कुण्डलिया
अंदर की यह शून्यता ,
बढ़ जाये अवसाद ।
संशय विष से ग्रस्त मन ,
ढूढ़े ज्ञान प्रसाद ।।
ढूढ़े ज्ञान प्रसाद ,
व्यथित मन व्याकुल होता ।
आत्म – बोध से दूर ,
… खड़ा एकाकी रोता ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
सतत शुचिता अभ्यंतर ।
कृपा करें जब संत ,
बोध होता उर अंदर ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह (छ. ग. )
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद