शिवरात्रि पर कविता /डॉ0 रामबली मिश्र
अद्वितीय शिव भोले काशी।
अदा निराली प्रिय अविनाशी।।
रहते सबके अंतर्मन में।
बैठे खुश हो नित सज्जन में।।
जगह जगह वे घूमा करते।
तीन लोक को चूमा करते।।
भस्म लगाये वे चलते हैं।
शुभ वाचन करते बढ़ते हैं।।
परम दिव्य तत्व रघुवर सा।
कोई नहीं जगत में ऐसा।।
रामेश्वर शंकर का धामा।
विश्व प्रसिद्ध स्वयं निज नामा।।
बहुत जल्द वे खुश होते हैं।
सारे पापों को धोते हैं।।
सहज सफाई करते चलते।
आशीर्वाद देत वे बढ़ते।।
डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।