प्रदूषण पर आधारित कविता
यत्र प्रदूषण तत्र प्रदूषण
सर्वत्र प्रदूषण फैला है
खानपान भी दूषित है
वातावरण प्रदूषित है
जनसंख्या विस्फोट भी
एक समस्या भारी है
जिसके कारण भी होती
प्रदूषण की भरमारी है
जल, वायु, आकाश प्रदूषित
नभ, धरती, पाताल प्रदूषित
मिल कर जिम्मेदारी लें
इस समस्या को दूर भगा लें
शतायु होती थी पहले
अब पचास में सिमटी है
ये आयु भी अब तो
लगती हुई प्रदूषित है
वातावरण हुआ प्रदूषित
दिखता चहुँओर है
उस प्रदूषण को दूर करें अब
जो मन में बैठा चोर है
नन्ही कलियाँ नहीं सुरक्षित
कुछ लोगोंं की नजरें दूषित है
दूर करो अब ये भी प्रदूषण
मानवता होती दूषित है
करें योग सेहत सुधारे
व्याधि रोग दूर भगालें
बच्चों के हम आधार
हम ही पंगु हो जायेंगे तो
कैसे होगा उनका उद्धार
आओ मिलकर लें संकल्प
प्रदूषण का ना बचे विकल्प
सबकी समस्या का अब
सब मिलकर करें समाधान
वर्षा जैन “प्रखर”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद