आज पंछी मौन सारे
आज पंछी मौन सारे नवगीत (१४,१४) देख कर मौसम बिलखताआज पंछी मौन सारेशोर कल कल नद थमा हैटूटते विक्षत किनारे।। विश्व है बीमार या फिरमौत का तांडव धरा परजीतना है युद्ध नित नवव्याधियों का तम हरा कर छा रहा नैराश्य…
यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ०बाबू लाल शर्मा बौहरा के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
आज पंछी मौन सारे नवगीत (१४,१४) देख कर मौसम बिलखताआज पंछी मौन सारेशोर कल कल नद थमा हैटूटते विक्षत किनारे।। विश्व है बीमार या फिरमौत का तांडव धरा परजीतना है युद्ध नित नवव्याधियों का तम हरा कर छा रहा नैराश्य…
यह कविता मनुष्य के स्वार्थपरता को व्यक्त करते लिखी गई है
मेरा भारत देश महान (16-15 मापनी नवगीत) पाटी पर खड़िया से लिख दूँमेरा भारत देश महान।पढ़ लिख कर मैं कवि बन गाऊँभारत माता के गुणगान।। बाबा चिन्ता मत कर मेरीलौटेंगे बीते दिन रीतदिनकर बनकर गीत लिखूँगाछंद लिखूँगा माँ की प्रीत…
मन पर कविता (१६,१६) मानव तन में मन होता है,जागृत मन चेतन होता है,अर्द्धचेतना मन सपनों मे,शेष बचे अवचेतन जाने,मन की गति मन ही पहचाने। मन के भिन्न भिन्न भागों में,इड़, ईगो अरु सुपर इगो में।मन मस्तिष्क प्रकार्य होता,मन ही…
दर्द न जाने कोय….. बाल भिक्षु पर कविता(विधाता छंद मुक्तक) झुकी पलकें निहारें ये,रुपैये को प्रदाता को।जुबानें बन्द दोनो की,करें यों याद माता को। अनाथों ने, भिखारी नें,तुम्हारा क्या बिगाड़ा है,दया आती नहीं देखो,निठुर देवों विधाता को। बना लाचार जीवन…
सदा छला जन का विश्वास विश्वास गीत (१६,१५) सत्ताधीशों की आतिश से,जलता निर्धन का आवास।राज महल के षडयंत्रों ने,सदा छला जन का विश्वास। युग बीते बहु सदियाँ बीती,चलता रहा समय का चक्र।तहखानों में धन भर जाता,ग्रह होते निर्बल हित वक्र।दबे…
माँ के आँचल में सो जाऊँ (१६ मात्रिक) आज नहीं है, मन पढ़ने का,मानस नहीं गीत,लिखने का।मन विद्रोही, निर्मम दुनिया,मन की पीड़ा, किसे बताऊँ,माँ के आँचल में, सो जाऊँ। मन में यूँ तूफान मचलते,घट मे सागर भरे छलकते।मन के छाले…
दोषी पर कविता ( १६,१४ ताटंक छंद ) सामाजिक ताने बाने में,पिसती सदा बेटियाँ क्यों?हे परमेश्वर कारण क्या है,लुटती सदा बेटियाँ क्यों? मात पिता पद पूज्य बने हैं,सुत को सीख सिखाते क्या?जिनके सुत मर्यादा भूले,पथ कर्तव्य बताते क्या? दोष तनय…
जन चरित्र की शक्ति भू पर विपदा आजठनी है भारी।संकट में है विश्वप्रजा अब सारी।। चिंतित हैं हर देशविदेशी जन सेचाहे सब एकांतबचें तन तन सेघातक है यह रोगडरे नर नारी।भू पर ……….।। तोड़ो इसका चक्रसभी यों कहतेघर के अंदर…
बादल पर कविता बादल घन हरजाई पागल,सुनते होते तन मन घायल।कहीं मेघ जल गरज बरसते,कहीं बजे वर्षा की पायल।इस माया का पार न पाऊँ,क्यों बादल बिरुदावलि गाऊँ। मैं मेघों का भाट नहीं जो,ठकुर सुहाती बात सुनाऊँ।नही अदावत रखता घन से,बे…