ऋतुराज बसंत पर दोहे

ऋतुराज बसंत पर दोहे धरती दुल्हन सी सजी,आया है ऋतुराज।पीली सरसों खेत में,हो बसंत आगाज।।1।। कोकिल मीठा गा रही,भांतिभांति के राग।फूट रही नव कोंपलें , हरे भरे हैं बाग।।2।। पीली चादर ओढ़ के, लगती धरा अनूप।प्यारा लगे बसंत में, कुदरत का ये रूप।।3।। हरियाली हर ओर है , लगे आम में बौर।हुआ शीतअवसान है,ऋतु बसंत … Read more

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संवेदना पर कविता -अमित दवे

संवेदना पर कविता कथित संवेदनाओं के ठेकेदारों कोसंवेदनाओं पर चर्चा करते देखा। संवेदनाओं के ही नाम पर संवेदनाओं काकतल सरेआम होते देखा।। साथियों के ही कष्टों की दुआ माँगतेसज्जनों को शिखर चढते देखा।। खेलों की बिसातों पे षड्यंत्रों सेअपना बन जग को छलते देखा।। वाह रे मेरे हमदर्दों हमदर्दी की आड मेंतुमको क्या क्या न … Read more

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गुरू पर कुण्डलियां -मदन सिंह शेखावत

महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा … Read more

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विरह पर दोहे -बाबू लाल शर्मा

विरह पर दोहे सूरज उत्तर पथ चले,शीत कोप हो अंत।पात पके पीले पड़े, आया मान बसंत।। फसल सुनहरी हो रही, उपजे कीट अनंत।नव पल्लव सौगात से,स्वागत प्रीत बसंत।। बाट निहारे नित्य ही, अब तो आवै कंत।कोयल सी कूजे निशा,ज्यों ऋतुराज बसंत।। वस्त्र हीन तरुवर खड़े,जैसे तपसी संत।कामदेव सर बींधते,मन मदमस्त बसंत।। मौसम ले अंगड़ाइयाँ,दामिनि गूँजि … Read more

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गाँधीजी पर कविता – बाबू लाल शर्मा

गाँधीजी पर कविता भारत ने थी ली पहन, गुलामियत जंजीर।थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।हाल हुए बेहाल जब, कुचले जन आक्रोश।देख दशा व्याकुल हुए, गाँधी वर मतिधीर। काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।गोली गाली साथ ही , भर देते थे जेल।देशी राजा अधिक तर, मौज करे मदमस्त।गाँधी ने आवाज दी, कर खादी से … Read more

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बसंत पंचमी पर कविता

बसंत पंचमी पर कविता मदमस्त    चमन अलमस्त  पवन मिल रहे  हैं देखो, पाकर  सूनापन। उड़ता है सौरभ, बिखरता पराग। रंग बिरंगा सजे मनहर ये बाग। लोभी ये मधुकर फूलों पे है नजर गीला कर चाहता निज शुष्क अधर। सजती है धरती निर्मल है आकाश। पंछी का कलरव, अब बसंत पास।

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बीते समय पर कविता

बीते समय पर कविता हम रहो के राही हैभटक जाए इतना आसान नहींइतना रहो में गुमार नहीहम से टकरा जाए इतना हकूमत में साहस नहीहो जाता हैचिर हरण जैसे जब अपने घर ही ताक नहीअपने बच्चे ही हाथ नहीदुनिया में खूब कमाई दौलतपर करता रहा में कोई राम राम नहीचलना आता हैपर करता है जमाना … Read more

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शब्दो पर दोहे

शब्दो पर दोहे १सागर मंथन जब हुआ, चौदह निकले रत्न।*अन्वेषण* नित कर रहे, सतत समस्त प्रयत्न।।२*सम्प्रेषण* होता रहे, भव भाषा भू ज्ञान।विश्व राष्ट्र परिकल्पना, हो साकार सुजान।।३अपनी रही विशेषता, सब जन के परि त्राण।बना *विशेषण* हिन्द यह, सागर हिन्द प्रमाण।४*अन्वेषण* करिए सतत, *सम्प्रेषण* कर ज्ञान।बने *विशेषण* मानवी, विश्व राज्य सम्मान।।५खिलते फूल बसंत जब, करते *अलि* … Read more

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मुस्कान पर कविता

मुस्कान पर कविता मुझे बाजार मेंएक आदमी मिलाजिसके चेहरे परन था कोई गिलाजो लगतारमुस्करा रहा थाबङा ही खुशनजर आ रहा थामैंने उससे पूछा किकमाल है आजजिसको भी देखोमुंह लटकाए फिरता हैतनावग्रस्त-सा दिखता हैआपकी मुस्कान काक्या राज हैमुस्करा रहे होकुछ तो खास हैउन्होंने कहामुझपे भीमहंगाई की मार हैमुझपे भीगम सवार हैयहाँ दुखदाईभ्रष्टाचार हैऐसे मेंखुश रहना कैसामुस्कराता … Read more

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बसन्त आयो रे पर कविता

बसन्त आयो रे पर कविता ऋतु बसन्त शुभ दिन आयो रे,सबके मन को भायो रे।पात-पात हरियाली सुन्दर,मधु बन भीतर छायो रे।। नीला अम्बर खूब सितारेसबके मन को भाते हैं।रक्त पलास खिले धरती पर,तन में अगन लगाते हैं।रंग-बिरंगे उपवन सुन्दर,प्रकृति खूब हर्षायो रे।ऋतु बसन्त खूब दिन आयो रे,……….। आम्र बौर अमराई खिलकर,पिय सन्देशा लाती है।कामुकता का … Read more

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