” भोर का दिनकर “
पश्चिम के सूर्य की तरह
दुनियाँ भी ….
मुझे झूठी लगी
मानवता का
एक भी पदचिन्ह
अब तो दिखाई नहीं देता
जागती आँखों के
सपनों की तरह
अन्तःस्थल की
भावनाएँ भी
खण्डित होती हैं
तब ..
जीवन का
कोई मधुर गान
सुनाई नहीं देता
फिर भी ….
सफेदपोश चेहरों को
बेनकाब करते हुए
एक नई उम्मीद का
दमखम भरते हुए
सुनहले फसलों को
प्राणदान देते हुए
इस विश्वरूपी भुवन की ओर
धीमे कदमों से चलते हुए
वह भोर का दिनकर
उदित होता है
दूर पूर्व से …………
…………………………….. !!
रचनाकार ~
प्रकाश गुप्ता “हमसफर”
युवा कवि एवं साहित्यकार
(स्वतंत्र लेखन)
रायगढ़ (छत्तीसगढ़) से
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद