पावस पर कविता
पावस ऋतु अब आ गई , घिरी घटा घनघोर ।
चमचम चमके दामिनी , बादल करते शोर ।।
बादल करते शोर , भरे नदिया अरु नाला ।
चले कृषक खलिहान , लगा कर घर में ताला ।
नियति कहे कर जोड़ , दिखे ज्यों रात्रि अमावस ।
अँधियारा चहुँ ओर , घटा छाये जब पावस ।।
पावन पावस ऋतु सदा , शीतल करती जान ।
ग्रीष्म ताप के बाद में , गिरे बूँद खलिहान ।।
गिरे बूँद खलिहान , तृप्त है प्यासी धरती ।
सूखा हो आकाल , प्यास से जनता मरती ।।
नियति कहे कर जोड़ , जरा अब बरसो सावन ।
अगन बुझे हर देह , बूँद से कर दे पावन ।।
खड़ा हिमालय रोकता , वारिद जल को मान ।
पेड़ काट नर कर रहा , पर्वत भी बेजान ।।
पर्वत भी बेजान , इसी से होती वर्षा ।
पावस देख किसान , खुशी से मन भी हर्षा ।।
नियति कहे कर जोड़ , देह फिर बने शिवालय ।
सभी लगाओ पेड़ , कहे नित खड़ा हिमालय ।।
नीरामणी श्रीवास नियति
कसडोल छत्तीसगढ़