शंकर छंद [सम मात्रिक] विधान – 26 मात्रा, 16,10 पर यति, चरणान्त में 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l
उदाहरण : सुरभित फूलों से सम्मोहित, बावरे मत भूल, इन फूलों के बीच छिपे हैं, घाव करते शूल। स्निग्ध छुअन या क्रूर चुभन हो, सभी से रख प्रीत, आँसू पीकर मुस्काता चल, यही जग की रीत।
सरसी/कबीर/सुमंदर छंद [सम मात्रिक] विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष : चौपाई का कोई एक चरण और दोहा का सम चरण मिलाने से सरसी का एक चरण बन जाता है l
उदाहरण : पहले लय से गान हुआ फिर, बना गान ही छंद, गति-यति-लय में छंद प्रवाहित, देता उर आनंद। जिसके उर लय-ताल बसी हो, गाये भर-भर तान, उसको कोई क्या समझाये, पिंगल छंद विधान।
लावणी/कुकुभ/ताटंक छंद [सम मात्रिक] विधान – 30 मात्रा, 16,14 पर यति l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष – इसके चरणान्त में वर्णिक भार 222 या गागागा अनिवार्य होने पर ताटंक , 22 या गागा होने पर कुकुभ और कोई ऐसा प्रतिबन्ध न होने पर यह लावणी छंद कहलाता है l
उदाहरण : तिनके-तिनके बीन-बीन जब, पर्ण कुटी बन पायेगी, तो छल से कोई सूर्पणखा, आग लगाने आयेगी। काम अनल चन्दन करने का, संयम बल रखना होगा, सीता सी वामा चाहो तो, राम तुम्हें बनना होगा।
– ओम नीरव
विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है – 22 22 22 22, 22 22 22 2 गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा गा फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन अल किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l
बीर/आल्ह छंद [सम मात्रिक] विधान – 31 मात्रा, 16,15 पर यति, चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l
उदाहरण : विनयशीलता बहुत दिखाते, लेकिन मन में भरा घमण्ड, तनिक चोट जो लगे अहम् को, पल में हो जाते उद्दण्ड। गुरुवर कहकर टाँग खींचते , देखे कितने ही वाचाल, इसीलिये अब नया मंत्र यह, नेकी कर सीवर में डाल।
मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 12 या लगा, चरणान्त में वाचिक भार 22 या गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष – दोहा के क्रमागत दो चरणों के अंत में एक लघु बढ़ा देने से मुक्तामणि का एक चरण बनता है l
उदाहरण : विनयशील संवाद में, भीतर बड़ा घमण्डी, आज आदमी हो गया, बहुत बड़ा पाखण्डी l मेरा क्या सब आपका, बोले जैसे त्यागी, जले ईर्ष्या द्वेष में, बने बड़ा बैरागी l