पतझड़ और बहार/ राजकुमार ‘मसखरे’

पतझड़ और बहार/ राजकुमार 'मसखरे'

पतझड़ और बहार/ राजकुमार ‘मसखरे’ ये  घुप अंधेरी  रातों मेंधरा को  जगमग करने दीवाली आती जो जगमगाती ! सूखते,झरते पतझड़ मेंशुष्क  जीवन  को रंगनेवो होली में राग बसंती गाती  ! झंझावत, सैलाब लिएजब  पावस दे दस्तक,तब फुहारें मंद-मंद मुस्काती ! कुदरत हमें सिखाता हैबिना कसक व टीस केवो ख़ुशी समझ नही आता है ! जो … Read more

११ मात्रिक नवगीत – पीत वर्ण पात हो

११ मात्रिक नवगीत – पीत वर्ण पात हो घाव ढाल बन रहे. स्वप्न साज बह गये।. पीत वर्ण पात हो. चूमते विरह गये।। काल के कपाल पर. बैठ गीत रच रहा. प्राण के अकाल कवि. सुकाल को पच रहा. सुन विनाश गान खगरोम की तरह गये।पीत वर्ण……….।। फूल शूल से लगेमीत भयभीत छंदरुक गये विकास … Read more