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  • कुण्डलिया

    कुण्डलिया

    अंदर की यह शून्यता ,
                         बढ़ जाये अवसाद ।
    संशय विष से ग्रस्त मन ,
                         ढूढ़े  ज्ञान  प्रसाद ।।
    ढूढ़े   ज्ञान  प्रसाद ,
               व्यथित मन व्याकुल होता ।
    आत्म – बोध से दूर ,
        …     खड़ा    एकाकी    रोता ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
                 सतत शुचिता  अभ्यंतर ।
    कृपा  करें  जब  संत ,
                  बोध  होता  उर  अंदर ।।
                        ~  रामनाथ साहू ” ननकी “
                               मुरलीडीह (छ. ग. )
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • पानी के रूप

     पानी के रूप

    sagar
    sagar

    धरती का जब मन टूटा तो 
    झरना बन कर फूटा पानी 
    हृदय हिमालय का पिघला जब 
    नदिया बन कर बहता पानी ।।

    पेट की आग बुझावन हेतु 
    टप टप मेहनत टपका पानी 
    उर में दर्द  समाया जब जब 
    आँसू बन कर बहता पानी ।।

    सूरज की गर्मी से उड़ कर 
    भाप बना बन रहता पानी 
    एक जगह यदि बन्ध जाए तो 
    गगन मेघ रचता है पानी ।।

    धूल कणों से घर्षण करके 
    वर्षा बन कर गिरता पानी 
    धरती पर कलकल सा बह कर 
    सबकी प्यास बुझाता पानी ।।

    धरती के भीतर से आ कर 
    चारों ओर फैलता  पानी 
    कहीं झील कहीं बना समंदर 
    सुंदर धरा बनाता पानी ।।

    अपनी उदार वृत्ति से देखो 
    सबको जीवित रखता पानी 
    कहीं बखेरी हरियाली तो 
    अन्न अरु फूल उगाता पानी ।।

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    सुशीला जोशी 

    मुजफ्फरनगर

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • मन की जिद ने इस धरती पर कितने रंग बिखेरे

    मन की जिद ने इस धरती पर कितने रंग बिखेरे

    दिन   गुजरे   या   रातें  बीतीं  ,रोज लगाती  फेरे।
    मन की जिद ने इस धरती पर, कितने रंग बिखेरे।
    कभी  संकटों  के  बादल ने, सुख  सूरज को घेरा।
    कभी बना दुख  बाढ़  भयावह  ,मन में डाले डेरा।
    जिद ही  है जिसने  धरती  पर ,एकलव्य अवतारा।
    जिद  ही थी जिसने  रावण  को ,राम रूप में मारा।
    जिद ही थी  जो  अभिमन्यु था,  चक्रव्यूह में दौड़ा।
    जिद थी जिसने महायुद्ध में,नियम ताक पर छोड़ा।
    जिद ही थी जो एक सिकंदर,विश्वविजय को धाया।
    जिद  ही  थी  जो  महायुद्ध की, मिटी घनेरी छाया।
    जिद के  आगे  युद्ध हो गए ,लाखों इस धरती पर।
    जिद के  आगे  विवश हुए हैं ,सदियों  से नारी नर।
    लक्ष्मीबाई     पद्मावत   हो,  या   दुर्गा  या  काली।
    अन्याय जहाँ जिद कर बैठी,हत्या तक कर डाली।
    अपना   तो   संस्कार  यही  है ,जिद पूरी करते हैं।
    प्रेम  याचना   में  पिघले   तो,  झोली  ही भरते हैं।
    अन्यायअनीति जिद में किंतु,हमको कभी न भाये।
    ऐसी जिद पर शत्रु  हमसे, हर  पल मुँह  की खाये।
    जिद  के  आगे  प्राण-पुष्प  भी ,भेंट  चढ़ा  देते हैं।
    और अगर जिद  कर बैठे हम ,सिर उतार  लेते हैं।

    सुनील गुप्ता केसला रोड सीतापुर
    सरगुजा छत्तीसगढ

  • चहचहाती गौरैया

    चहचहाती गौरैया

    चहचहाती गौरैया
    मुंडेर में बैठ
    अपनी घोसला बनाती है,
    चार दाना खाती है
    चु चु की आवाज करती है,
    घोसले में बैठे
    नन्ही चिड़िया के लिए
    चोंच में दबाकर
    दाना लाती है,
    रंगीन दुनिया में
    अपनी परवाज लेकर
    रंग बिखरेती है,
    स्वछंद आकाश में
    अपनी उड़ान भरती है,
    न कोई सीमा
    न कोई बंधन
    सभी मुल्क के लाड़ली
    उड़ान से बन जाती है,
    पक्षी तो है
    गौरैया की उड़ान
    सब को भाँति है,
    घर मे दाना खाती है
    चहकते गौरैया
    देशकाल भूल
    सीमा पार चले जाती है,
    अपनी कहानी
    सबको बताती है
    कही खो न जाऊ
    अपना दर्द सुनाती है।
    -अमित चन्द्रवंशी “सुपा”
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • होली के बहाने ओ मोहना – केवरा यदु

    होली के बहाने ओ मोहना – केवरा यदु

    होली के बहाने ओ मोहना – केवरा यदु

    Radha kishna holi
    mohan radha holi

    होली के बहाने  ओ मोहना
    रंग  लगाने की कोशिश न करना ।

    बड़ा छलिया है तू ओ रंग रसिया ।
    दिल चुराने की कोशिश न करना ।

    बहुत  भोले भाले  बनते  कान्हा
    अब  सताने की कोशिश न करना।

    अभी आई हूँ कोरी चुनर ओढ़ के
    तुम  रंगाने की कोशिश न करना।

    तेरे  रंग में  रंगी श्याम  जन्मों से हूँ
    तुम  भुलाने की कोशिश न करना।

    पास बैठो  जरा  देख  लूँ जी भर
    दूर  जाने की कोशिश न  करना ।

    तेरी तिरछी नजर ने है जादू किया
    अब रुलाने की कोशिश न करना।

    रात आते हो सपने में ओ सांवरे
    तुम जगाने की कोशिश न करना।

    तेरे चरणों में श्याम मीरा कब से पड़ी।
    ठुकराने की कोशिश न करना ।


    होरी  के बहाने  ओ   मोहना
    रंग लगाने की कोशिश न करना ।


    रंग लगाने की– होली  है ।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद