सपना हुआ न अपना

सपना हुआ न अपना

बचपन में जो सपने देखे, हो न सके वो पूरे,
मन को समझाया, देखा कि, सबके रहे अधूरे!
उडूं गगन में पंछी बनकर, चहकूं वन कानन में,
गीत सुरीले गा गा   कर, आनन्द मनाऊं मन में!
मां ने कहा, सुनो, बेटा, तुम, चाहो अगर पनपना
नहीं, व्यर्थ के सपने देखो, सपना हुआ न अपना

सुना पिताजी ने, जब मेरे, सपने की सब बातें,
मुझसे कहा, नहीं, सपने के लिए, बनी हैं रातें!
दिन में, अथक परिश्रम करना, रातों को आराम,
खुद को तुम तैयार करो, असल यही है काम!
जीवन मंत्र, गूढ़ रहस्य है, सोने को ज्यों तपना,
नहीं, व्यर्थ के सपने देखो, सपना हुआ न अपना!

पद्म मुख पंडा,
ग्राम महा पल्ली डाकघर लोइंग

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