घनाक्षरी एक वार्णिक छन्द है। इसे कवित्त भी कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में घनाक्षरी छन्द के प्रथम दर्शन भक्तिकाल में होते हैं। निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि हिन्दी में घनाक्षरी वृत्तों का प्रचलन कब से हुआ। घनाक्षरी छन्द में मधुर भावों की अभिव्यक्ति उतनी सफलता के साथ नहीं हो सकती, जितनी ओजपूर्ण भावों की हो सकती है।

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शबरी

शबरी पर कविता/ सौदामिनी खरे दामिनी

शबरी पर कविता/ सौदामिनी खरे दामिनी शबरी शबरी सी भक्ति मिले,जीवन सुगम चले,प्रभु के आशीष तले,होवे नवल विहान।यह भीलनी साधना,रही निष्काम भावना,कठिनाई से सामना,गुरु वचनों को मान।लोभ मोह छोड़कर,भक्ति भाव…

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पितृ पक्ष पर कविता 2021 -राजेश पान्डेय वत्स (मनहरण घनाक्षरी)

हम यहाँ पर आपको पितृ पक्ष पर कविता प्रस्तुत कर रहे हैं आशा है आपको यह पसंद आएगी .

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भारत माँ के सपूत

भारत माँ के सपूत - घनाक्षरी चाहे ठंड का कहरआधी रात का पहरतिलभर न हिलते,खड़े , सीना तान के। डरते न तूफान सेडटे हैं बड़ी शान सेभूख ,प्यास ,नींद छोड़,रखवारे…

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माँ शारदे पर कविता

माँ शारदे पर कविता (देव घनाक्षरी) नमन मात शारदेअज्ञानता से तार देकरुणा की धार बहामुख में दो ज्ञान कवल।। वीणा पुस्तकधारिणीभारती ब्रह्मचारिणीशब्दों में शक्ति भरदोवाणी में दो शब्द नवल।। हंस…

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शिव – मनहरण घनाक्षरी

शिव - मनहरण घनाक्षरी उमा कंत शिव भोले, डमरू की तान डोले, भंग संग  भस्म धारी, नाग कंठ हार है। शीश जटा चंद्रछवि, लेख रचे ब्रह्म कवि, गंग का विहार…

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मुख पर कविता – राजेश पांडेय वत्स

मुख पर कविता -मनहरण घनाक्षरी कविता संग्रह गैया बोली शुभ शुभ, सुबह से रात तक,कौआ बोली हितकारी,चपल जासूस के! हाथी मुख चिंघाड़े हैं, शुभ मानो गजानन,सियार के मुख कहे,बोली चापलूस…

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रसोईघर पर कविता – राजेश पांडेय वत्स

रसोईघर पर कविता (छंद-मनहरण घनाक्षरी) छंद अँगीठी माचीस काठ,कंडा चूल्हा और राख, गोरसी सिगड़ी भट्टी, *देवता रसोई के!*सिल बट्टा झाँपी चक्की,मथनी चलनी चौकी,कड़ाही तसला तवा, *वस्तु कोई-कोई के!*केतली कटोरा कुप्पी,बर्तन…

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सुभाष चंद्र बोस – डॉ एन के सेठी

सुभाष चंद्र बोस - डॉ एन के सेठी आजादी के नायक थेमातृभू उन्नायक थेजीवन अर्पण कियाऐसे त्यागी वीर थे।।भारत माँ हुई धन्यदेशभक्ति थी अनन्यजयहिन्द किया घोषकर्मयोगी वीर थे।।त्याग दिया घर…

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पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा

पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता,इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती।धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं,जीव सहभागिता को, पर्यावरण कहती।पर…

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