रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे
जंगल झाड़ी अउ रूख राई
प्राणी जगत के संगवारी हे।
काटथे फिटथे जउन संगी
ओ अंधरा मुरूख अज्ञानी हे।
अपने हाथ अउ अपने गोड़
मारत हवय जी टंगिया।
अपन हाथ मा घाव करय
बेबस हवय बनरझिया।।
पेट ब्याकुल बनी करत हे
ठेकेदार के पेट भरत हे।
नेता मन के कोठी भरत हे
जीव जंतु जंगल के मरत हे।।
अपने हाथ खुद करत हन
घांव।
रूख राई ला काट काट के
मेटत हवन छांव।
बिन रूख राई के संगवारी
शहर बचय न गांव ।
बिन पवन पुरवईया के संगी
न पानी रहे न स्वांस।
बिन प्रकृति सृष्टि जगत नहीं
रूख राई बड़ हे खास।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर