बसंत आया दूल्हा बन
बसंत आया दूल्हा बन,
बासंती परिधान पहन।
उर्वी उल्लासित हो रही,
उस पर छाया है मदन।।
पतझड़ ने खूब सताया,
विरहा में थी बिन प्रीतम।
पर्ण-वसन सब झड़ गये,
किये क्षिति ने लाख जतन।।
ऋतुराज ने उसे मनाया,
नव कोपलें ,नव पल्हव।
फिर से बनी नव यौवना ,
मही मनमुदित है मगन।।
वसुंधरा पर हर्ष छाया ,
सभी मना रहे हैं उत्सव।
सोलह श्रृंगारित है धरा
लग रही है आज दुल्हन।।
नोट- धरती के पर्यायवाची-उर्वी,क्षिति, मही,वसुंधरा, धरा
मधु सिंघी,नागपुर(महाराष्ट्र)