Tag: *मृत्यु पर कविता

  • कुछ चिन्ह छोड़ दें -गीता द्विवेदी

    कुछ चिन्ह छोड़ दें -गीता द्विवेदी

    मृत्यु आती है ,
    सदियों से अकेले ही ,
    बार – बार , हजार बार
    लाखों , करोड़ों , अरबों बार ।
    पर अकेले जाती नहीं ,
    ले जाती है अपने साथ ,
    उन्हें , जिन्हें ले जाना चाहती है ।


    एक , दो या हजार
    कुछ भयभीत रहते हैं ,
    उसके नाम से , उसकी छाया से ,
    कुछ आलिंगन करते हैं सहर्ष ,
    देश के लिए , धर्म के लिए ।
    कुछ आमंत्रित करते हैं ,
    ईर्ष्यावश दूसरों के लिए ।


    स्वयं डरते हैं ,
    जैसे प्रेतनी है ।
    कुछ लोगों का कहना है कि ,
    निगल लेती है सबको ,
    अजगरी सी …….
    तब एक प्रश्न निर्मित होता है ,
    कभी उसकी क्षुधा शांत हुई या नहीं ?


    निःसंदेह नहीं ….. क्योंकि …
    ऐसा कोई दिन , महिना , वर्ष नहीं ,
    जब उसकी परछाईं ,
    किसी ने भी न देखी हो …


    अब ये भी परम सत्य है ,
    वो आती रहेगी , प्रलय तक ,
    ले जाएगी सबको पारी-पारी ,
    तो उसके आने से पहले ,
    क्यों न कुछ ऐसा प्रबंध करें ,
    कि उसके साथ जाने का ,
    पश्चाताप न हो ,
    मुड़कर देखें भी नहीं ,
    हो सके तो कुछ चिन्ह छोड़ दें ,
    स्वर्णिम , चिरस्थायी , यश चिन्ह ,
    यही श्रेष्ठ होगा ,
    सार्थक भी ।

    -गीता द्विवेदी

  • मरने वाले की याद में कविता

    मरने वाले की याद में कविता

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    ओढ़ना बिना जेखर जिंनगी गुजरगे,
    मरनी म ओखर कपड़ा चढ़ाबो।
    माँग के खवईया ओ भूख म मरगे,
    जम्मों झी गाँव के तेरही ल खाबो।

    जियत म देख ले आँखी पिरावै,
    पुतरी म ओखर माला चढ़ाबो।
    जिंनगी जेखर हलाकानी म बीते हे,
    मरे म मिनट भर शान्ति हम देबो।

    जेखर सहारा बर कोनो नई आईन,
    तेखर सिधारे म सब झन जुरियाबो।
    साधन बर जियत ले जेनहा तरसगे,
    परलोक बर ओखर सरि जिनिस चढ़ाबो।

    हलुआ कहाँ पाबे फरा नई खाए,
    सुरता ओखर करके बरा ल खाबो।
    करें हन जेखर जियत भर बुराई ,
    खोज खोज के ओखर गुन ल गोठियाबो।

    अनिल कुमार वर्मा