Tag: #नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नरेन्द्र कुमार कुलमित्रके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • मेरे गांव का बरगद – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    मेरे गांव का बरगद – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    मेरे गांव का बरगद 

    मेरे गाँव का बरगद
    आज भी 
    वैसे ही खड़ा है
    जैसे बचपन में देखा करता था
    जब से मैंने होश संभाला है
    अविचल
    वैसे ही पाया है

    village based Poem

    हम बचपन में 
    उनकी लटों से झूला करते थे
    उनकी मोटी-मोटी शाखाओं
    के इर्द-गिर्द छुप जाया करते थे
    धूप हो या बारिश
    उसके नीचे
    घर-सा
    निश्चिंत होते थे 

    तब हम लड़खड़ाते थे
    अब खड़े हो गए
    तब हम बच्चे थे
    अब बड़े हो गए
    तब हम तुतलाते थे 
    अब बोलना सीख गए
    तब हम अबोध थे
    अब समझदार हो गए
    तब अवलंबित थे
    अब आत्मनिर्भर हो गए
    तब हम बेपरवाह थे
    अब जिम्मेदार हो गए
    तब पास-पास थे
    अब कितने दूर-दूर हो गए

    बरगद आज भी
    वैसा ही खड़ा है 
    अपनी आँखों से
    न जाने कितनी पीढियां देखी होगी
    न जाने कितने
    उतार-चढ़ाव झेले होंगे
    अपने भीतर
    न जाने कितने
    अनगिनत
    यादों को सहेजे होंगे
    पर अब
    एकदम उदास-सा
    अकेला खड़ा होता है
    जैसे किसी के इंतिजार में हो…
    अब कोई नहीं होते
    उनके आसपास
    न चिड़ियाँ, न बच्चे, न बूढ़े
    न कलरव, न कोलाहल, न हँसी…

    साल में एक या दो बार
    जब जाता हूँ गाँव
    बरगद के करीब से 
    अज़नबी की तरह गुजर जाता हूँ
    कभी-कभी लगता है
    ये बड़प्पन
    ये समझदारी
    ये आत्मनिर्भरता
    ये जिम्मेदारी
    और ये दूरी…
    आख़िर किस काम के
    जो अपनों को अज़नबी बना दे
    हम रोज़मर्रा में 
    इतने मशगूल हो गए
    कि हमारे पास इतना भी वक्त नहीं
    कि मधुर यादों को 
    याद कर सके ,जी सकें…

    हमारे गाँव में
    न जाने कितने लोग
    हमारी मधुर यादों से जुड़े हुए
    करते होंगे हमें याद…
    हमारा इंतिजार…
    पर 
    हम ‘काम’ के मारे हैं
    उनके अकेलेपन और उदासी के लिए
    हमारे पास वक्त नहीं
    तुम्हें हमारी यादों के सहारे
    अकेले ही जीना होगा
    हे! मेरे गाँव के बरगद…।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
       
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  • तुम्हारे होने का अहसास

    तुम्हारे होने का अहसास

    तुम आसपास नहीं होते
    मगर 
    आसपास होते हैं
    तम्हारे होने का अहसास
    मन -मस्तिष्क में संचित
    तुम्हारी आवाज
    तुम्हारी छवि
    अक़्सर
    हूबहू
    वैसी-ही
    बाहर सुनाई देती है
    दिखाई देती है
    तत्क्षण
    तुम्हारे होने के अहसास से भर जाता हूँ
    धड़क जाता हूँ
    कई बार खिड़की के पर्दे हटाकर
    बाहर देखने लग जाता हूँ
    यह सच है 
    कि तुम नहीं होते
    पर
    पलभर के लिए
    तुम्हारे होने जैसा लग जाता है
    लोगों ने बताया
    यह अमूमन 
    सब के साथ होता है
    किसी के न होने पर भी
    उसके होने का अहसास…
    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

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