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  • बना है बोझ ये जीवन कदम

    बना है बोझ ये जीवन कदम


    (मुज़तस मुसम्मन मखबून)
    बना है बोझ ये जीवन कदम थमे थमे से हैं,
    कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से हैं।
    लिखा न एक निवाला नसीब हाय ये कैसा,
    सहन ये भूख न होती उदर दबे दबे से हैं।
    पड़े दिखाई नहीं अब कहीं भी आस की किरणें,
    गगन में आँख गड़ाए नयन थके थके से हैं।
    मिली सदा हमें नफरत करे जलील जमाना,
    हथेली कान पे रखते वचन चुभे चुभे से हैं।
    दिखी कभी न बहारें मिले सदा हमें पतझड़,
    मगर हमारे मसीहा कमल खिले खिले से हैं।
    सताए भूख तो निकले कराह दिल से हमारे,
    नया न कुछ जो सुनें हम कथन सुने सुने से हैं।
    सदा ही देखते आए ये सब्ज बाग घनेरे,
    ‘नमन’ तुझे है सियासत सपन बुझे बुझे से हैं।


    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • क्षुधा पेट की बीच सड़क पर

    क्षुधा पेट की बीच सड़क पर

    क्षुधा पेट की, बीच सड़क पर।
    दो नन्हों को लायी है।।
    भीख माँगना सिखा रही जो।
    वो तो माँ की जायी है।।
    हाथ खिलौने जिसके सोहे।
    देखो क्या वो लेता है।
    कोई रोटी, कोई सिक्का,
    कोई धक्का देता है।।
    खड़ी गाड़ियों के पीछे ये।
    भागे-भागे जाते हैं।
    करे सफाई गाड़ी की झट।
    गीत सुहाने गाते हैं।।
    रोटी की आशा आँखों में।
    रोकर बोझा ढोते हैं।
    पानी पीकर, जूठा खाकर,
    या भूखा ही सोते हैं।।
    डॉ. सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”
    तिनसुकिया, असम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • गरीबी का घाव

    गरीबी का घाव


    आग की तपिस में छिलते पाँव
    भूख से सिकुड़ते पेट
    उजड़ती हुई बस्तियाँ
    और पगडण्डियों पर
    बिछी हैं लाशें ही लाशें
    कहीं दावत कहीं जश्न
    कहीं छल झूठे प्रश्न
    तो कहीं ….


    आलीशान महलों की रेव पार्टियाँ
    दो रोटी को तरसते
    हजारों बच्चों पर
    कर्ज की बोझ से दबे
    लाखों हलधरों पर
    और मृत्यु से आँखमिचोली करते
    श्रमजीवी करोड़ों मजदूरों पर
    शायद! आज भी ….

    किसी की नज़र नहीं जाती
    वक़्त है कि गुजर जाता है
    लेकिन गरीबी का ये ‘घाव’
    कभी भरता ही नहीं ।

    – प्रकाश गुप्ता ”हमसफ़र”
    राज्य – छत्तीसगढ़
    मोबाईल नम्बर – 7747919129

  • ये  शहर हादसों का शहर हो न जाए

    हादसों का शहर

    ये  शहर  हादसों  का  शहर  हो न जाए।
    अमन पसंद लोगों पर कहर हो न जाए।।
    न  छेड़  बातें  यहां  राम  औ  रहीम की,
    हिन्दू  और  मुसलमां  में बैर हो न जाए।।
    अमृत  सा  पानी  बहे  इन दरियाओं  में,
    आबो हवा बचाओ सब जहर हो न जाए।।
    गोलियों की  आवाजें सुन  ही  जाती  हैं,
    पूरी  इन्सानियत  ही  ढेर  हो  न   जाए।।
    सूरज  की  पहली  किरण  का  पैगाम है,
    जल्दी  उठ  के  सुनो दोपहर हो न जाए।।
    सिल्ला’  तूं  अपने  विचार  खुले   रखना,
    संकीर्णता  में  अपने  गैर  हो   न   जाए।।
    -विनोद सिल्ला

  • अब्र के दोहे

    अब्र के दोहे

    मस्ताया मधुमास है, गजब दिखाए रंग।
    फागुन बरसे टूटकर, उठता प्रीत तरंग।।

    लाया फूल पलाश का, मस्त मगन मधुमास।
    सेमल-सेमल हो गया, फागुन अबके खास।।

    काया नश्वर है यहाँ, मत भूलें यह बात।
    कर्म अमर रहता सदा, भाव जगे दिन रात।।

    सार्वजनिक जीवन सदा, भेद भाव से दूर।
    जिनका भी ऐसा रहा, वो जननायक शूर।।

    होली में इस बार हम, करें नया कुछ खास।
    नर नारी दोनों सधे, पगे प्रेम उल्लास।।

    होंली के हुड़दंग में, रखें सदा यह याद।
    अक्षुण्ण नारी मान हो, सम्मानित सम्वाद।।

    धूम मचाएँ झूम के, ऐसा खेलें फाग।
    जीवन में खुशियाँ घुले, पगे प्रेम अनुराग।।

    हर्षित अम्बर है यहाँ, भू पुलकित है आज।
    सतरंगे अहसास से,, उड़ी हुई है लाज।।

    जपें नाम प्रभु राम का, इसका अटल विधान।
    तारक ईश्वर हैं यही, सद्गति के सन्धान।।

        सम्यक ईश्वर की नजर, रचता रहे विधान।
    सुख दुख दोनो ही दिये, माया जगत वितान।।

      निर्णय ईश्वर का हुआ, सदा बहुत ही नेक।
    अज्ञानी समझे नहीं, समझा वही विवेक।।  

    काव्य सुधा रस घोलती, समझ सृजन का मर्म ।
    सम्बल हे माँ शारदे, अभिनन्दन कवि कर्म ।।  

    वैचारिकता शून्य जब, यत्र तत्र हो तंत्र।
    सकारात्मक सोच सदा, खुश जीवन का मंत्र।।

      गहरी काली रात में, सूझे नहीं उपाय ।
    करें प्रात की वंदना, करता ईश सहाय ।।  

    अहा अर्चना हम करें, नित्य प्रात के याम ।
    भूधर का उत्तुंग शिखर , है भोले का धाम ।।  

    वाणी संयम से मिले, सामाजिक सम्मान।
    तोल मोल बोली सदा, रखे आपका मान।।  

    नदियाँ ममता बाँटती, ज्यों माता व्यवहार।
    पालन पोषण ये करे, गाँव शहर संसार।।  

    सच जिंदा ईमान भी, लोगों को है आस।
    आया जब भी फैसला, तब जीता विश्वास।।

    कहे जनवरी नित्य ही, खोलो सारे बन्ध।
    प्रेम दिसम्बर तक बढ़े, बिना किसी अनुबन्ध।।


    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर