धर्मांधता पर कविता

धर्मांधता पर कविता जब भीबंटा है वतनतब-तबबंटवारे के लिएउत्तरदायी रही हैधर्मांधतायह चलती हैराजनीतिक इशारों परजो आज भी हैपूरे यौवन परजाने और कितनेटुकड़े करना चाहते हैंधर्मांध लोगइस वतन केनहीं लेते सबकऐतिहासिक भूलों सेऔर कर रहे हैं निर्माणअराजक वातावरण का -विनोद सिल्ला©

नन्हें मेहमान पर कविता

नन्हें मेहमान पर कविता मुंडेर पर रखेपानी के कुंडे कोदेख रहा था मैंहोकर आशंकितमन में उठे प्रश्नकोई पक्षीआता है या नहीँपानी पीनेतभी मुंडेर परदेखी मैंनेपक्षियों की बीठेंमन को हुई तसल्लीकि आते हैंनन्हे मेहमानमेरी मुंडेर पर -विनोद सिल्ला©

बूंदाबांदी पर कविता

बूंदाबांदी पर कविता रात की हल्कीबूंदाबांदी नेफिजां कोदिया निखारपेङों पेपत्तों पेदीवारों पेमकानों पेजमीं धूलधुल गईसब कुछ हो गयानया-नयाऐसी बूंदाबांदीमानव मन पे भीहो जातीजात-पांतधर्म-मजहब कीजमी धूलभी जाती धुलआज कीफिजां की तरहजर्रा-जर्राजाता निखर -विनोद सिल्ला

यादें तो यादें है -विनोद सिल्ला

यादें तो यादें है -विनोद सिल्ला आ जाती हैं यादेंबे रोक-टोकनहीं है इन परकिसी का नियन्त्रणनहीं होने देतीआने का आभासआ जाती हैंबिना किसी आहट केदे जाती हैंकभी गम कातो कभी खुशी काउपहारजब भीआती हैं यादेंस्मृतियों केरंगमंच परचल पड़ता हैचलचित्र-सालौट आते हैंपुराने दिनपुराना समययादें तो यादें हैं

मुस्कान पर कविता

मुस्कान पर कविता मुझे बाजार मेंएक आदमी मिलाजिसके चेहरे परन था कोई गिलाजो लगतारमुस्करा रहा थाबङा ही खुशनजर आ रहा थामैंने उससे पूछा किकमाल है आजजिसको भी देखोमुंह लटकाए फिरता हैतनावग्रस्त-सा दिखता हैआपकी मुस्कान काक्या राज हैमुस्करा रहे होकुछ तो खास हैउन्होंने कहामुझपे भीमहंगाई की मार हैमुझपे भीगम सवार हैयहाँ दुखदाईभ्रष्टाचार हैऐसे मेंखुश रहना कैसामुस्कराता … Read more