Tag: #उमा विश्वकर्मा

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ० उमा विश्वकर्मा के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • मेरा सपना सबकी खैर

    मेरा सपना सबकी खैर

    सरहद पर न हो दीवारें, मिट जाये हर दिल से बैर,

    चलो बुझा दे सब अंगारे, मेरा सपना सबकी खैर |

    मेरे सपनों की दुनिया में, प्यार रहे बस प्यार रहे

    मिटें द्वेष की सब रेखाएं, प्यार हमारा यही कहे

    रह जाये न कोई ग़ैर —2

    चलो बुझा दे सब अंगारे, मेरा सपना सबकी खैर |

    एक दूजे के दिल में हम, शरबत सा घुल कर देखें

    नेह की बारिश में भीगे, हम पर्वत सा धुल कर देखे

    धुल जाये मन का सब मैल —2

    चलो बुझा दे सब अंगारे, मेरा सपना सबकी खैर |

    दिल में प्यार भरें हम इतना, नफ़रत न रह जाये

    मानव फिर मानवता को, सच्चे मन से अपनाये

    विश्व शांति की उठी लहर —–2

    चलो बुझा दे सब अंगारे, मेरा सपना सबकी खैर |

    आतंकी गतिविधियों को मिले कहीं न पानी-खाद

    बंद हो बारूदों की खेती, रह जाये न कहीं फ़साद

    उगल सके न कोई जहर —2

    चलो बुझा दे सब अंगारे, मेरा सपना सबकी खैर |

    प्रेम नेह समरसता होगी, जब आने वाले कल में

    आदरभाव रहे शामिल, जीवन के दुर्लभ पल में

    सबका जीवन हो बेहतर —–2

    चलो बुझा दे सब अंगारे, मेरा सपना सबकी खैर |

    सोने की चिड़िया वाला बाला भारत फिर हमें बनाना है

    विश्व पटल पर छा जाये, ऐसा परचम लहराना है

    कोशिश से निकलेगा हल —-2

    चलो बुझा दे सब अंगारे, मेरा सपना सबकी खैर |

    उमा विश्वकर्मा कानपुर, उत्तर प्रदेश

    मो. ९५५४६२२७९५

  • सबसे प्यारा मेरा देश

    सबसे प्यारा मेरा देश

     

    सबसे प्यारा, ‘मेरा देश’

    भिन्न-भिन्न, इसके परिवेश |

    हमें गर्व, हम भारतवासी,

    मथुरा यहीं, यहीं पर काशी |

    जन्में कान्हा, राम यहाँ पर,

    अद्भुत् चारों धाम यहाँ पर |

    सिद्धार्थ यहीं पर, बुद्ध बने,

    अनगिनत आचरण, शुद्ध बने |

    ऋषियों से, धन्य-धन्य भूमि,

    ऋतुओं से, हरित धरा झूमी |

    वेद, उपनिषद्, गीता, ध्यान,

    यहीं योग का, सम्यक ज्ञान |

    भाषाओं से, भंडार भरा,

    स्तुति में, मंत्रोच्चार भरा |

    नदियों की, निश्छल जलधारा,

    है प्रदीप्त, नभ में ध्रुव तारा |

    शिव की सदा, साधना होती,

    पाथर पूज, प्रार्थना होती |

    वीरों की, धीरों की धरती,

    पुन्य आत्मा, यहीं उतरती |

    थोड़ा कहा, बहुत है शेष,

    सबसे प्यारा, ‘मेरा देश’
    उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश

  • जीवन में अनमोल है जल

    जीवन में अनमोल है जल

    जल पर कविता

    जल से उत्पत्ति जीवन की,

    निर्मित जल से, ब्रम्हाण्ड सकल

    जीवन में अनमोल है जल |

    निर्मल, निश्छल बहती धारा,

    मीठा कहीं, कहीं जल खारा,

    जिस पर आश्रित संसार

    विविध स्रोत मिलती जलधार

    झर-झर झरता है झरने से, ऊँचे पर्वत रहता जल |

    जीवन में अनमोल है जल |

    नदियों में जल बहता रहता,

    झीलों से कुछ कहता रहता,

    कूप, बावली, तालाबों में,

    सारे मौसम सहता रहता,

    दूर तलक फैले सागर में, चलती रहती उथल-पुथल |

    जीवन में अनमोल है जल |

    पर्वत पर जाकर जम जाता,

    कहीं ग्लेशियर बन भरमाता,

    वाष्प बने, उड़ जाये ऊपर,

    बारिश बन धरती पर आता,

    प्यासी-प्यासी वसुधा को, जल, पल भर में करे सजल |

    जीवन में अनमोल है जल |
    उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश

  • कहाँ बचे हैं गाँव

    कहाँ बचे हैं गाँव

    कहाँ बचे हैं गाँव

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    शहरी दखल हुआ जबसे, कहाँ बचे हैं गाँव ?

    कहाँ बचे हैं गाँव

    पट गए सारे ताल-तलैया,

    नहरों को भी पाट दिया,

    आस-पास जितने जंगल थे,

    उनको हमने काट दिया,

    थका पथिक को राह में,

    मिला नहीं ठहराव |

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    पगडंडी पर चलना छोड़ा,

    हम बाइक पे चलते हैं,

    हुए रिटायर बैल हमारे,

    ट्रैक्टर से काम निकलते हैं,

    हुआ मशीनी जीवन अपना,

    ये कैसा बदलाव ?

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    • उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश
  • थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव

    थके हुए हैं पाँव, दूर बहुत है गाँव,

    लेकिन हमको चलना होगा |

    ढूंढ रहे हम ठाँव, लगी जिंदगी दाँव,

    ठोकर लगे, संभलना होगा |

    कर्मभूमि को अपना समझा,

    जन्मभूमि को छोड़ दिया |

    वक़्त पड़ा तो दोनों ने,

    हमसे रिश्ता तोड़ लिया |

    यहाँ मिली ना वहाँ मिली,

    बुरे वक़्त में छाँव |

    दूर बहुत है गाँव……………

    ना गाडी, न कोई रेल,

    पैदल हमको चलना होगा |

    अजब जिंदगी के हैं खेल,

    आज नहीं, तो कल क्या होगा ?

    खेल-खेल में हम सबका,

    उलट गया है दाँव |

    दूर बहुत है गाँव……………

    – उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश