मेरे गांव का बरगद – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

village based Poem

मेरे गांव का बरगद  मेरे गाँव का बरगदआज भी वैसे ही खड़ा हैजैसे बचपन में देखा करता थाजब से मैंने होश संभाला हैअविचलवैसे ही पाया है हम बचपन में उनकी लटों से झूला करते थेउनकी मोटी-मोटी शाखाओंके इर्द-गिर्द छुप जाया करते थेधूप हो या बारिशउसके नीचेघर-सानिश्चिंत होते थे  तब हम लड़खड़ाते थेअब खड़े हो गएतब हम बच्चे थेअब बड़े हो गएतब हम तुतलाते … Read more

तुम्हारे होने का अहसास

तुम्हारे होने का अहसास तुम आसपास नहीं होतेमगर आसपास होते हैंतम्हारे होने का अहसासमन -मस्तिष्क में संचिततुम्हारी आवाजतुम्हारी छविअक़्सरहूबहूवैसी-हीबाहर सुनाई देती हैदिखाई देती हैतत्क्षणतुम्हारे होने के अहसास से भर जाता हूँधड़क जाता हूँकई बार खिड़की के पर्दे हटाकरबाहर देखने लग जाता हूँयह सच है कि तुम नहीं होतेपरपलभर के लिएतुम्हारे होने जैसा लग जाता हैलोगों ने बतायायह अमूमन सब के … Read more