Tag: #वर्षा जैन प्रखर

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर 0वर्षा जैन प्रखर के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • कवयित्री वर्षा जैन “प्रखर” प्रदूषण पर आधारित कविता

    प्रदूषण पर आधारित कविता

    prakriti-badhi-mahan
    prakriti-badhi-mahan

    यत्र प्रदूषण तत्र प्रदूषण

    सर्वत्र प्रदूषण फैला है
    खानपान भी दूषित है
    वातावरण प्रदूषित है

    जनसंख्या विस्फोट भी 
    एक समस्या भारी है
    जिसके कारण भी होती
    प्रदूषण की भरमारी है

    जल, वायु, आकाश प्रदूषित
    नभ, धरती, पाताल प्रदूषित
    मिल कर जिम्मेदारी लें
    इस समस्या को दूर भगा लें

    शतायु होती थी पहले
    अब पचास में सिमटी है
    ये आयु भी अब तो
    लगती हुई प्रदूषित है

    वातावरण हुआ प्रदूषित
    दिखता चहुँओर है
    उस प्रदूषण को दूर करें अब
    जो मन में बैठा चोर है

    नन्ही कलियाँ नहीं सुरक्षित
    कुछ लोगोंं की नजरें दूषित है
    दूर करो अब ये भी प्रदूषण
    मानवता होती दूषित है

    करें योग सेहत सुधारे
    व्याधि रोग दूर भगालें
    बच्चों के हम आधार
    हम ही पंगु हो जायेंगे तो
    कैसे होगा उनका उद्धार

    आओ मिलकर लें संकल्प
    प्रदूषण का ना बचे विकल्प
    सबकी समस्या का अब
    सब मिलकर करें समाधान


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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  • कवयित्री वर्षा जैन “प्रखर” आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    दीपावली की पावन बेला
    महकी जूही, खिल गई बेला
    धनवंतरि की रहे छाया
    निरोगी रहे हमारी काया
    रूप चतुर्दशी में निखरे ऐसे
    तन हो सुंदर मन भी सुधरे

    महालक्ष्मी की कृपा परस्पर
    हम सब पर हरदम ही बरसे
    माँ लक्ष्मी के वरद हस्त ने
    इतना सक्षम हमें किया है
    दिल में सबके प्यार जगाएं
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें

    चहुँ ओर है आज दीवाली
    दीपोत्सव की सजी है थाली
    किसी के आँगन में है खुशियाँ 
    किसी का आँगन हो गया खाली
    आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं
    सबका आँगन भी चमकाएं

    नौनिहालों को बाँटे खुशियाँ
    उनके घर भी मने दीवाली
    दिये तले क्यूँ रहे अंधेरा
    उसको क्यों तम ने है घेरा
    आस का एक दीपक जलाएँ
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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  • प्रकाश पर कविता-वर्षा जैन “प्रखर”

    प्रकाश पर कविता

    मन के अंध तिमिर में 
    क्या
    प्रकाश को उद्दीपन की आवश्यकता है? 
    नहीं!! 
    क्योंकि आत्म ज्योति का
    प्रकाश ही सारे अंधकार को हर लेगा
    आवश्यकता है, तो बस अंधकार को 
    जन्म देने वाले कारक को हटाने की
    उस मानसिक विकृत कालेपन को हटाने की
    जो अंधकार का जनक है
    यदि अंधकार ही नहीं होगा 
    तो मन स्वतः ही प्रकाशित रहेगा
    मन प्रकाशित होगा तो 
    वातावरण जगमगायेगा
    वातावरण जगमगायेगा तो
    खुशियाँ स्वयं खिल उठेंगी
    खुशियाँ खिलेंगी तो
    सभी मुस्कुराएंगे
    और यही दीवाली की सार्थकता होगी


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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  • विश्वास की परिभाषा – वर्षा जैन “प्रखर”

    विश्वास की परिभाषा

    विश्वास एक पिता का

    कन्यादान करे पिता, दे हाथों में हाथ
    यह विश्वास रहे सदा,सुखी मेरी संतान। 
    योग्य वर सुंदर घर द्वार, महके घर संसार
    बना रहे विश्वास सदा, जग वालों लो जान।

    विश्वास एक बच्चे का

    पिता की बाहों में खेलता, वह निर्बाध निश्चिंत
    उसे गिरने नहीं देंगे वह, यह उसे स्मृत। 
    पिता के प्रति बंधी विश्वास रूपी डोर
    हर विषम परिस्थिति में वे उसे संभालेंगे जरूर।

    विश्वास एक भक्त का

    आस्था ही है जो पत्थरों को बना देती है भगवान
    जब हार जाए सारे जतन,तो डोल उठता है मन। 
    पर होती है एक आस इसी विश्वास के साथ
    प्रभु उबारेंगे जरूर चाहे दूर हो या पास।

    विश्वास एक माँ का 

    नौ माह रक्खे उदर में, दरद सहे अपार
    सींचे अपने खून से, रक्खे बड़ा संभाल। 
    यह विश्वास पाले हिय मे, दे बुढ़ापे में साथ
    कलयुग मे ना कुमार श्रवण, भूल जाए हर मात।

    विश्वास डोर नाजुक सदा
    ठोकर लगे टूटी जाए। 
    जमने में सदियों लगे
    पल छिन में टूटी जाये। 
    रखो संभाले बड़े जतन से
    टूटे जुड़ ना पाये।


    वर्षा जैन “प्रखर”

    दुर्ग (छ.ग.) 

    7354241141

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  • हाँ ये मेरा आँचल-वर्षा जैन “प्रखर

    हाँ ये मेरा आँचल

    आँचल, हाँ ये मेरा आँचल
    जब ये घूंघट बन जाता सिर पर
    आदर और सम्मान बड़ों का
    घर की मर्यादा बन जाता है

    जब साजन खींचें आँचल मेरा
    प्यार, मनुहार और रिश्तों में
    यही सरलता लाता है
    प्यार से जब शर्माती हूँ मैं
    ये मेरा गहना बन जाता है

    मेरा बच्चा जब लड़ियाये
    आँचल से मेरे उलझा जाए
    ममता का सुख देकर आँचल
    हठ योग की परिभाषा बन जाता है

    आँचल में समाती हूँ जब शिशु को
    ये उसका पोषक बन जाता है
    ले कर सारी बलाएँ उसकी
    आँचल ही कवच बन जाता है

    यौवन की दहलीज़ में आँचल
    लज्जा  वस्त्र कहलाता है 
    ढलता आँचल एक पत्नी का
    समर्पण भाव दिखाता है

    क्या  क्या उपमा दूँ मैं इसकी
    बहू बेटी माँ पत्नी बहना
    आँचल हर रूप सजाता है
    आँचल हर रूप सजाता है ।


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छ.ग.)
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