इस कविता में समाज के उन लोगों या नेताओं की आलोचना करता है जो जनता के अधिकारों और संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं। “बहुरूपिया” का मतलब ऐसे लोग जो अपनी असली पहचान छिपाकर छल करते हैं। इसे समाज में जागरूकता फैलाने या भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के खिलाफ आवाज उठाने में अपना रंग दिखाते हैं ।
रावन मारे बर बड़ हुसियार !
रावन मारे बर बनगे बड़ हुसियार
सजधज के मटमट ले होगे तियार,
काली जेन हरियर बेशरम रिहिन
आज बनगे बड़ पड़री खुसियार !
नकली रावन ल नकली ह मारत हे
बता तो येला मारे के का अधिकार,
मारना हे त बने मार न रे अइबी
तोर अंतस म घुसरे रावन ल मार !
ले बता राम के, के ठन गुन हवय
रावन के गुन घलो नइ हे दू- चार,
रावन के मुड़ी तो दसे रिहिस होही
तुँहर तो चारो मुड़ा ये हवय हज़ार !
इँहा कइ नकली बाबा,नेता,महंत
येला सोझिया के ठाढ़ो भुर्री बार ,
अब अइसन रावन ल खोज मारव
तभे ये देश,समाज म होही सुधार !
ये कागज़,पैरा भूसा के ल रहन दे
जेन छेल्ला घुमत हे तेला जोहार ,
जनता के बाँटा ल जेन डकारत हे
अइसन बहुरूपिया ल धर कचार !
राजकुमार 'मसखरे'
भदेरा (गंडई),जि.-KCG