राणा की तलवार

राणा की तलवार

पावन मेवाड़ भू पर जन्मे
महाराणा प्रताप  शूर वीर
अकबर से  संघर्ष  किया
कई वर्षों तक बनकर धीर l
दृढ़  प्रतिज्ञा  वीरता  में
नाम तुम्हारा रहे  अमर
घास की रोटी खाकर तुमने
शत्रु से किया संग्राम समर l
तलवारों के वार से जिसके
अकबर थर थर थर्राता था
बुलंद हौसलों का सिपाही
महाराणा वो कहलाता था l
तलवार हवा में जब चलती
चहुँ ओर मचाती थी चीत्कार
होश  उड़ाती  रिपु दल  के
रणभूमि करती थी हाहाकार l
हवा की गति से उड़ता चेतक
राणा की चमकती थी तलवार
शत्रु दल में हड़कंप था मचता
देख लरजती तलवार के  वार l
भाला कवच तलवार सहित
होते थे  चेतक  पर  सवार
अकबर की शर्त को राणा ने
कदापि नहीं किया स्वीकार l
पतंग सा हवा में उड़ता चेतक
तलवार  तेज़  बरसाती  थी
हिन्दू सम्राट राणा के सम्मुख
सूर्य रश्मियाँ  भी  लजाती थी l
अदम्य शौर्य तलवार में था
शत्रु  को  धूल  चटाती  थी
तेज़ प्रकाश निडर खड्ग ही
मौत  की  नींद  सुलाती  थी l
था अद्भुत महाराणा वीर
तलवार मार  मचाती थी
निहत्थे को भी देते तलवार
ये अदा उन्हें श्रेष्ठ बनाती थी l
मातृभूमि  रक्षा की खातिर
जंगल  में  कई  वर्ष  बिताए
विजय मिली मेवाड़ राज्य पर
महाराणा ने हंसकर प्राण गँवाए l
कुसुम लता पुन्डोरा
नई दिल्ली
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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