पतझड़ और बहार/ राजकुमार ‘मसखरे’
पतझड़ और बहार/ राजकुमार ‘मसखरे’ ये घुप अंधेरी रातों मेंधरा को जगमग करने दीवाली आती जो जगमगाती ! सूखते,झरते पतझड़ मेंशुष्क जीवन को रंगनेवो होली में राग बसंती गाती ! झंझावत, सैलाब लिएजब पावस दे दस्तक,तब फुहारें मंद-मंद मुस्काती ! कुदरत हमें सिखाता हैबिना कसक व टीस केवो ख़ुशी समझ नही आता है ! जो … Read more