जिंदगी पर कविता
जिंदगी पर कविता ज़िंदगी,क्यों ज़िंदगी से थक रही है,साँस पर जो दौड़ती अब तक रही है। मंज़िलें गुम और ये अंजान राहें,कामयाबी चाह की नाहक रही है । भूख भोली है कहाँ वो जानती है!रोटियाँ गीली, उमर ही पक रही है। हो गए ख़ामोश अब दिल के तराने,बदज़ुबानी महफ़िलों में बक रही है। लाश पर … Read more