मेरे गांव का बरगद – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
मेरे गांव का बरगद मेरे गाँव का बरगदआज भी वैसे ही खड़ा हैजैसे बचपन में देखा करता थाजब से मैंने होश संभाला हैअविचलवैसे ही पाया है हम बचपन में उनकी लटों से झूला करते थेउनकी मोटी-मोटी शाखाओंके इर्द-गिर्द छुप जाया करते थेधूप हो या बारिशउसके नीचेघर-सानिश्चिंत होते थे तब हम लड़खड़ाते थेअब खड़े हो गएतब हम बच्चे थेअब बड़े हो गएतब हम तुतलाते … Read more