।

    मस्जिद में घंटी बजे, मंदिर करे अजान।।

    नाम – राजेश पाण्डेय

    उपनाम – अब्र

    फोन  – 98266-24298
    ई मेल [email protected]
    पता – अक्षरधाम,
            श्री राम मंदिर के सामने, इंद्रप्रस्थ कॉम्प्लेक्स के पास, ब्रह्मपारा , अम्बिकापुर,
    जिला – सरगुजा (छत्तीसगढ़)
    पिन – 497001

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • धारा तीन सौ सत्तर पैतींस ए -डाँ. आदेश कुमार पंकज

     धारा तीन सौ सत्तर पैतींस ए 

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।

    छप्पन इंची के सीने ने ही साहस दिखलाया है ।।

    बच्चों को बंदूकें देकर जहर घोलते फिरते थे ।

    केसर की क्यारी जो जन आग लगाते फिरते थे ।।

    ऐसे सब गद्दारों को उनके घर में दफनाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।

    धारा तीन सौ सत्तर को एक क्षण में है मठ डाला ।

    छप्पन भोगी लोगों का पूर्ण क्षरण है कर डाला ।।

    पड़ी अँधेरी घाटी में इक सूरज नया उगाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।

    सरकारी खर्चें पर जो सब दूध मलाई खाते थे ।

    ऐश कर रहे भारत में पर गीत पाक के गाते थे ।।

    ऐसे आस्तीनी साँपों को रस्ता नया दिखाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    पैतिंस ए को खत्म किया इतिहास नया रच डाला है ।

    मुफ्ती अब्दुला जैसे वाचालों के मुँह पे ठोका ताला है ।।

    भारत में एक विधान रहेगा  दुनिया को समझाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    बादाम खुवानी अखरोटों के बाग पुनः मुस्काये है ।

    काश्मीर की गलियों ने फिर गीत खुशी के गाये हैं ।।

    कश्यप के आश्रम में अब फिर से यौवन आया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    गंगा यमुना सब खुश हैं अरु झेलम भी हरषायी है ।।

    केसर के फूल सजे देखो हर क्यारी मुस्कायी है ।।

    मेघदूत के छन्दों को अब सबने मिलकर गाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    डाँ. आदेश कुमार पंकज

    डाँ. आदेश कुमार पंकज

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