बस्तर धाम पर कविता-शशिकला कठोलिया

बस्तर धाम पर कविता

उच्च गिरि कानन आच्छादित,   

छत्तीसगढ़ का यह भाग, 
प्रकृति की गोद में बसा ,
सुंदर पावन बस्तर धाम ।

नदियों का कल कल प्रवाह ,
कर रही सुंदर दृश्यों की सर्जना,
गिराते हराते जलप्रपात ,
करते जैसे वारिद गर्जना ।

सघन विशाल शैल श्रृंखलाएं ,
कह रही वनों की व्यथा ,
                   शिलाओ पर संगीतिक ध्वनियां,                     
सुना रही सुरम्य कथा ।

बिखरा पड़ा है चारों ओर ,
कांगेर का प्राकृतिक वैभव ,
सुंदर कहानी बता रही है , 
वन्य पक्षियों की अनवरत कलरव।

दूधिया पानी फ़ौव्वारो का ,
दिख रहा रूप विलक्षण ,
असंख्य श्वेत मोतियों की ,
वर्षा हो रही प्रतिक्षण ।

रहस्य छुपाती कुटुमसर गुफा ,
दांतो तले उंगली दबाते ,
फैला है अंधेरों का साम्राज्य,
सबके मन को है लुभाते ।

चित्रकूट तीरथगढ़ जैसे ,
यहां है सुंदर जलप्रपात ,
दूध सी सरीखी बहती ,
अविरल धारा निपात ।

बारसूर का मंदिर अनुपम ,
बनावट उसकी बेमिसाल,
बत्तीस खंभों पर खड़ा ,
विनायक की प्रतिमा विशाल।

विभिन्न प्रजातियों से ,
घिरा वन है घनघोर ,
विशाल घाटियाँ है वहां ,
नहीं दिखता कहीं छोर ।

बैलाडीला में है स्थित ,
विपुल लोहे की खदान ,
विदेशों में निर्यात करते ,
पहुंचाते हैं जापान ।

मां दंतेश्वरी का पावन मंदिर,
है परम पुनीत ,
                         कह रही प्राचीन कथाएं,                          
अलौकिक उसका अतीत ।

संपूर्ण वन प्रांतर में ,
छाई हुई है हरियाली ।
नैसर्गिक सुंदरता से भरा ,
बस्तर की छटा है निराली ।

श्रीमती शशिकला कठोलिया, 
शिक्षिका ,अमलीडीह, डोंगरगांव
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

कविता बहार

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