कुछ चिन्ह छोड़ दें -गीता द्विवेदी

कुछ चिन्ह छोड़ दें -गीता द्विवेदी

मृत्यु आती है ,
सदियों से अकेले ही ,
बार – बार , हजार बार
लाखों , करोड़ों , अरबों बार ।
पर अकेले जाती नहीं ,
ले जाती है अपने साथ ,
उन्हें , जिन्हें ले जाना चाहती है ।


एक , दो या हजार
कुछ भयभीत रहते हैं ,
उसके नाम से , उसकी छाया से ,
कुछ आलिंगन करते हैं सहर्ष ,
देश के लिए , धर्म के लिए ।
कुछ आमंत्रित करते हैं ,
ईर्ष्यावश दूसरों के लिए ।


स्वयं डरते हैं ,
जैसे प्रेतनी है ।
कुछ लोगों का कहना है कि ,
निगल लेती है सबको ,
अजगरी सी …….
तब एक प्रश्न निर्मित होता है ,
कभी उसकी क्षुधा शांत हुई या नहीं ?


निःसंदेह नहीं ….. क्योंकि …
ऐसा कोई दिन , महिना , वर्ष नहीं ,
जब उसकी परछाईं ,
किसी ने भी न देखी हो …


अब ये भी परम सत्य है ,
वो आती रहेगी , प्रलय तक ,
ले जाएगी सबको पारी-पारी ,
तो उसके आने से पहले ,
क्यों न कुछ ऐसा प्रबंध करें ,
कि उसके साथ जाने का ,
पश्चाताप न हो ,
मुड़कर देखें भी नहीं ,
हो सके तो कुछ चिन्ह छोड़ दें ,
स्वर्णिम , चिरस्थायी , यश चिन्ह ,
यही श्रेष्ठ होगा ,
सार्थक भी ।

-गीता द्विवेदी

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