आर आर साहू-भावभरे दोहे

भावभरे दोहे प्रकृति प्रदत्त शरीर में,नर-नारी का द्वैत।प्रेमावस्था में सदा,है अस्तित्व अद्वैत।। पावन व्रत करते नहीं,कभी किसी को बाध्य।व्रत में आराधक वही, और वही आराध्य ।। परम्पराएँ भी वहाँ,हो जाती निष्प्राण।जहाँ कैद बाजार में,हैं रिश्तों के प्राण।। एक हृदय से साँस ले, प्रियतम-प्रिया पवित्र।श्रद्धा से विश्वास का,दिव्य सुगंधित इत्र।। भाव सोच अवधारणा,होते शब्द प्रतीक।देश काल … Read more

आर आर साहू के दोहे

doha sangrah

आर आर साहू के दोहे कहाँ ढूँढता बावरे,तू ईश्वर को रोज।करनी पहले चाहिए,तुमको अपनी   खोज।। शब्द मात्र संकेत हैं,समझ,सत्य की ओर।सूर्य- चित्र से कब कहाँ,देखा होता भोर।। बस प्रतीक को मानकर,हुई साधना बंद।माया से मिलता रहा,सपने का आनंद।। किसका दर्शन,किसलिए,चला भीड़ के संग।चाह-राह बेमेल है,ये कैसा है ढंग।। मंदिर में घंटी बजे,मन के छिड़े न … Read more

ज्योति पर्व नवरात पर दोहे -आर आर साहू

ज्योति पर्व नवरात पर दोहे जगमग-जगमग जोत से,ज्योतित है दरबार।धरती से अंबर तलक,मां की जय-जयकार।। मनोकामना साथ ले,खाली झोली हाथ।माँ के दर पे टेकते,कितने याचक माथ।। धन-दौलत संतान सुख,पद-प्रभुता की चाह।माता जी से मांगकर,लौटें अपनी राह।। छप्पन भोगों का चढ़ा माँ को महाप्रसाद।इच्छाओं के बोझ को मन में राखा लाद।। घी का दीपक मैं जला,करने … Read more

मानवता की छाती छलनी हुई

मानवता की छाती छलनी हुई विमल हास से अधर,नैन वंचित करुणा के जल से।नहीं निकलती पर पीड़ा की नदीहृदय के तल से।। सहमा-सहमा घर-आँगन है, सहमी धरती,भीत गगन है ।लगते हैं अब तो जन-जन क्यों जाने ?हमें विकल से । स्वार्थ शेष है संबंधों में, आडंबर है अनुबंधो में ।मानवता की छाती छलनी हुईमनुज के छल से । ——R.R.Sahuकविता … Read more