विश्व प्रदूषित हो रहा /प्रेमचन्द साव “प्रेम”,बसना

विश्व प्रदूषित हो रहा / प्रेमचन्द साव “प्रेम”,बसना

JALTI DHARTI

विश्व प्रदूषित हो रहा,फैल रहा है रोग।
मानव सारे व्यस्त है,करने निज सुख भोग।।

प्राणवायु दूषित हुआ,दूषित हर जल बूँद।
मानव को चिंता कहाँ ?,बैठा अँखियन मूँद।।

ताल तलैया कूप को,मनुज रहे अब पाट।
निज स्वारथ के फेर में,वृक्ष रहे हैं काट।।

धूल-धुआँ कूड़ा बढ़ा,बढ़ा मनुज का लोभ।
फिर जीवन संघर्ष का,रहे नहीं क्यों क्षोभ।।

पश्चिम की यह सभ्यता,लिया मनुज को घेर।
इसीलिए हर द्वार में,है कूड़ो का ढेर।।

श्रम करना सब छोड़कर,बने आलसी आज।
लगे सफाई कर्म में,मानव को अब लाज।।

स्वच्छ रहे पर्यावरण,करो प्रेम संघर्ष।
तभी प्रेम का प्रेम से,रहे जनों में हर्ष।।

पर्यावरण उपाय के,जग में युक्ति अनेक।
वृक्ष लगाने का करो, कर्म सदा ही नेक।।

हरियाली जग में रहे,जन-जन रहे प्रसन्न।।
नाम नहीं हो भूख का,मिले सभी को अन्न।।

मन-मतलब को छोड़कर,कर्म करे निष्काम।
मानव जब संयम रखे, धरा बने सुखधाम।।

प्रीति-रीति के भाव का,जब मन में हो हर्ष।
मानव करता है तभी ,जीवन में उत्कर्ष।।

पात-पात सुरभित रहे,पुष्ट रहे सब डाल।
प्रेम तभी जग में बने,मानव धवल मराल।।

हरियाली से हो जहाँ,हर मन में अनुराग।
वृक्ष लताओं से रहे,सुरभित हर भूभाग।।

वृक्षों से हमको मिले,प्राण वायु वरदान।
फिर जन क्यों रखते नहीं,हरियाली का मान।।

शुद्ध पवन जल से मिले,जीवनदायी प्राण।
योग में करके साधना,मिट जाते सब त्राण।।

धरती अंबर तक खिले,जीवन का सुखसार।
जब मानव मन से करे,पर्यावरण सुधार।।

“प्रेम” करो तुम प्रेम से,धरती पर उपकार।
तब ही प्रेम के प्रेम से,सुरभित हो संसार।।

प्रेमचन्द साव “प्रेम”,बसना

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