यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०दुर्गेश मेघवाल के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-
संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।
(हिंदी दिवस पर विशेष -हिंदी-वन्दना)
========
नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको, सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
भारत का है गौरव तू , चमकी बन भानु प्रभा । जन-जन में है सौरव तू , महकी हर दिशा दिशा । भारत-सुत में तू ही , नया स्वाभिमान जगाती है । नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको , सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
अ से अज्ञानी जन को , तू ज्ञ से ज्ञान कराए । भ से भारत का जग में , तू ध से ध्वज फहराए । वर्णमाला ये तेरी , नव-नव गीत बनाती है । नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको , सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
संस्कृति में तूने लिया जन्म, जन-जन ने तुझे अपनाया । मैथिली बने संरक्षक तेरे , भारतेंदु ने जीना सिखाया । देवी ,सुभद्रा,प्रेम ,निराला , तू कब से बनाती है । नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको , सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
‘खड़ी बोली’ तू बन कर पनपी , अब व्यापकता ही पाए । तेरे इस इतिहास को शुक्ल, सब जन-जन तक पहुँचाए । सरलता ही तेरी हमें, अति सफल बनाती है । नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको , सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
सखी नागरी संग में लेकर, लिपि तूने अपनी बनाई । ध्वनि-रूप प्रमाणित करके, वैज्ञानिकता सिद्ध कराई । जो जैसा बोला ,वैसा ही, तू लिखना सिखाती है । नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको , सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
अंग्रेजी भाषी मन को भी, अब भाने लगी है तू भी। भारत-सीमा भी पार कर, जग समाने लगी है तू भी । गुरु टैगोर का बन आशीष तू , नई श्रद्धा जगाती है । नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको , सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
लिखूँ ,बोलूं तुझको ही गाऊँ , सीखूं तुझसे ही, मैं जीना सिखाऊँ । भले कुछ भी मैं पढूं ,पढ़ाऊँ, तेरा ही बस वन्दन चाहूँ। तू ही तो *डी कुमार* को, अब *अजस्र* बनाती है । नए बोल सिखाती है , मुझे ज्ञान कराती है । ए माँ भाषा तू ही मुझको, सम्मान दिलाती है । नए बोल सिखाती है ……..
रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।
कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।
राखी चंदा पहुँच गई है….
पृथ्वी ने भेजी है राखी , चंदा तक पहुंचाने को । विक्रम-प्रज्ञान हैं बने संवदिया, भाई-राखी बंधवाने को ।
राखी में भरकर है भेजा, आठ-अरब का प्यारा- प्यार । इसरो ने उसको पहुँचाया , सोलह-बरस ,मेहनत का सार ।
भारत संग जहान यह सारा, चंद्रयान पर गर्व करें । उज्ज्वल भविष्य ,चमकते सपने , जन-जन की आंखों में भरे ।
लघु को कमतर ना माना करते , व्यापक सोच के मानक पर । अंतरिक्ष असीम-अपरिमित, पर होगा प्रज्ञान-असर ।
मानवता के कदम बढ़े हैं, अंतरिक्ष में चांद की ओर । मंगल, शनि , शुक्र और सूर्य , छूना हर ब्रह्मांड का छोर ।
हाथ तिरंगा ,आँखों सपने, विश्व-गुरु की कसौटी पर । छोटे-छोटे कदमों से चलकर , बने विश्व इक कुटुम्ब का घर ।
देशों के शामिल प्रयासों से ही, नए गगन तक पहुंच बने । अंतरिक्ष की रक्षा भी हो, चला कारवां ,ना कभी थमें ।
विविध-विविधता लेकर भारत, भीम-जनतंत्र से एक बना । विश्व-परिवेश भी एक बने तो, कैसा हो ये नेकसपना ?
हथियार-होड़ की हठ से हटकर, नई राह को चुनना है । जहां मानव खुशहाल भविष्य हो, संसार को ऐसा बुनना है ।
सहपृथ्वी, शताधिक बहनों ने, प्यार अपना पहुँचाया है । चंदामामा वो जग के बन गए, भारत-प्रज्ञान सरमाया है
सोलह-अरब आंखों के सपने, भारत पर ही अब उम्मीद । राखी-चंदा पहुंच गई है , सूर्य-सर्वोदय, अब होंगे दीद ।
अमृत-महोत्सव ,’स्वर्ण-चिड़िया ‘ का, खुले अंतरिक्ष में मनाएंगे । ‘स्वाधीनता दिवस दो हजार सैंतालीस ‘ ‘अजस्र’ सपने सजाएंगे ।
करवाचौथ पर हिंदी कविता– करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है।
करवा चौथ पर गीत- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
जीवन हो उनका मंगलमय, कभी न उनके लगें खरोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
इस दुनिया में पति से बढ़कर, कोई कहीं न होता दूजा उसको ही भगवान मानकर, करती हैं वे उसकी पूजा
पति की सेवा में जो तत्पर, कभी न वे उसका धन नोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
इस व्रत के पीछे सदियों से, चलती आई एक कहानी देख चंद्रमा को पत्नी फिर, पति के हाथों पीती पानी
बढ़ता प्यार खूब आपस में, उनके बीच न लड़तीं चोचें करवा चौथ मनाती हैंं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
झगड़ा होता नहीं कभी जब, फिर क्यों चले मुकदमेंदारी क्यों तलाक की नौबत आए, और मचे क्यों मारा-मारी
तालमेल हो संभव तब ही, समाधान में हों जब लोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
सब आनंदित होते घर में, अपनापन जब रहता जारी धन- दौलत की कमी नहीं हो, लगे न फिर कोई बीमारी
जीवन के पथ पर जो बढ़ते, उन चरणों में क्यों हों मोचें करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।
करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे , मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
सात फेरों के थे जो वचन वो , मिलके निभते रहे, तेरी जय हो । मांग सिंदूर भरे,जीवन संग-संग चले । मेरी धड़कन उन्हीं की दीवानी रहे । दीवानी रहे…मइया करवा मइया करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे , मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
मेरी सुनले तू अब मोरी मइया , मेरे जीवन की तू ही खेवइया। जीवन ये भी रहे ,भले फिर से मिले । मेरी सजना के संग ही कहानी रहे । कहानी रहे…मइया करवा मइया करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे , मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
माह कातिक का जब-जब भी आये, करके पूजन तुझे हम मनाएं , सजना संग-संग रहे ,हर सुहागन कहे । मरते दम तक वो राजा की रानी रहे । वो रानी रहे…..मइया करवा मइया करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
मेरे सजना की जीवन रवानी रहे । मइया करवा मइया , मइया ओ करवा मइया ।
*डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज)*
करवाचौथ पर हिंदी कविता
करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है । जमीं के चांद का आसमान के चांद से मिलने का पल , बड़ा सुहाना लगता है। पति प्रेम से लिप्त यह व्रत , मन को लुभाना लगता है। करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।
किए सोलह श्रृंगार नारियां जब छतों में आती हैं , चांद को देखने का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है। हाथों में मेहंदी , आंखो पे काजल, गले में हार का दीदार सुहाना लगता है। नई चूड़ी , नए कंगना , नवीनता का सारा श्रृंगार सुहाना लगता है।
पहन कर चुनरी सतरंगी , पिया को रिझाना लगता है। कर सोलह श्रृंगार सज कर , पिया के मन को लुभाना लगता है। कार्तिक की चतुर्थी चांदनी में , मुझे पिया चांद सी बनना लगता है। निर्जल व्रत रखकर , पिया की उम्र बढ़ाना लगता है।
करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है। आसमान का एक चांद भी शरमा जाता है, जमीं के लाखों चांद को देख कर, शरमाने की अदा का वह पल बड़ा सुहाना लगता है।
प्रकती भी देती है जमीं के देवियों का साथ, सर्दी की हल्की बौछार का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है। अखंड सुहाग रहे सभी मां – बहनों का, खुदा से दुआ दोहराना लगता है । करवा चौथ के व्रत का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है।।
चांद का साया
ए चांद दीखता है तुझमें, मुझे मेरे चांद का साया है। हुआ दीदार जो तेरा तो ये चांद भी अब मुस्काया है।।
सदा सुहागन चाहत दिल में, पति हित उपवास किया मैंने। जीवन भर साजन संग पाऊं, मन में एहसास किया मैंने।। जितना जब मांगा है तुमसे, उससे ज्यादा ही पाया है…
माही की है रची महावर, मंगल सूत्र पहना है। कुमकुम मांग सजाई है, सोलह श्रंगारी गहना है।। चौथ कहानी सुनी आज, और करवा साथ सजाया है…
नहीं करो तुम लुक्का छिप्पी, मुझको बिल्कुल नहीं भाती ये। बैरन बदली को समझा दो, जले पर नमक लगाती ये।। हुई इंतेहा इंतजार की, बीते नहीं वक्त बिताया है…
सुबह से लेकर अभी तलक, मैं निर्जल और निराहार रही। अंत समय तक करूं चतुर्थी, खांडे की ही धार सही।। चांद रहो तुम सदा साक्षी, जब पिया ने व्रत खुलाया है…
शिवराज चौहान नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)
करवा चौथ-सुचिता अग्रवाल
कार्तिक चौथ घड़ी शुभ आयी। सकल सुहागन मन हरसायी।। पर्व पिया हित सभी मनाती। चंद्रोदय उपवास निभाती।।
करवे की महत्ता है भारी। सज-धज कर पूजे हर नारी।। सदा सुहागन का वर हिय में। ईश्वर दिखते अपने पिय में।।
जीवनधन पिय को ही माना। जनम-जनम तक साथ निभाना।। कर सौलह श्रृंगार लुभाती। बाधाओं को दूर भगाती।।
माँग भरी सिंदूर बताती। पिया हमारा ताज जताती।। बुरी नजर को दूर भगाती। काजल-टीका नार लगाती।।
गजरे की खुशबू से महके। घर-आँगन खुशियों से चहके।। सुख-दुख के साथी बन जीना। कहता मुँदरी जड़ा नगीना।।
साड़ी की शोभा है न्यारी। लगती सबसे उसमें प्यारी।। बिछिया पायल जोड़े ऐसे। सात जनम के साथी जैसे।।
प्रथा पुरानी सदियों से है। रहती लक्ष्मी नारी में है।। नारी शोभा घर की होती। मिटकर भी सम्मान न खोती।।
चाहे स्नेह सदा अपनों से। जाना नारी के सपनों से।। प्रेम भरा संदेशा देता। पर्व दुखों को है हर लेता।।
उर अति प्रेम पिरोये गहने। सारी बहनें मिलकर पहने।। होगा चाँद गगन पर जब तक। करवा चौथ मनेगी तब तक।।
डॉ.सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप” तिनसुकिया, असम
करवाचौथ पर हिंदी कविता
( सरसी छंद)
आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।
करे आरती पूजा करके , पाने पति का प्यार ।।
पायल बाजे रुनझुन रुनझुन , बिन्दी चमके माथ ।
मंगलसूत्र गले में पहने , लगे मेंहदी हाथ ।।
करवा चौथ लगे मन भावन, आये बारम्बार ।
आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।।
रहे निर्जला दिनभर सजनी , माँगे यह वरदान ।
उम्र बढे हर दिन साजन का , बने बहुत बलवान ।।
छत के ऊपर देखे चंदा , खुशियाँ मिले अपार ।
भोली सी सूरत को देखे , सजन लुटाए प्यार ।।
सुखी रहे परिवार सभी का, जुड़े ह्रदय का तार।
आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।।
*महेन्द्र देवांगन माटी*
*पंडरिया छत्तीसगढ़*
हूँ करवा मैं
मेरे चाँद में बहत्तर हैं छेद हूँ करवा मैं पति की बढ़े उम्र हों दीर्घजीवी जब भी वो चेतेंगे देख के त्याग बनेंगे पत्नीव्रता खुलेगा भाग्य मेरा मेरे बच्चों का होगा उद्धार संवरेगा संसार मिलेगा प्यार करवा चौथ व्रत होगा सफल चांद मेरा धवल यही मेरा संबल।।