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  • बेटा-बेटी में भेद क्यों पर कविता

    बेटा-बेटी में भेद क्यों पर कविता

    सागर होते हैं बेटे, तो गंगा होती है बेटियां
    चांद होते हैं बेटे, तो चांदनी होती हैं बेटियां
    जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
    कमल होते बेटे,तो गुलाब होती हैं बेटियां
    पर्वत होते बेटे, तो चट्टान होती हैं बेटियां
    जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
    पेड़ होते हैं बेटे,तो धरा होती हैं बेटियां
    मेघ होते हैं बेटे, तो धरा होती हैं बेटियां
    जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
    फूल होते हैं बेटे, तो खुशबू होती हैं बेटियां
    बर्फ होते हैं बेटे, तो ओस की बूंद होती है बेटियां
    जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।
    जग संचालक बेटे,तो जन्मदात्री होती हैं बेटियां
    कुल के रक्षक बेटे, तो कुल की देवी होती बेटियां।।
    जग में दोनों ही अनमोल फिर भेद कैसा।।

    क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • गौरैया पर कविता

    गौरैया पर कविता

    तू आई मेरे आँगन में
    अपने नन्हें बच्चे को लेकर
    फूदक फूदक खिला रही थी
    अपना चोंच, चोंच में देकर
    सजग सब खतरों से
    ताकती घुम घुम कर
    नजाकत से चुगती दाना
    आहट पा उड़ जाती फुर्र
    दानों को खत्म होता देख
    मिट्ठी भर अनाज बिखराई
    डरकर क्यों तू चली गई
    जब मैंने सहृदयता दिखलाई
    प्यारी गौरैया तू सीखाती है
    बच्चे को दुनिया की रीत
    संभलकर जीना इस जग में
    जाँच परखकर करना प्रीत.


    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
      बिछिया,महासमुन्द,छ.ग

  • अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दोहे

    अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दोहे

    नारी से है सुख  मिला, नारी से सम्मान।
    बिन नारी घर घर नही, लगता है सुनसान ।।1

    नारी को सम्मान दो, नारी मात समान ।
    नारी से घर स्वर्ग है, सब पर देती जान ।।2

    बिन घरनी के घर नहीं, बिना पुरुष परिवार ।
    स्त्री पुरुष का साथ रहे, जीवन देत सवार ।।3

    सुख दुःख की है संगिनी, देती प्यार दुलार ।
    नारी घर की मान है, सुखी रहे परिवार ।।4

    महिला विश्व दिवस मना, सभी होत खुशहाल ।
    देते सभी बधाइयां, नारी होत निहाल ।।5

    डॉ. अर्चना दुबे ‘रीत’

  • मोबाइल महाराज

    मोबाइल महाराज

    जय हो तुम्हारी हे मोबाइल महाराज
    तकनीकि युग के तुम ही हो सरताज
    बिन भोजन  दिन कट जाता है
    पर तुम बिन क्षण पल नहीं न आज।
    हे मोबाइल तुम बिन सुबह न होवे
    तुम संग आॅनलाइन रह सकें पूरी रात
    गुडमार्निंग से लेकर गुडनाइट का सफर
    मैसेज में ही होती अच्छी बुरी हर बात।
    हर पल आरजू मोबाइल महाराज की
    मिलता नहीं बेकरार दिल को चैन
    ललक रहती जाने कौन संदेशा आयो
    मोबाइल से हसीन मेरे दिन रैन।
    कक्षा में हूँ जाती पढ़ाने बिन मोबाइल जग सून
    दिल सोचता काश मेरे पास भी जेब होता
    घर्र घर्र  काँप कर अपना एहसास दिलाता
    अवसर पाते ही मेरे सामने नया संदेशा होता।
    छुट्टी होते ही मोबाइल की पहली तमन्ना
    हाथ में विराजते हैं मोबाइल महाराज
    बस फिर तो रम जाते हम तन मन से
    भूल जाते  हम सारे जरूरी काम काज।
    गाड़ी चलाते समय बगल में हमारे
    सुशोभित रहते मोबाइल महाराज
    लाल बत्ती का भी सदुपयोग करते
    व्हाटसअप खोलने से नहीं आते बाज।
    घर आकर खाना सोना देता नहीं आराम
    मोबाइल को नहीं देते पल भर भी विश्राम
    नींद सताए तो तकिए में मोबाइल रहता साथ
    मोबाइल ही साथी अपना मोबाइल अपना धाम।
    कुसुम लता पुंडोरा
    आर के पुरम
    नई दिल्ली
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • पाती सैनिक का पत्नी के नाम

    पाती सैनिक का पत्नी के नाम

    प्राण पिआरी दिल की रानी  | सदा सुहागिन होउ सयानी   ||
    आज तेरी चिट्ठी क्या आई   |  याद मुझे सबकी है सताई  ||
    वन्दवुं प्रथम बाबा अरु दादी | सीस झुकाऊँ मातु पिता जी  ||
    कैसे हैं सब चाचा चाची     | बडकी मैया बड़े पिता जी   ||
    गुडिया जैसी कैसी बहना    | आशिर्वाद उसे भी कहना    ||
    भैया भाभी चरण मनाऊँ    | सिया राम जैसे गुण गाऊँ   ||
    अनुज कहो कैसा है मेरा    | इहां उहां करता क्या फेरा    ||
    करे पढाई मन से कहना    | पढ लिख कर फौजी है बनना ||
    चन्ठ भतीजा और भतीजी   | कैसी है हम सबकी जीजी    ||
    प्यारा बेटा प्यारी बेटी      | कैसे गांव गली अरु खेती     ||
    बड़े दिनों में पाती पाया    | पढते पढते आंसू आया       ||
    मै लिखता सनेह से पाती   | भरि आई लिखते मम छाती  ||
    पिछली छुट्टी में घर आया  | खुशियाँ था भरपूर मनाया    ||
    माँ के हाथों का वो खाना  | आंचल से मुझको दुलराना    ||
    आती मुझको याद तिहारी  | भूल न पाऊँ तुमको प्यारी    ||
    हर पल रखती ध्यान हमारा | अपना सब कुछ मुझ पर वारा ||
    बात बात में वो इतराना    | मंद मंद तेरा मुसुकाना      ||
    छाई थी तुमपे हरियाली    | होठों पे सजती थी लाली     ||
    करती थी तुम नैन इशारे   | इक दूजे को सदा निहारे    ||
    जाने का दिन जब था आया | आँखों ने आंसू छलकाया    ||
    रो रो मेरी करी विदाई      | वारि बिना जिमि नदी सुहाई ||
    वच्चों का रोना बिलखाना   | बापू जल्दी वापस आना     ||
    गले लगाके मैया रोई      | बापू की आँखें थी खोई      ||
    यूनिट में था जब मै आया  | सबने मिलकर गले लगाया   ||
    मिलकर सबने बैग थे खोले  | भाभी ने क्या भेजा बोले    ||
    जो भी था सब मिलके खाए  | आपस में सब खूब हँसाए   ||
    और सुनाओ प्राण पिआरी    | लगे मोहिनी मोपर डारी    ||
    जो जो मन्नत बचा तिहारा   | अबकी पूरा करना सारा    ||
    छोटू का मुंडन है करना      | मन्नत का धागा है बधना  ||
    सीमा पे अभी युद्ध की हलचल | रक्षा में रहते हम प्रतिपल  ||
    सारा भारत परिवार हमारा    | मातृभूमि पे जीवन वारा    ||
    छुट्टी मिलते ही आऊँगा      | सबकी खुशियाँ लौटाऊंगा    ||
    छोटू का भी टैंक खिलौना    | बिटिया के गुडिया का गहना ||
    और सभी का लीस्ट बनाया  | तेरे झुमके को बनवाया     ||
    पत्र नही दिल इसको मानो  | बाँहों में मुझको हूँ जानो    ||
    कभी नही रोना तुम प्यारी  | हर पल है आशिष हमारी    ||
    पाती पढते पढते हलचल   | बाहर झांकी ठहर गया पल   ||
    सैनिक गाड़ी द्वारे आई    | सहम गई कुछ बोल न पाई  ||
    देखा इक शव उसमे आया  | जो है तिरंगे में लिपटाया    ||
    भीड़ बड़ी द्वारे है मोहन     | रुक गइ जैसे सबकी धड़कन ||
    पति पहिचानि के पिटहि छाती | पर धीरज मन में है लाती  ||
    अजर अमर  हो पिया हमारे   | जोर जोर जय हिंद पुकारे  ||
    अजर अमर  हो पिया हमारे   | जोर जोर जय हिंद पुकारे  ||
    मोहन श्रीवास्तव
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद