शाकाहार पूर्णतः स्वैच्छिक आहारिक आदत है जिसमें केवल पौधों से प्राप्त आहार का सेवन किया जाता है। जिसमें शाकाहारी व्यक्ति अन्य जीवों का साथी बनता है, जो उच्च ऊर्जा और पोषण से भरपूर पौधों का सेवन करता है। यह अपने आपको प्रकृति से जोड़कर अधिक निकट रखते हुए उसके संरक्षण एवं संवर्धन की सोच से जुड़ा हुआ है जो मानवीय सभ्यता के विकास की प्रगतिवादी सोच है।
सबके अपने पक्ष
मानव शरीर को उसकी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार ही भोजन की आवश्यकता होती है। संतुलित आहार के तत्व हैं-कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स, रुक्षांस एवं पानी। इन सभी को उसकी ज़रूरत के अनुसार कोई भी अपनी ज़ेब की ताकत और जीभ के स्वाद के अनुसार उपभोग करता है। यह उसकी अपनी परिस्थिति, पारिवारिक और सामाजिक जीवन शैली पर भी निर्भर करता है कि वह किस पद्धति को अपनाएगा तथापि वह इसे अपनाने के कई बहाने अपने पक्ष में तैयार रखता है। वर्तमान में शाकाहार और मांसाहार के पक्ष में कई लोगों की अपनी भीड़ तर्कों के साथ खड़ी है और किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं है अलबत्ता सभी अपनी शैली को प्रोत्साहित करने के कई आयोजन करते हुए अपने आपको श्रेष्ठ बताते हुए पाए जाते हैं। कहीं-कहीं कोई इसे प्रोत्साहित करने या दिखावे के फेर में ट्रोल किए जाते हैं जो उचित नहीं।
शाकाहार : विज्ञान सम्मत आहार प्रक्रिया
शाकाहार वर्तमान में एक विज्ञान सम्मत आहार प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने आपको प्रकृति से जोड़ते हुए ऊर्जा की प्राप्ति के सर्वाधिक निकट होता है, इस तरह वह पर्यावरणीय जीवंतता और इसके संवर्धन का झंडा उठाए हुए है। खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल में जो भी उपभोक्ता प्रकृति (उत्पादक) के जितने निकट होगा वह उतनी ही ज्यादा ऊर्जा प्राप्त करेगा और चाहेगा कि उसका भंडार इस दुनिया में अक्षुण्ण रहे। मांसाहार तैयार होने में शाकाहार की तुलना में प्रकृति द्वारा पानी का उपयोग ज्यादा होता है इसलिए पेयजल की गंभीर समस्या को देखते हुए भी शाकाहार को प्राथमिकता दिए जाने की खबरें हैं।
शाकाहार के प्रकार
शाकाहार के प्रकार हैं-
1 वीगन-
ये केवल साबुत अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, नट और बीज का सेवन करते हैं। वे डेयरी उत्पाद नहीं लेते हैं।
2 लैक्टो शाकाहारी-
ये शाकाहारी हैं, लेकिन वे दूध, पनीर, दही, मक्खन, घी और क्रीम सहित डेयरी उत्पादों का भी सेवन करते हैं। वे अंडे नहीं खाते हैं ।
3 ओवो शाकाहारी-
ये अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, नट्स, बीज और अंडे का सेवन करते हैं लेकिन डेयरी उत्पाद नहीं।
विकास की गाथा में शाकाहार
आवश्यक पोषण के मायने मानवीय सभ्यता के विकास की गाथा के साथ बदलते रहा है। वर्तमान में हमारे पास प्रत्येक भोजन के विकल्प सभी के पास उपलब्ध हैं तथापि शाकाहार हमें जीवन में एकाग्रता और सामंजस्य को बढ़ावा देता है। इससे हमारे नैतिक मूल्यों का समर्थन होता है, जो सार्वजनिक हित के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस तरह शाकाहार एक समृद्ध, सात्विक, और संतुलित जीवनशैली को प्रोत्साहित करती है। इस शैली में अनाज,दाल, फल,हरी सब्जियाँ,नट्स और दूध लिया जाता है जिसमें सभी पोषक तत्व के साथ एंटीऑक्सीडेंट की भी पूर्णता हो जाती है। यह मौसमी फलों एवं सब्जियों के उपभोग को भी बढ़ावा देता है इस तरह यह कृषक, माली और गौपालन को स्थानीय स्तर पर समृद्ध करने की भी प्रक्रिया से भी जुड़ा हुआ है।
कुछ देशों में शाकाहारियों के अपने विशेष अधिकार हैं जबकि इससे जुड़े अर्थशास्त्र की कई गणनाएँ मौजूद हैं। सनातन सभ्यता पद्धति में हिन्दू,जैन एवं बौद्ध धर्म के मतावलंबियों को इसे प्राचीन काल से अपनाते हुए पाया जाता है। शाकाहारी भोजन ग्रहण करने के मामले में भारत विश्व में पहले नम्बर पर है। ईसा पूर्व से ही साधु-संतों के द्वारा शाकाहार में कन्द-मूल लेने से सम्बंधित कई पौराणिक तथ्य मिलते हैं।
मांसाहार- ग्लोबल वार्मिंग का खतरा
एक शोध में पाया गया कि आहार से मांस और डेयरी उत्पादों को काटने से किसी व्यक्ति के भोजन से कार्बन फुटप्रिंट को 73 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। सात्विक, राजसिक और तामसिक भोजन से आहार में एक साधारण बदलाव से इन सब से बचा जा सकता है!
मांसाहारी सिर्फ मांसाहार ही लेते हैं ऐसा नहीं है वे शाकाहार भी यथासमय लेते हैं इस दृष्टि से ये विशुद्ध मांसाहारी नहीं माने जा सकते हैं। कुछ लोग डेयरी प्रोडक्ट को भी शाकाहार से अलग हटाकर देखते हैं। वर्तमान में किसी भी पद्धति को अपनाना पूर्णतः व्यक्तिगत एवं स्वैच्छिक है। मांसाहार पशु क्रूरता, हिंसा और हत्या जैसे जीवन जीने के अधिकार को छीनने से जुड़ा है जो हमें राजसिक और तामसिक भोजन देता है जबकि शाकाहार सात्विक भोजन होता है। पशु चराई और पशु मल कुप्रबंधन से कई गुना ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ जाता है। मांसाहारियों के लंबे,और नुकीले दांत होते हैं जो मनुष्यो के नहीं होते ,मांसाहारियों में छोटी आँतें होती हैं जबकि इंसानों में लम्बी साथ ही पशुओं के यकृत आनुपातिक रूप से बड़े होते हैं जो यूरिक एसिड को बेअसर कर देते हैं। यह भोजन राजसिक या तामसिक होने के कारण ताजा नहीं होता और इसमें उच्च मात्रा में संतृप्त वसा होती है जो रोगकारी हो सकता है।
जीवन संतुलन में शाकाहारी आदतें
शाकाहारी आदतें शरीर के वजन सहित कोलेस्ट्रॉल को संतुलित रखने में सहायक है जिससे मोटापा जनित रोग- उच्च रक्तचाप,मधुमेह और हृदय रोगों का खतरा न्यून होता है। इस पद्धति में विटामिन बी12,कैल्शियम और आयरन की कमी प्रायः देखी जाती है। शाकाहारी होने के लोगों के अपने-अपने तर्क हैं जैसे-स्वास्थ्य,नैतिकता, धर्म,परंपरा एवं पर्यावरण से जुड़ा होना। जंक फूड और शाकाहारी पैकेट बन्द भोजन जैसे- चिप्स, सोडा और कूकीज हानिकारक प्रभाव देते हैं क्योंकि इनमें अतिरिक्त सोडियम,शक्कर और संतृप्त वसा की अधिकता होती है। आजकल कैलोरी गणना और बॉडी मॉस इंडेक्स के आधार पर विशेषज्ञों के सुझाए अनुसार लोग आहार ग्रहण कर रहे हैं।
प्रकृति के और अपने परिवेश में अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर जो आहार जिसे उचित लगता है वह उसके पक्ष में खड़ा होता है तथापि शाकाहार जीवन शैली इस देश के अनुरुप है जिससे आप अपनाते हुए अपने एवं अपनों के हित की रक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। मेरी आप सभी से यह अपील है कि शाकाहार अपनाते हुए अपने जीवन में करुणा और अहिंसा को बढ़ावा दीजिए।
हरे भरे जियो और हरे भरे रहो।
रमेश कुमार सोनी
रायपुर,छत्तीसगढ़