प्रीत की रीत

प्रीत की रीत चंद्र गगन में आधा हो ,प्रिय से मिलन का वादा हो ,बनता है इक गीत|निस दिन अंखियां बरसी हो ,पिया मिलन को तरसीं होंबढ़ती है तब प्रीत|जब सारी रस्में निभानीं हो,छोटी जिंदगानीं हो,सजती है तब  प्रीत की रीत|सपनें देखें संग संग में ,प्यार पले दोनों मन में ,बनते तब वे सच्चे मीत|दिल … Read more

तीन ताँका – प्रदीप कुमार दाश

तीन ताँका नेकी की राहछोड़ते नहीं पेड़खाये पत्थरपर देते ही रहेफल देर सबेर । जेब में छेदपहुँचाता है खेदसिक्के से ज्यादागिरते यहाँ रिश्तेअचरज ये भेद । डूबा सूरजडूबते वक्त दिखारक्तिम नभलौट रहे हैं नीड़अनुशासित खग ।        ~ ● ~ □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

प्रजातंत्र पर कविता

प्रजातंत्र पर कविता जहरीला धुंआ है चारो ओर,मुक्त हवा नहीं है आज,पांडव सर पर हाथ धरे हैं,कौरव कर रहे हैं राज! समाज जकड़ा जा रहा है,खूनी अमरबेल के पंजों में,नित्य फंसता ही जा रहा है,भ्रष्टाचार के शिकंजों में! आतंक का रावणअट्टहास कर रहा है,कहने को है प्रजातंत्र,अधिकारों का हनन,कोई खास कर रहा है! शासन की … Read more

सुनो एक काम करते हैं

सुनो एक काम करते हैं सुनो एक काम करते हैं दोनों भाग जाते हैंचलेंगे उस जगह पे हम जहां सब मुस्कुराते हैंबहारों का हंसी मौसम जहाँ हर रोज़ रहता होपपीहे पीहू पीहू के जहाँ पे गीत गाते हैं दूर तक फैला हो अम्बर क्षितिज सा इक नज़ारा होबीच खेतों के सुंदर सा वहीं इक घर … Read more

उषा सुहानी लगे प्यारी

उषा सुहानी लगे प्यारी उषा सुहानी लगे प्यारी मंद पवन की ठंडक न्यारी घोंसला छोड़ पंछी भागे उषाकाल नींदों से जागे ।            कोयल की सुन मीठी वाणी            छुप छुप किया करे मनमानी             शीतल मंद पवन मदमाती             रवि किरण तन -मन को लुभाती। कोहरा आकाश धुँधलाता । हरा भरा तृण उर लुभाता। … Read more