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  • जल संकट पर कविता

    जल संकट पर कविता

    विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है।

    जल संकट पर कविता

    जल संकट पर कविता

    पानी मत बर्बाद कर ,
              बूँद – बूँद अनमोल |
    प्यासे ही जो मर गये ,
               पूँछो उनसे  मोल || 1 ||

    अगली पीढ़ी चैन से ,
               अगर  चाहते आप |
    शुरू करो जल संचयन ,
                मिट जाये सन्ताप || 2 ||

    पानी – पानी हो गया ,
               बोतल पानी देख |
    रुपयों जैसा मत बहा ,
               अभी  सुधारो रेख || 3 ||

    जल से कल है दोस्तो ,
            जल से सकल जहान |
    जल का जग में जलजला ,
             जल से अन्न किसान || 4 ||

    वर्षा जल संचय करो ,
             सदन  बनाओ  हौज |
    जल स्तर बढ़ता रहे ,
             सभी करें फिर मौज || 5 ||

    जल को दूषित गर किया ,
              मर   जायें   बेमौत |
    ‘माधव’ वैसा हाल हो ,
              घर लाये ज्यों सौत || 6 ||

    जल जीवन आधार है ,
             और जगत का सार |
    ‘माधव’ पानी के बिना ,
             नहीं तीज – त्योहार || 7 ||

    जल से वन – उपवन भले ,
              भ्रमर  करें  गुलजार |
    जल बिन सूना ही रहे ,
               धरा    हरा   श्रंगार || 8 ||

    पानी  से  घोड़ा  भला ,
                पानी   से   इंसान |
    पानी   से   नारी  चले ,
                पानी  से  ही पान || 9 ||

    नीरद , नीरधि नीर है ,
               नीरज नीर सुजान |
    ‘माधव’ जन्मा नीर से ,
               जान नीर से जान || 10 ||

    #नारी = स्त्री , नाड़ी , हल
    #जान = प्राण , समझना
    #रेख = लाइन , कर्म
    #जलजला – प्रभाव , महत्व


    #सन्तोष कुमार प्रजापति माधव

    जल बिना कल नहीं

    जल से मिले सुख समृद्धि,
    जल ही जीवन का आधार।
    जल बिना कल नही,
    बिना इसके जग हाहाकार।

    जल से हरी-भरी ये दुनिया,
    जल ही है जीवन का द्वार।
    जल बिना ये जग सूना,
    वसुंधरा का करे श्रृंगार।

    पर्यावरण दुरुस्त करे,
    विश्व पर करे उपकार।
    नीर बिना प्राणी का जीवन,
    चल पड़े मृत्यु के द्वार।

    जल,भूख प्यास मिटाए,
    जीव -जंतु के प्राण बचाए।
    सूखी धरणी की ताप हरे,
    प्यासी वसुधा पर प्रेम लुटाए।

    वर्षा जल का संचय करके,
    जल का हम सदुपयोग करें।
    भावी पीढ़ी के लिए बचाकर,
    अमृत -सा उपभोग करें।

    जल ही अमृत जल ही जीवन,
    दुरुपयोग से होगा अनर्थ।
    नीर बिना संसार की,
    कल्पना करना होगा व्यर्थ ।

    अतः जल बचाएं,उसका सदुपयोग करें।जल है तो कल है।

    रचनाकार -महदीप जंघेल
    निवास -खमतराई, खैरागढ़

    जल संकट बनेगा-आझाद अशरफ माद्रे

    गहरा रहा पानी का संकट,
    अब तो चिंता करनी होगी।

    ध्यान अगरचे अब ना दिया,
    सबको कीमत भरनी होगी।

    ये भी जंग ही है अस्तित्व की,
    जो मिलकर हमें लड़नी होगी।

    छोड़ उपभोगी मानसिकता को,
    डोर समझदारी की धरनी होगी।

    आनेवाली पीढ़ी जवाब मांगेगी,
    उसकी तैयारी हमें करनी होगी।

    आज़ाद भी होगा इसमें शामिल,
    अब ज़िम्मेदारी तय करनी होगी।

    आझाद अशरफ माद्रे
    गांव – चिपळूण, महाराष्ट्र

    जल संकट पर रचना

    सरिता दूषित हो रही,
    व्यथा जीव की अनकही,
    संकट की भारी घड़ी।

    नीर-स्रोत कम हो रहे,
    कैसे खेती ये सहे,
    आज समस्या ये बड़ी।

    तरसै सब प्राणी नमी,
    पानी की भारी कमी,
    मुँह बाये है अब खड़ी।

    पर्यावरण उदास है,
    वन का भारी ह्रास है,
    भावी विपदा की झड़ी।

    जल-संचय पर नीति नहिं,
    इससे कुछ भी प्रीति नहिं,
    सबको अपनी ही पड़ी।

    चेते यदि हम अब नहीं,
    ठौर हमें ना तब कहीं,
    दुःखों की आगे कड़ी।

    नहीं भरोसा अब करें,
    जल-संरक्षण सब करें,
    सरकारें सारी सड़ी।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

    जल संकट

    संकट होगा नीर बिन, बसते इसमें प्राण ।
    बूंद बूंद की त्रासदी  , देंगे खुद को त्राण ॥
    देंगे खुद को त्राण , चिंतन अभी से करना ।
    सबसे बड़ा विधान, नीर का मूल्य समझना ॥
    बिन जल के मधु मान,बने जीवन का झंझट।
    जतन करें फिर लाख,मिटाने जल का संकट॥


    मधु सिंघी
    नागपुर ( महाराष्ट्र )

    जल ही जीवन पर कविता

    जीवन दायिनी जल,
    घट रहा पल पल,
    जल अमूल्य सम्पदा,
    सलिल बचाइए।
    सूखा पड़ा कूप ताल,
    गर्मी से सब बेहाल,
    कीमती है बूँद बूँद,
    व्यर्थ न बहाइए।
    वर्षा जल संचयन,
    अपनाएं जन जन,
    जल स्तर बढ़ाकर,
    संकट मिटाइए।
    जागरुक हो जाइए,
    कर्तव्य से न भागिए,
    पश्चाताप से पहले,
    विद्वता दिखाइए।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    जल है तो है कल

    धरती सुख गई ,आसमां सूख जाएगा।
    जीने के लिए जल, फिर कहां आएगा ?
    संकट छा जाए ,इससे पहले बदल
    जल है तो है कल
    जल है तो है कल
    बूंद बूंद जल होता है,  मोती सा कीमती
    “ये रक्त है मेरी’, सदा से धरती माँ कहती
    हीरा मोती पैसे जीने के लिए नहीं जरूरी
    जल के बिना हर दौलत हो जाती  अधुरी
    आने वाले कल के लिए , जा तू संभल
    जल है तो है कल
    जल है तो है कल
    “पेड़ लगाओ-जीवन पाओ”  ये ध्येय हमारा हो।
    जल बचाने के लिए, हरियाली नदी किनारा हो।
    विनाश की शोर सुनो, “विकास विकास” ना चिल्लाओ।
    स्वार्थी इतना मत बनो कि कुल्हाड़ी  अपने पैर चलाओ।
    जन को जगाने के लिए ,बना लो दल।
    जल है तो है कल
    जल है तो है कल


    मनीभाई नवरत्न
    छत्तीसगढ़

    पानी की मनमानी

    पानी की क्या कहे कहानी
    जित देखो उत पानी पानी 
         पानी करता है मनमानी ।।

    भीतर पानी बाहर पानी 
    सड़को पर भी पानी पानी 
    दरिया उछल कूदते  धावें 
    तटबन्धों तक पानी पानी ।।

    याद आ गयी सबको नानी 
    पानी की क्या कहे कहानी 
              पानी करता है मनमानी ।।

    न सेतु न पेड़ रोकते 
    न मानव न पशु टोकते 
    प्राणी भागे राह खोजते 
    पानी मे सब जान झोंकते 

    अपनी जिद अड़ गया पानी 
    पानी की क्या कहे कहानी 
                   पानी करता है मनमानी ।।

    उछल कूदती नदिया धावें 
    लहरों पर लहरें हैं जावे 
    एक दूजे से होड़ लगावे 
    सागर से मिलने को धावें 

    नदिया झरने कहे कहानी 
    पानी की क्या कहे कहानी 
              पानी करता है मनमानी ।।


    सुशीला जोशी 
    मुजफ्फरनगर

    जल पर दोहे

    अब अविरल सरिता बही , निर्मल इसके धार ।
    मूक अविचल बनी रही, सहती रहती वार ।।

    वसुधा हरी-भरी रहे, बहता स्वच्छ जलधार ।
    जल की शुद्धता बनी रहे, यही अच्छे आसार ।।

    नदियाँ है संजीवनी, रखे सब उसे साफ ।
    जो करे गंदगी वहाँ, नहीं करें अब माफ ।।

    जल प्रदूषित नहीं  करो, जीवन का है अंग ।
    स्वच्छ निर्मल पावन रहे, बदले नाही  रंग ।।

    अनिता मंदिलवार सपना

    जल ही जीवन है -‌ अकिल खान ( जल संरक्षण कविता)

    जल में मत डालो मल, फिर कैसे खिलेगा कमल।
    वृक्षों की बंद करो कटाई, यही शुद्ध जल का हल।
    जल है प्रलय, जल से होता निर्मल धरा गगन है ।
    करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।

    कल – कारखानों के अपद्रव्य , मानव की मनमानी,
    करते परीक्षण – सागर में, होती पर्यावरण को हानि।
    जल से हैं खेत – खलिहान – वन, मुस्कुराते चमन है,
    करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।

    बढ़ती आबादी से निर्मित हो गये विषैले नदी नाला,
    कट गए कई वन बगीचे,हो गया जल का मुँह काला।
    उठो जल बचाना अभियान है, कहता अकिल मन है,
    करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।

    भरेंगे तालाब-कुँआ,और करेंगे बाँध में एकत्र पानी,
    हटाकर अपशिष्ट, खत्म करेंगे जल संकट की कहानी।
    नदी झरने झील तालाब सुखे, बने मरुस्थल निर्जन है,
    करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।

    मानव अपना भविष्य बचा लो कहता है अब ये जल,
    जल संकट होगी भयावह ,जानो आज नहीं तो कल।
    विश्व एकता सुलझाएगी इसको, कहता अकिल मन है,
    करेंगे अब जल संरक्षण ,क्योंकि जल ही जीवन है।

    अकिल खान रायगढ़

    विश्व जल दिवस की कविता

    जल है जीवन का आधार,
    करता सबका है बंटाधार।
    जल से धरती परती सजती,
    मिले ना जल हो जन लाचार।

    जल जीवों की काया है,
    दो तिहाई भाग में छाया है।
    मृदु,खारे, रंगीन कहीं बन,
    अनेक रूपों में पाया है।

    जल बिन तरु सूखे डगरी का,
    छाया मिटती उस नगरी का।
    बनकर गंगाजल है धोता,
    मैल पुरानी सब गगरी का।

    अंतिम जब जीवन की बेला,
    खत्म हो रही जीवन मेला।
    तब दो बूंद पिलाकर जल ही,
    मौत से करते ठेलम ठेला।

    जल इतना अहम है भाई,
    सब कहते हैं गंगा माई।
    समझ ना पाये होके अंधे,
    जल में इतनी मैल गिराई।

    दूषित जलाशय फाँसी केफंदे,
    हमारे विकास ने किये हैं गंदे।
    खूब फलते फूलते हैं देखो,
    इस धारा पर पानी के धंधे।

    जल की बूंद बूँद का संचय करना होगा,
    हो ना जाये कहीं जल संकट डरना होगा।
    यदि नहीं सम्भला धरा का हर जीव जन,
    तो जल बिन मछली जैसे मरना होगा।


    अशोक शर्मा

  • नास्तिकता पर कविता

    नास्तिकता पर कविता

    हमें पता नहीं
    पर बढ़ रहे हैं
    धीरे धीरे
    नास्तिकता की ओर
    त्याग रहे हैं
    संस्कारों को,
    आडम्बरों को
    समझ रहे हैं
    हकीकत
    अच्छा है।
    पर
    जताने को
    बताते हैं
    मैं हूँ आस्तिक।
    फिर भी
    छोंड रहे हैं
    हम ताबीज
    मजहबी टोपी
    नामकरण रस्म
    झालर उतरवाना
    बहुत कुछ।
    बढ़ रहे हैं
    धीरे धीरे
    नास्तिकता की ओर
    क्योंकि
    नास्तिकता ही
    वैज्ञानिकता है।
     राजकिशोर धिरही
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • तीन कविताएं

    तीन कविताएं

                            1
    बाहें फैलाये
    मांग रही दुआएँ,
    भूल गया क्या
    मेरी वफ़ाएँ!
    ओ निर्मोही मेघ!
    इतना ना तरसा,
    तप रही तेरी वसुधा
    अब तो जल बरसा!

                           2
    बूंद-बूंद को अवनी तरसे,
    अम्बर फिरभी ना बरसे!
    प्यासा पथिक,पनघट प्यासा
    प्यासा फिरा, प्यासे डगर से!
    प्यासी अँखिया पता पूछे,
    पानी का प्यासे अधर से!
    बूंद-बूंद को अवनी तरसे
    अम्बर फिरभी ना बरसे!

                         3
    प्रदूषण से कराहती,
    शांत हो गई है!
    कहते हैं नदी अपना
    पानी पी गई है!
    चंचल थी बहुत,
    उदास हो गई है!
    नक्शे में जाने कहाँ
    अब खो गई है!
    नदी शांत हो गई है!
    बादलों की ओर,
    आस लगाये रहती है,
    कलकल बहती थी,
    अब धूल उड़ाया करती है!
    प्यासी बरसातें उसकी,
    उम्मीदें धो गई हैं!

    नदी शांत हो गई है!

    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    अम्बिकापुर(छ. ग.)
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • कश्मीरी पत्थरबाजों पर दोहे

    कश्मीरी पत्थरबाजों पर दोहे

    धरती का जो स्वर्ग था, बना नर्क वह आज।
    गलियों में कश्मीर की, अब दहशत का राज।।
    भटक गये सब नव युवक, फैलाते आतंक।
    सड़कों पर तांडव करें, होकर के निःशंक।।
    उग्रवाद की शह मिली, भटक गये कुछ छात्र।
    ज्ञानार्जन की उम्र में, बने घृणा के पात्र।।
    पत्थरबाजी खुल करें, अल्प नहीं डर व्याप्त।
    सेना का भी भय नहीं, संरक्षण है प्राप्त।।
    स्वारथ की लपटों घिरा, शासन दिखता पस्त।
    छिन्न व्यवस्थाएँ सभी, जनता भय से त्रस्त।।
    खुल के पत्थर बाज़ ये, बरसाते पाषाण।
    देखें सब असहाय हो, कहीं नहीं है त्राण।।
    हाथ सैनिकों के बँधे, करे न शस्त्र प्रयोग।
    पत्थर बाज़ी झेलते, व्यर्थ अन्य उद्योग।।
    सत्ता का आधार है, तुष्टिकरण का मंत्र।
    बेबस जनता आज है, ‘नमन’ तुझे जनतंत्र।।
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • चंदन के ग़ज़ल (chandan ke gazal)

    यहाँ पर चंद्रभान पटेल चंदन के ग़ज़ल (Chandan Ke Gazal) के बारे में पढेंगे यदि आपको अच्छी लगी हो तो शेयर जरुर करें

    hindi gajal
    hindi gazal || हिंदी ग़ज़ल

    मैं दरिया के बीच कहीं डूबा पत्थर

    मैं दरिया के बीच कहीं डूबा पत्थर ,
    तू गहनों में जड़ा हुआ महँगा पत्थर।।

    तुझ को देख के नदी का पानी ठहर गया,
    तुझ को छू कर हरकत में आया पत्थर।।

    तेरा नाम लिखा जैसे ही तैर गया,
    जब जब मैंने पानी में फेंका पत्थर।।

    सब चीज़ों का बँटवारा जब ख़त्म हुआ,
    मेरे हिस्से में आया सारा पत्थर।।

    मैंने ख़ुदा बना देने का लोभ दिया
    तब जाकर तो मुश्किल से टूटा पत्थर।।

    चन्द्रभान ‘चंदन’

    फिर वही दर्द का सहर आया

    फिर वही दर्द का सहर आया,
    आज रस्ते में उसका घर आया..

    थी ये उम्मीद अब भी जी लूंगा,
    तब अचानक ही वो नज़र आया..

    इक सजा मैंने भी मुकर्रर की,
    वो खड़ी थी के मैं गुज़र आया..

    ज़िन्दगी ज़ायदाद सी लिख कर,
    ज़िन्दगी  उसके नाम कर आया..

    अब तमन्ना रही न जीने की,
    इस कदर मैं वहां से मर आया..

    सोच कर वो भी खुश हुई होगी,
    कैसे ये ज़ख्म से उभर आया…         

        *- चंदन*

    मुझे ये पूछते हैं सब मेरे ग़म का सबब* क्या है,

    मुझे ये पूछते हैं सब मेरे ग़म का सबब* क्या है,
    ज़माना किस कदर समझे मुहब्बत की तलब क्या है
    जो आँखें सो नहीं पाई है ख़्वाबों के बिखरने से
    उन आँखों से ज़रा पूछो बिना दीयों के शब* क्या है
    अगर बोलूँ किसी से कुछ तो लहज़े में मुहब्बत हो
    मुझे घर के बुज़ुर्गों ने सिखाया है अदब* क्या है
    तज़ुर्बों को मेरे आँसू से कागज़ पर सज़ाता हूँ
    यही तो शाइरी है दोस्त इसमें और ग़ज़ब क्या है
    हज़ारों चोट खाकर भी जिसे हासिल नहीं मरहम
    भला अब क्या पता उसको दवा क्या है मतब* क्या है
    ©चन्द्रभान ‘चंदन’
    ————–––

    • सबब – कारण
         शब – रात
        अदब – इज़्ज़त, आदर
        मतब – अस्पताल

    तुम्हारी यादों को आँसुओं से

    तुम्हारी यादों को आँसुओं से भिगो भिगो के मिटा रहा हूँ,
    बचे हुए थे सबूत जितने समेटकर सब जला रहा हूँ.   

    कि एक तुम हो जिसे परिंदों के प्यास पे भी तरस नहीं है,
    मैं कतरा कतरा बचा के सबके लिए समंदर बना रहा हूँ..

    ग़ज़ब की उसने ये शर्त रक्खी या वो जियेगी या मैं जियूँगा,
    कई बरस से मैं मर चुका हूँ यकीन सबको दिला रहा हूँ..

    नसीब लेती है कुछ न कुछ तो, कहाँ किसी को मिला है सबकुछ,
    जो मेरे किस्मत में ही नहीं था, उसी का मातम मना रहा हूँ..

    दगा किया था हमीं से तुमने, हमीं से रहते ख़फ़ा ख़फ़ा हो,
    जो क़र्ज़ मैंने लिया नहीं था, उसी की कीमत चुका रहा हूँ..    

    *©चन्द्रभान पटेल ‘चंदन’

    वो मुझे याद आता रहा देर तक

    वो मुझे याद आता रहा देर तक,
    मैं ग़ज़ल गुनगुनाता रहा देर तक
    उसने पूछी मेरी ख़ैरियत वस्ल में
    मैं बहाने बनाता रहा देर तक
    उसने होठों में मुझको छुआ इस तरह
    ये बदन कँपकपता रहा देर तक
    उसके दिल में कोई चोर है इसलिये
    मुझसे नज़रे चुराता रहा देर तक
    भूख़ से मर गया फिर यहाँ इक किसान
    अब्र आँसू बहाता रहा देर तक
    मेरे हिस्से में जो ग़म पड़े ही नहीं
    शोक उनका मनाता रहा देर तक    

    © चन्द्रभान “चंदन”

    जो शख़्स जान से प्यारा है

    जो शख़्स जान से प्यारा है पर करीब नहीं
    उसे गले से लगाना मेरा नसीब नहीं

    वो जान माँगे मेरी और मैं न दे पाऊँ
    ग़रीब हूँ मैं मगर इस क़दर ग़रीब नहीं

    हसीन चेहरों के अंदर फ़रेब देखा है
    मेरे लिए तो यहाँ कुछ भी अब अजीब नहीं

    जो बात करते हुए बारहा चुराए नज़र
    तो जान लेना कि वो शख़्स अब हबीब नहीं

    जिसे हुआ हो यहाँ सच्चा इश्क वो ‘चंदन’
    बिछड़ भी जाएं अगर, तो भी बदनसीब नहीं

    चन्द्रभान ‘चंदन’
    रायगढ़, छत्तीसगढ़

    भला इस मौत से ‘चंदन’ कोई कैसे मुकर जाए

    करूँ तफ़सील अगर तेरी तो हर लम्हा गुज़र जाए,
    तुझे देखे अगर जी भर कोई तो यूँ ही मर जाए..
    यहाँ हर शख्स मेरे दर्द की तहसीन करता है,
    भरे महफ़िल से शाइर उठ के जाए तो किधर जाए..
    हर इक दिन काटना अब बन गया है मसअला मेरा,
    तेरे पहलूँ में बैठूँ तो मेरा हर ज़ख्म भर जाए..
    यही सोचा था पागल ने बिछड़कर टूट जाऊँगा,
    अभी ज़िंदा है मेरा हौसला उस तक ख़बर जाए..
    इरादा क़त्ल का हो और आँखों में मुहब्बत हो,
    भला इस मौत से ‘चंदन’ कोई कैसे मुकर जाए..

    ©चन्द्रभान पटेल ‘चंदन’

    तफ़सील – विस्तार वर्णन

    तहसीन – वाह वाही, दाद देना, प्रशंसा

    क़ाफ़िया – अर
    रदीफ़ – जाए
    बह्र – बहर-ए-हजज़ मुसम्मन सालिम
    अरकान – 1222 1222 1222 1222

    अब बुरा सा लगता हूँ…

    हूँ मुक़म्मल पर ज़रा सा लगता हूँ,
    हर किसी को अब बुरा सा लगता हूँ…

    कलतलक ये खेल पूरा मेरा था,
    आज मैं खुद मोहरा सा लगता हूँ…

    था जिसे मैं जान से भी क़ीमती,
    लो उसी को सरफिरा सा लगता हूँ…

    नफरतों में इश्क़ की सुनके ग़ज़ल,
    बुज़दिलों को बेसुरा सा लगता हूँ…

    जो मेरी नज़रों से छिपते फिरते थे,
    अब उन्हीं को मैं डरा सा लगता हूँ…

    बोल दूँ मुझको नहीं है इश्क तो,
    लड़कियों को मसखरा सा लगता हूँ…

    @चंदन

    मुझे रखकर खयालों में ज़रा ये सोंचना हमदम

    मुझे रखकर खयालों में ज़रा ये सोंचना हमदम,
    चराग़-ए-रहगुज़र से मुश्किलें ज़्यादा हुई या कम…

    कभी लगता था बिन तेरे मुक़म्मल दिन नहीं होगा,
    अधूरी शाम तेरे नाम लिखकर जी रहे हैं हम…

    मिले जो घाव किस्मत से, सुकूँ एक पल नहीं मिलता,
    दिला दे कोई हमको भी ज़रा सा वक़्त का मरहम..

    बड़ा मगरूर है पतझड़, बड़ा मायूस है सावन,
    खुदाया फिर से लौटा दे, मुहब्बत का वही मौसम…

    न हसरत है न चाहत है खुदा इतनी इबादत है,
    रहे मासूम के चेहरे पे खुशियों की फिजा हरदम..

    @चंदन

    तुम्हारी यादों को आँसुओं से भिगो भिगो के मिटा रहा हूँ,

    तुम्हारी यादों को आँसुओं से भिगो भिगो के मिटा रहा हूँ,
    बचे हुए थे सबूत जितने समेटकर सब जला रहा हूँ।

    कि एक तुम हो जिसे परिंदों के प्यास पे भी तरस नहीं है,
    मैं कतरा कतरा बचा के उनके लिए समंदर बना रहा हूँ..

    ग़ज़ब की उसने ये शर्त रक्खी या मैं जियूँगा या वो जियेगी,
    कई बरस से मैं मर चुका हूँ यकीन उसको दिला रहा हूँ.

    नसीब लेती है कुछ न कुछ तो, कहाँ किसी को मिला है सबकुछ,
    जो मेरे किस्मत में ही नहीं था, उसी का मातम मना रहा हूँ।

    दगा किया था हमीं से तुमने, हमीं से रहते ख़फ़ा ख़फ़ा हो
    जो क़र्ज़ मैंने लिया नहीं था, उसी की कीमत चुका रहा हूँ   *

    ©चन्द्रभान पटेल ‘चंदन’*

    वतन में ये जो दहशत है

    सियासत है, सियासत है.._ _मुझे तुम याद आती हो,
    शिकायत है, शिकायत है.._ _जिधर देखूं तुम्ही तुम हो,
    मुहब्बत है, मुहब्बत है.._ _तेरे रुखसार का डिम्पल,
    कयामत है, कयामत है.._ _मिरे खाबों में आती हो,
    शरारत है, शरारत है.._ _नहीं करता तुम्हें बदनाम,
    शराफ़त है, शराफ़त है.._ _मुझे बर्बाद करके वो,
    सलामत है, सलामत है.._ _तुम्हें मैं किस तरह भूलूँ,
    ये आदत है, ये आदत है.._ _तुम्हारे ख़ाब हो पूरे,
    इबादत है, इबादत है.._

    © *चन्द्रभान पटेल ‘चंदन’*